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Channel: जड़ी बूटी – Hindi स्वास्थ्य ब्लॉग
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शतावरी चूर्ण Shatavari Churna Detail and Uses in Hindi

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शतावरी चूर्ण, का एकमात्र घटक शतावर है। शतावरी Asparagus racemosus पौधे की जड़ को आयुर्वेद में स्त्री रोगों को लिए प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। यह एक एंटीऑक्सिडेंट और जीवाणुरोधी है, तथा प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करती है।

satavar
By Frank Vincentz (Own work)

शतावर को माहवारी पूर्व सिंड्रोम (PMS), गर्भाशय से रक्तस्राव और नई मां में दूध उत्पादन शुरू करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त शतावर को अपच, कब्ज, पेट में ऐंठन, और पेट के अल्सर, दर्द, चिंता, कैंसर, दस्त, ब्रोंकाइटिस, क्षय रोग, मनोविकार, और मधुमेह के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यह एक aphrodisiac के रूप में यौन इच्छा को बढ़ाने के लिए भी प्रयोग की जाती है।

इसमें एक सक्रिय antioxytocic saponins भी है जो की विशेष रूप से गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय की मांसपेशियों को बहुत ही अच्छा आराम देता है और संकुचन को रोकता है। इससे गर्भपात को रोकने और समय पूर्व प्रसव को रोकने में मदद होती है।

आम तौर पर गर्भपात को रोकने के लिए इसके पाउडर को दूध के साथ उबाल कर दिया जाता है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं में स्तन दूध को बढ़ाने में मदद करता है। यह खून की कमी से बचने में मदद करता है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Shatavari churna is an Ayurvedic medicine which contains Root Powder of plant Asparagus racemosus. Shatavar is used to treat infertility in both sexes, to increase sexual vigour, for urinary and kidney diseases, strangury and retention of urine.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई
  • मुख्य उपयोग: गर्भाशय के रोग और माताओं में दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए
  • मुख्य गुण: रसायन, बल्य, स्तन्यजन्य और शुक्रवर्धक

शतावरी चूर्ण के घटक Ingredients of Shatavari Churna

शतावरी की जड़ का पाउडर

शतावरी चूर्ण के लाभ/फ़ायदे Benefits of Shatavari Churna

  1. इसका शरीर में स्त्री हॉर्मोन एस्ट्रोजन जैसा असर होता है।
  2. इसका सेवन गर्भस्थ शिशु को ताकत देता है।
  3. यह दूध का अधिक स्राव कराने वाली औषध है।
  4. इसके सेवन से वज़न बढ़ता है।
  5. यह गर्भपात को रोकती है।
  6. यह गर्भाशय के संकुचन को कम कराती है।
  7. यह लिकोरिया या सफ़ेद पानी की समस्या में लाभप्रद है।
  8. यह बच्चों में शरीर के विकास और पुरुषों में अन्य द्रव्यों के साथ शुक्र बढ़ाने के लिए दी जाती है।

शतावरी चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग Uses of Shatavari Churna

  1. रक्त साफ़ करना Blood purification
  2. पेचिश, दस्त Diarrhoea and dysentery
  3. अल्सर Duodenal ulcers, dyspepsia, heartburn, gastritis, colitis, crohn’s disease and आईबीएस irritable bowel syndrome
  4. प्रजनन अंगों को ताकत देना Female reproductive tonic
  5. बार-बार होने वाला इन्फेक्शन Infections
  6. बाँझपन Infertility in both sexes
  7. कम कामेच्छा Low libido/impotence
  8. मीनोपॉज Menopause
  9. टॉनिक Nutritive tonic
  10. यौन कमजोरी दूर करना Promotes conception for sexual debility in both sexes
  11. स्तनों से दूध का स्राव ल्राना Promotes lactation
  12. संभावित गर्भपात Threatened miscarriage

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Shatavari Churna

  1. शतावरी चूर्ण को लेने की मात्रा 3-30 ग्राम है।
  2. ज्यादातर मामलों में इसे पांच ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।
  3. इसे शहद, दूध, पानी के साथ लें।
  4. इसे भोजन करने के बाद लें।
  5. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  2. इसके सेवन से वज़न बढ़ सकता है।
  3. इसके अधिक सेवन से कफ, आमदोष और शरीर में स्रोतों में रुकावट हो सकती है।
  4. यदि बहुत कफ, अधिक आमदोष, पित्त की कमी और फेफड़े की जकड़न में न लें।
  5. इसका असर एस्ट्रोजन जैसा होता है।
  6. शतावरी चूर्ण को लेने की सटीक मात्रा बहुत से कारकों पर निर्भर है।
  7. इसे गर्भावस्था में लिया जा सकता है। आयुर्वेद में इसे संभावित गर्भस्राव को रोकने और गर्भाशय के रोगों में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से गर्भाशय से होने वाले आसामान्य स्राव दूर होते है।
  8. शतावरी मूत्रल है। इसका प्रयोग किडनी में सूजन होने पर न करें।

दिव्य टोटला क्वाथ Divya Totala Kwath Detail and Uses in Hindi

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दिव्य टोटला क्वाथ एक आयुर्वेदिक दवा है जिसमें एकमात्र घटक श्योनाक है। इसे लीवर समेत बहुत से अन्य रोगों में भी प्रयोग किया जा सकता है। इसे टोटला क्वाथ कहते हैं, क्योंकि यह टोटला (सिक्किम में श्योनाक को हो टोटला कहते है) की छाल से बना काढ़ा है।

shyonak tree

श्योनाक को सोनापाठा, भल्लूक, भूतवृक्ष और टुण्टुक आदि के नामों से भी जानते है। यह आयुर्वेद में प्रयोग किया जाने वाला बहुत ही महत्वपूर्ण वृक्ष है। यह दशमूल की बृहत्पंचमूल का एक घटक है और आयुर्वेद की वे सभी दवाएं जिनमें दशमूल है, श्योनाक भी उनमें है। दशमूल की ही तरह यह सूजन को दूर करने वाली औषध है।

श्योनाक त्रिदोषशामक, शोथहर, व्रण रोपण, वेदनास्थापन, दीपन, पाचन, कृमिघ्न, ज्वरघ्न, और मूत्रल है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Totla kwath is proprietary Ayurvedic medicine from Swami Ramdev’s Patanjali Divya Pharmacy. A decoction prepared from this coarse powder in water is useful in treating liver disorders such as Jaundice, Hepatitis.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक
  • मुख्य उपयोग: यकृत रोग
  • मुख्य गुण: सूजन दूर करने का
  • मूल्य MRP: : 100 grams @ INR 20.00

दिव्य टोटला क्वाथ के घटक Ingredients of Divya Totala Kwath

प्रत्येक 5 ग्राम में:

श्योनाक 5 ग्राम

दिव्य टोटला क्वाथ के लाभ/फ़ायदे Benefits of Divya Totala Kwath

  • यह दीपन है और पाचन को सही करता है।
  • यह ग्राही गुण से पेचिश-दस्त में लाभकारी है।
  • यह कासहर है और कफ को कम करता है।
  • यह वातहर है और वातव्याधि में लाभप्रद है।
  • यह दर्द निवारक है।
  • यह सूजन दूर करता है।
  • यह लीवर / यकृत की रक्षा करने वाली दवाई है।
  • इसके सेवन से पीलिया, हेपेटाइटिस, लीवर की सूजन में लाभ होता है। इसे नियम से खाली पेट दिन में दो बार, सुबह और शाम लेना चाहिए।
  • यह मूत्रल है और बस्ती रोगों में लाभप्रद है।
  • यह पेशाब की रुकावट को दूर करता है।

दिव्य टोटला क्वाथ के चिकित्सीय उपयोग Uses of Divya Totala Kwath

  1. लीवर में सूजन Hepatitis / Liver inflammation
  2. पीलिया, हेपेटाइटिस Jaundice
  3. पित्त की अधिकता Biliousness
  4. कफ Cough
  5. उदर रोग Diseases of abdomen
  6. फ़ूड पोइजनिंग Food poisoning
  7. सूजन Inflammation
  8. भूक की कमी Low appetite
  9. मुंह में छाले Mouth ulcers
  10. आमवात Rheumatism
  11. बस्ती रोग Urinary disorders / basti roga
  12. वातव्याधि Vata vyadhi

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Divya Totala Kwath

  1. टोटला क्वाथ एक पाउडर के रूप में पैकेट में उपलब्ध है।
  2. इस पाउडर से पानी में पका कर काढ़ा बनाया जाता है।
  3. काढ़ा बनाने के लिए 5 ग्राम पाउडर को लेकर 400 ml पानी में उबालें जब तक पानी उड़ कर करीब 100 ml रह जाए।
  4. आप इसे और देर तक भी पका सकते हैं जिससे पानी की मात्रा कम हो जाए और इसे लेना आसान हो जाए।
  5. इसे छान लें।
  6. इसे दिन में दो बार, सुबह नाश्ते से रात को डिनर से दो घंटा पहले लेना चाहिए।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. गर्भावस्था में कोई दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न लें।
  2. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. इसे बताई मात्रा से अधिकता में न लें।
  4. निर्धारित मात्रा में लेने से इसका कोई ज्ञात साइड इफ़ेक्ट नहीं है।

चिरायता चूर्ण Chirayata Powder Detail and Uses in Hindi

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चिरायता चूर्ण एक आयुर्वेदिक चूर्ण या पाउडर हैं जिसका एकमात्र घटक चिरायता है। चिरायता बहुत कड़वा (तिक्त) होता है और इसलिए इसे भूनिम्ब और किराततिक्त भी कहते है। इसके अन्य नामों में शामिल हैं, किरात,  चिरेट्टा, त, कटूतिक्त, किरातक, काण्डतिक्त आदि। बंगाली में इसे चीरता, चीरता, नेपाली नीम, मराठी में किराइत, गुजराती में कटीयातुं, और इंग्लिश में चिरेता कहते हैं। लैटिन भाषा में इसका नाम स्वर्शिया चिरेटा है।

chirayata
By Satheesan.vn (Own work)[ CC-BY-SA-3.0 or GFDL], via Wikimedia Commons
चिरायता रस में तिक्त है। गुण में लघु और रूक्ष है। तासीर में यह शीतल और कटु विपाक है। कर्म में यह ज्वरघ्न, व्रणशोधन, सारक, कफहर, पित्तहर और रक्तदोषहर है। आयुर्वेद में चिरायता को मलनिःसारक, शीतल, कडवा, हल्का, रूखा, माना गया है। इसे बुखार, खांसी, कफ, पित्त, खून के विकारों, चमड़ी के रोगों, जलन, खांसी, सूजन, अधिक प्यास लगना, कुष्ठ, घाव और कृमि रोगों में प्रयोग किया जाता है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

Chirayata Powder is herbal powder of plant is Swertia chirata (also known as Kirata, Kirataka, Bhunimba, Kiratatiktaka). It is bitter tonic and given to treat Visham Jwar, skin diseases, Aam Dosha and diseases of liver and spleen. It reduces Pitta and Kapha But may increase Vata.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक स्वर्शिया चिरेटा पौधे का पाउडर
  • मुख्य उपयोग: बुखार, मलेरिया, चमड़ी के विभिन्न रोग
  • मुख्य गुण: रक्त से दोषों को साफ़ करना, आमदोष दूर करना

चिरायता चूर्ण के घटक Ingredients of Chirayata Churna

यह एक हर्बल पाउडर हैं जिसका एकमात्र घटक स्वर्शिया चिरेटा है।

चिरायता चूर्ण के लाभ/फ़ायदे Benefits of Chirayata Churna

  1. चिरायता Chiretta भी एक कड़वी हर्ब है।
  2. चिरायता खून को साफ़ करता है और ग्लूकोस के लेवल को संतुलित करता है।
  3. यह लीवर से विजातीय पदार्थों को दूर करता है।
  4. चिरायता पेट से गैस्ट्रिक जूस gatric juicesके स्राव को उत्तेजित करता है, जिससे पाचन अच्छा होता है।
  5. यह हाइपोग्लाईसिमिक है डायबिटीज में दिया जाता है।
  6. इसके अतिरिक्त यह अपच, भूख न लगना, और पाचन सम्बन्धी अन्य समस्याओं में` भी अच्छे परिणाम देता है।
  7. यह सन्निपात ज्वर, व्रण, रक्त, दोषों की सर्वश्रेष्ठ औषधि है।
  8. यह बुखार होने के कारण को दूर करता है।
  9. यह कोढ़, कृमि तथा व्रणों को मिटाता है।
  10. तीखेपन के कारण कफ पित्त शामक है।

चिरायता चूर्ण के चिकित्सीय उपयोग Uses of Chirayata Churna

  1. मुहांसे Acne, pimple
  2. अस्थमा Asthma
  3. खून साफ़ करना Blood purification
  4. शरीर में जलन Burning sensation
  5. कब्ज़ Constipation
  6. लीवर के रोग Diseases of liver, jaundice
  7. एक्जिमा Eczema
  8. बुखार Fever, Visham Jwar
  9. पाचन की कमजोरी Impaired digestion
  10. सूजन Inflammation
  11. पेट में कीड़े Intestinal parasites
  12. मलेरिया Malaria
  13. मोटापा Obesity
  14. चमड़ी के विभिन इन्फेक्शन Skin infections
  15. चमड़ी के रोग Various type of skin diseases caused due to blood impurities

सेवन विधि और मात्रा Dosage of Chirayata Churna

  1. 1-3 gram दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  2. इसे पानी के साथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ लें।
  3. इसे भोजन करने के बाद लें।
  4. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications

  1. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  2. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  3. इसे गर्भावस्था में नहीं लेना चाहिए।
  4. अधिक वात की समस्या में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  1. Vyas Pharmaceuticals Chirayata Churna
  2. Nidco Cheraita Swetia Chirata Churna
  3. Sahul Chirayata Churna
  4. Sadhna Chirayata Churna
  5. Goodcare Chirayata Churna
  6. तथा अन्य बहुत सी फर्मसियाँ।

आक Aak Madar (Calotropis) Information, Uses and Caution in Hindi

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अर्क, अलर्क, गणरूप, मंदार, वसुक, श्वेत पुष्प, सदापुष्प, बालार्क, प्रतापस आदि सफ़ेद आक के पर्याय हैं। इसे हिंदी में सफ़ेद आक, मदार, अकवन, बांग्ला में श्वेत आकंद, गुजराती में घोलो आकड़ो और लैटिन में केलोट्रोपिस प्रोसेरा कहते हैं।

madar plant

आक भारत में प्राचीन समय से पाया जाता है। इसका वर्णन हिंदु ग्रंथों में पाया जाता है। इसे सूर्य के समान तेजस्वी, तीक्ष्ण और उष्ण माना गया है। इसे एक दिव्य औषधि कहा गया है जो की भलि प्रकार से प्रयोग करने पर अनेकों रोगों में लाभप्रद है। इसे वानस्पतिक पारद mercury भी कहा गया है। इसकी दो प्रजातियाँ हैं, श्वेतार्क और रक्तार्क। औषधि के रूप में दोनों ही प्रजातियों को लगभग समान माना जाता है।

श्वेतार्क तथा रक्तार्क

श्वेत अर्क Calotropis procera का प्रयोग हिंदु धर्म में धार्मिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इसे अलर्क, राजार्क और शिवप्रिय भी कहते हैं। अर्क के पुष्पों को भगवान शिव की पूजा में प्रयोग किये जाते हैं। श्वेतार्क का पुष्प कुछ बड़ा होता है। इसमें दूध की मात्रा अधिक होती है।

आक की रक्तार्क प्रजाति Calotropis gigantea, हर जगह उपलब्ध हो जाती है। इसे संस्कृत में अकर्पर्ण, विकिरण, रक्तपुष्प, शुक्लफल, स्फीट, तथा सूर्य के जितने पर्याय हैं, वे सभी इसके नाम हैं। इसके पुष्प बैंगनी, छोटे और कटोरीनुमा गोल से होते हैं। यह अन्दर से लाल-बैंगनी चित्ती वाले होते है। रक्तार्क में लेटेक्स की मात्रा कम होती है।

अर्क एक विषैला / जहरीला पौधा है, जिसके प्रत्येक हिस्से में विषैले द्रव्य पाए जाते हैं। उत्तम वैद्य कम मात्रा में, सही प्रकार से अनुपानों के साथ इसे आंतरिक रूप से औषध रूप में प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु साधारण व्यक्ति, इसका आंतरिक प्रयोग न ही करें तो उचित है। गलत रूप से, सही मात्रा में प्रयोग न किये जाने पर इसका सेवन विष के सामान है जो की जान ले सकता है।

सामान्य जानकारी

आक का पौधा प्रायः रेतीली, उसर, जमीन में पाया जाता है। यह अन्य जड़ी-बूटी के पौधों की तरह ही बेकार, उपेक्षित जगहों पर उगा दिख जाता है। आक एक बहुवर्षीय क्षुप है जिसकी उंचाई चार से कर आठ फुट की हो सकती है। इसके पत्ते रोयेंदार और बड़े होते हैं। देखने में पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं तथा हरे सफेदी लिये होते हैं। पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल 2-3 इंच लम्बे व 1-2 इंच चौड़े होते हैं। यह लम्बे-अंडाकार और आगे से तोते की चोंच की तरह मुड़े होते हैं और इस कारण इसे शुकफल भी कहते हैं। इसके फल में रूई होती है जिसे तकिये, गद्दे आदि भरने में भी प्रयोग किया जाता है। आक की रूई से बनी तकिया लगाने से जुकाम से बचाव होता है, ऐसी मान्यता है।

  • वानस्पतिक नाम: कैलोट्रोपिस प्रोसेरा Asclepias procera Aiton, Calotropis procera, Calotropis gigantea
  • कुल (Family): Asclepiadaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
  • पौधे का प्रकार: क्षुप / झाड़ी
  • वितरण: पूरे देश में
  • पर्यावास: खाली-बेकार-उसर मैदान

आक के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Ravi, Bhanu, Tapana
  2. हिन्दी: आक Aak, Madar, Akavana
  3. अंग्रेजी: Mudar Bark, Mudar Yercum, Madar Tree, Giant Milkweed, SODOM’S MILKWEED
  4. असमिया: Akand, Akan
  5. बंगाली: Akanda, Akone
  6. गुजराती: Aakado
  7. कन्नड़: Ekka, Ekkadagida, Ekkegida
  8. मलयालम: Erikku
  9. मराठी: Rui
  10. उड़िया: Arakha
  11. पंजाबी: Ak
  12. तमिल: Vellerukku, Erukku
  13. तेलुगु: Jilledu
  14. उर्दू: Madar, Aak

आक का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
  • आर्डर Order: जेंटियानेल्स Gentianales
  • परिवार Family: एस्क्लेपिडेसिएइ Asclepiadaceae – Milkweed family
  • जीनस Genus: कैलोट्रोपिस Calotropis R.Br calotropis
  • प्रजाति Species: कैलोट्रोपिस प्रोसेरा Calotropis procera (Aiton) W.T.Aiton – roostertree

अर्क के संघटक Phytochemicals

Cardioactive steroids (cardenolids): including calotropin, calactin, uscharidin

अर्क के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

दोनों प्रकार के आक, Raktark and Shvetark को गुण में समान माना गया है। दोनों ही दस्तावर, वात, कोढ़, खाज-खुजली, व्रण, बवासीर, मलकृमि को नष्ट करने वाले हैं।

अर्क स्वाद में कटु, तिक्त, गुण में लघु और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

कर्म Principle Action

  1. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  2. पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
  3. शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  4. श्लेष्महर: द्रव्य जो चिपचिपे पदार्थ, कफ को दूर करे।
  5. उष्ण: यह प्यास, जलन, मूर्छा करता है और घाव पकाता है।
  6. विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
  7. भेदन: द्रव्य जो बंधे या बिना बंधे मल का भेदन कर मलद्वार से निकाल दे।
  8. वामक: द्रव्य जो कच्चे ही पित्त-कफ, अन्न आदि को बलपूर्वक मुख द्वार से बाहर निकाल दे।
  9. श्वास-कासहर: द्रव्य जो श्वशन में सहयोग करे और कफदोष दूर करे।
  10. कुष्ठघ्न: द्रव्य जो त्वचा रोगों में लाभप्रद हो।
  11. व्रण रोपण: घाव ठीक करने के गुण।

आक युक्त आयुर्वेदिक दवाएं

  1. महाविषगर्भा तेल
  2. धन्वंत्रा घृत
  3. अर्क लवण

अर्क/मदार के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Calotropis in Hindi

आयुर्वेद में इसे लघु, तीक्ष्ण और कटु विपाक माना गया है। यह स्वाद में कटु-तिक्त और वीर्य में उष्ण है। यह वात और कफ को कम किन्तु पित्त को बढ़ाता है। यह दर्द, सूजन, को कम करने वाला और त्वचा रोगों को नष्ट करने वाला है। यह व्रण शोधन और जंतुघ्न भी है। इसकी जड़ों को रक्तशोधक और शोथहर की तरह प्रयोग किया जा सकता है। यह विषम ज्वर नाशक भी है।

आक के पुष्प: कब्ज़, गुल्म, पेट के कीड़ों में प्रयोग होते हैं।

आक के पत्ते: सूजन-दर्द, श्लीपद, आमवात, घावों क धोने में प्रयोग करते हैं। पत्तों के रस से को तेल में उबाल कर जो औषधीय तेल बनता है उसे कान में डालते हैं, जिससे कान के दर्द और कम सुनाई देना में लाभ होता है। आक के पत्ते वामक, रेचक, भ्रमकारक, और श्वासहर है। पत्तों को कास-श्वास, कर्णशूल, शोथ, एक्जिमा और त्वचा रोगों में प्रयोग करते हैं।

आक का दूध: दूध या लेटेक्स, को ग्रंथि, सूजन, लिम्फ नोड की सूजन में प्रयोग करते हैं। दूध को दाद-रिंगवर्म, कुष्ठ आदि पर भी लगाते हैं। यह कड़वा-गर्म-चिकना व कोढ़, गुल्म और उदर रोग नाशक है।

1- दाद, एक्जिमा, फोड़ा-फुंसी

आक का दूध लगाने पर यह त्वचा रोग दूर होते हैं।

2- कान में दर्द

आक के पीले पत्तों को घी लगाकर- गर्म कर, उसका रस कान में डालें।

3- आधासीसी / माइग्रेन

आक के पीले पत्तों के रस को नाक में डालने से लाभ होता है।

4- अंडकोष की सूजन

आक के पत्ते 2-4, को तिल तेल के साथ पत्थर पर पीस कर अंडकोष पर लगाएं।

5- पैरों में छाले

आक का दूध लगाएं।

6- गठिया

आक के पत्तों को घी लगाकर, तवे पर गर्म करके प्रभावित जगह सेंकें।

7- खाज

आक के लेटेक्स को सरसों या नारियाल के तेल में मिला कर लगायें।

8- झाइयाँ

आक के लेटेक्स 5-7 बूँद + हल्दी + गुलाब जल में मिलाकर लगाएं।

9- फुंसियाँ

आक का दूध लगाएं।

10- त्वचा रोग, अर्श के मस्से

– आक का दूध 100 ग्राम + हल्दी 200 ग्राम + मैनशील 15 ग्राम + सरसों का तेल 400 ग्राम लें। मैनसिल और हल्दी को पीस कर आक का दूध मिला लें। अब इसे तेल और २ किलो पानी में मिला कर, पका लें। इस तेल को अर्श के मस्सों, खाज-खुजली आदि पर लगाने से लाभ होता है।

– आक के पत्ते 1 किलो + हल्दी 50 ग्राम + सरसों का तेल 1/२ किलो लें और मिलाकर पकाएं। तेल सिद्ध हो जाने पर रख लें और प्रभावित हिस्सों पर लगाएं।

– आक के दूध 10 ग्राम + सरसों के तेल 50 ग्राम में पका कर रख लें और प्रभावित स्थान पर लगायें।

11- घाव

पत्तों को सुखा लें और पाउडर बना लें। इसे घाव पर छिडकें।

12- रेबीज़

आक के पौधे का पेस्ट और चीनी (3:1) को मिलाकर कुत्ते के काटे जगह पर लगाएं।

13- भगंदर

आक का दूध 10 ml + दारुहल्दी 2 ग्राम, को साथ में मिलाएं और व्रण पर लगाएं।

आक के दूध को रूई में भिगोकर लगाएं।

14- मूत्र का रुक जाना

आक के दूध में बबूल की छाल का रस मिलाकर, नाभि के पास लगायें।

15- जहरीले कीटों-जंतुओं के काट लेने पर, सांप-बिच्छू-बर्रे, मधुमक्खी के काट लेने पर

प्रभावित जगह पर आक के लेटेक्स का बाहरी रूप से लेप करें।

आक का पौधा विष है Calotropis is Poison

आक का पौधा विषैला होता है। इसका यदि सही मात्रा में न सेवन किया जाए तो शरीर में इसके जहर के लक्षण उत्पन्न होते हैं। पेट में जलन, मरोड़ और उल्टियां होती है। मुंह-गले में दर्द-जलन होने लग जाती है। शरीर में ऐंठन, खून मिश्रित अतिसार शुरू हो सकता है। हृदय का काम करना धीमा पड़ सकता है और जान भी जा सकती है।

इसलिए, कभी भी आक का औषध के रूप में सेवन बिना डॉक्टर की सलाह के स्वयम से न करें। यह आंतरिक रूप से सही प्रकार-सही अनुपान के साथ न सेवन करने पर शरीर अपर दुष्प्रभाव toxic effects डाल सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार, आक के विषैले प्रभाव को हटाने के लिए घी, दूध और अन्य इसी प्रकार के चिकने पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद तुरंत ही डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

आंतरिक प्रयोग के लिए सेवन मात्रा

आंतरिक प्रयोग के लिए इसकी 200 mg से लेकर 600 mg की मात्रा है।

2 ग्राम – 4 ग्राम का प्रयोग उलटी लाता है।

सुझाव/सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. आक का पौधा विषैला है।
  2. The drug is highly toxic. Higher dosages cause vomiting, diarrhea, bradycardia and convulsions.
  3. Very high dosages may cause death following bradycardia, convulsion, diarrhea, and vomiting.
  4. Can cause convulsion, diarrhea, vomiting, slowed but stronger heartbeat, labored respiration, increased blood pressure, and possible death.
  5. Following gastric lavage, treatment for poisonings should proceed symptomatically.
  6. इसे आंतरिक रूप से प्रयोग करने के लिए बहुत अधिक सावधानी की ज़रूरत है।
  7. इसमें एंटीफर्टिलिटी गुण है और इसके सेवन से प्रजनन क्षमता घटती है।
  8. यह गर्भावस्था में कतई प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह abortifacient है और गर्भ नष्ट करता है।
  9. यह गर्भाशय में संकुचन uterine stimulating करता है।
  10. यह भ्रूण के लिए embryotoxic effects जहर है।
  11. यद्यपि आक का हर हिस्सा औषधीय है, potentially injurious to the body especially after prolonged or chronic use किन्तु यह लम्बे समय के प्रयोग के लिए नहीं है। यह बार-बार प्रयोग के उपयुक्त नहीं है।
  12. पुरुषों द्वारा लम्बे समय तक प्रयोग करने पर यह टेस्ट्स को नुकसान पहुंचा सकता है। यह टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को कम करता है। यह किडनी के काम करने को भी प्रभावित करता है।
  13. यह वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है।
  14. आक का दूध आँखों में पड़ने पर जलन-दर्द-सूजन हो जाती है। थोड़ी सी मात्रा आँख में जाने से आँख से पानी आने लगता है, और कुछ देर के लिए दिखाई देना बंद हो जाता है। ज्यादा मात्रा मे लेटेक्स आँख में पड़ जाने से अंधापन भी हो सकता है। ऐसा कहा जाता है, द्वतीय विश्व युद्ध के दौरान बहुत से मिस्र के पुरुषों ने अपनी एक आँख में इसका लेटेक्स डाल कर उसे खराब कर दिया जिससे उन्हें सेना में युद्ध करने के लिए शामिल न किया जा सके।
  15. अफ्रीका के सूडान में बहुत सी स्त्रियों ने गर्भ गिराने के लिए लेटेक्स को योनि में डाला जिससे उनकी जान चली गई।
  16. कम मात्रा में भी यह गर्भाशय में तेज़ संकुचन करता है।

पियाबासा (सैरेयक) Piyabasa- Vajradanti

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बारलेरिया प्रीओनिटिस, एक कंटीली औषधीय वनस्पति है जिसे बाड़ की तरह बगीचों में उगाया जाता है। इसे गमलों में भी उगा सकते हैं। इसके पुष्प बड़े पीले होते हैं और देखने में आकर्षक होते हैं। पिया बांसा के पौधे को वार्षिक और इसकी जड़ों को बहुवर्षायु समझा जा सकता है।

भारत में हम बारलेरिया प्रीओनिटिस को अनेकों नाम से जानते हैं। इसे पीतसैरेयक, कुरंटक, कटसैरेया, पियाबांसा, काँटाजाती, दासकरंटा, काँटासेरियो व वज्रदंती आदि नामों से पूरे देश में जाना जाता हैं। इसे बहुत जगह पर पीला वज्रदंती भी कहा गया है, क्योंकि इसके प्रयोग से दांत और मसूड़े सम्बन्धी विभिन्न रोगों में लाभ होता है। इसे अकेले ही या अन्य द्रव्यों के साथ दाँतों के हिलने, कीड़ा लगने, मसूड़ों से खून आने, मसूड़ों के फूल जाने में प्रयोग करते हैं।

bajradanti plant

इसे पिया बासा, कहते हैं व वासा Adusa, Bansa, Vasika की तरह कफजन्य रोगों में प्रयोग करते हैं। यह तासीर में गर्म होने के कारण वात-कफ दोष को संतुलित करता है। इसके सेवन से पित्तदोष की वृद्धि और वात-कफ दोष कम होता है।

औषधि की तरह इसके ताजे पत्तों, फूल, सूखे पंचांग (जड़, तना, पत्ते, फूल और फल) का प्रयोग किया जाता है। ताजे पत्तों का रस और पंचांग का काढ़ा बनाकर पीने से विभिन्न रोगों में लाभ होता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: बारलेरिया प्रीओनिटिस
  • कुल (Family): एकेंथेसिएइ
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा, मुख्य रूप से पत्ते और जड़
  • पौधे का प्रकार: कंटीली झाड़ी
  • पर्यावास और वितरण: भारत भर में गर्म प्रदेशों में

पियाबासा के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. Scientific name: Barleria prionitis var। dicantha
  2. संस्कृत: कुरंटक, पीतकुरव, वज्रदंती, Kurantaka, Koranda, Kerandaka, Sahachara, Sahacharah, Saireyaka, Ananta, Bana, Pitapushpaka, Pitasaireyaka, Pura, Udyanapaki, Vira
  3. Assamese: Shinti
  4. Bengali: Kantajati
  5. Gujrati: Kanta-Saerio, Kantasalio, Kanta Shelio
  6. हिन्दी: पियाबासा, कटसरैया, कोरांटी, Sahachara
  7. Kannada: Sahachara, Mullu gorate, Mullu gorante, Haladi gorate
  8. Kutch: Vajra daul
  9. Malayalam: Kirimkurunji, Karim Kurunni, Chemmulli, Shemmulli, Manjakanakambaram
  10. Marathi: Koranta, Koranti, Piwala Koranta, Koreta
  11. Oriya: Dasakeranda
  12. Punjabi: Sahachar
  13. Siddha: Chemmulli
  14. Tamil: Sammulli, Shemmuli, Varamuli
  15. Telugu: Mulu Gorinta Chettu, Muligoranta
  16. Unani: Katsaraiya, Piyabaasa
  17. Urdu: Pila Bansa, Piya Bansa
  18. English: Barleria, porcupine-flower, Common yellow nail dye, Thorn nails dye, Yellow Hedge Barleria (Barleria acanthoides is known as Vajradanti, Spiny White barleria; Barleria cristata L. is known as Jhinti, Kurabaka, Sahachara, Sahacharah, Crested purple nail dye, Philippine violet)
  19. German: Stachelschweinblume
  20. Myanmar: Leik – Su – Shwe
  21. Philippines: Kukong
  22. Spain: Espinosa Amarilla
  23. Sweden: Orange Kantax

पियाबासा का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
  • आर्डर Order: लैमिऐल्स Lamiales
  • परिवार Family: एकेंथेसिएइ Acanthaceae
  • जीनस Genus: बारलेरिया Barleria
  • प्रजाति Species: बारलेरिया प्रीओनिटिस Barleria prionitis L। (Porcupine flower, Barleria)

बारलेरिया पौधे की इस प्रजाति का नाम बारलेरिया प्रीओनिटिस है व इसके फूल पीले रंग के होते हैं। बारलेरिया के लालसफ़ेद Barleria cristata नीले रंग Barleria striosa के फूलों वाली प्रजाति भी मिलती है। इन सभी प्रजातियों को झिंटी, कटसरैया आदि नामों से जानते हैं।

पियाबासा के संघटक Phytochemicals

बीटा सीटोस्टेरोल, पोटैशियम

पियाबासा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

पियाबासा स्वाद में कड़वा, मीठा, खट्टा, गुण में हल्का, चिकना करने वाला, स्वभाव से गर्म है और कटु विपाक माना गया है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत।

उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): मधुर, अम्ल, तिक्त,
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

कर्म Action

  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • मूत्रल : द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये। diuretics
  • मूत्रकृच्छघ्न: द्रव्य जो मूत्रकृच्छ strangury को दूर करे।
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • श्लेष्महर: द्रव्य जो चिपचिपे पदार्थ, कफ को दूर करे।
  • विषहर : द्रव्य जो विष के प्रभाव को दूर करे।
  • वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।

आयुर्वेदिक दवाएं

  1. अष्टवर्ग क्वाथ (नर्वस रोग)
  2. सहचरादि तेल (न्यूरोलॉजिकल रोगों के लिए)
  3. नीलीकाद्यया तेल (बालों के सफ़ेद होने को रोकने के लिए)
  4. रस्नादी क्वाथ चूर्ण (नर्वस सम्बन्धी रोग)

पियाबासा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Piyabasa in Hindi

पियाबांसा आसानी से उपलब्ध हो जाने वाली औषधि है। इसे कफजन्य विकारों, मुख रोगों, त्वचा रोगों में घरेलू उपचार की तरह प्रयोग किया जा सकता है। पियाबांसा को पुराने चमड़ी के रोगों जैसे की खुजली, एक्जिमा, आदि में बाह्य रूप से लगा सकते हैं। फोड़े-फुंसी में इसकी जड़ का पेस्ट लगाया जाता है। साइटिका, हाथ-पैर की जकड़न में इसकी पुल्टिस को बाँध कर लगाने से लाभ होता है। आयुर्वेद में इसके पुष्पों का आन्तरिक प्रयोग एडिमा, माइग्रेन, आंतरिक फोड़ों में दिया जाता है।

1- अतिसार diaarhoea

इसके रस को दो-तीन चम्मच की मात्रा में एक ग्राम सोंठ के साथ मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें।

2- कफ, खांसी, कफजन्य रोग cough, cough related problems

  • कटसरैया के आठ-दस पत्ते लेकर, कूट कर काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पियें। अथवा
  • इसके पत्तों का दो-तीन चम्मच स्वरस शहद मिलाकर पियें। अथवा
  • इसके पंचांग को 3-5 ग्राम की मात्रा में लेकर डेढ़ गिलास पानी में उबाल कर काढ़ा बनाएं। इसे छान कर पी लें।

3- बच्चों को कफ, कफ के कारण बुखार cough in children, fever

इसके पत्तों के रस को शहद के साथ चटायें।

4- दाद – खुजली ringworm, itching, eczema

इसके पत्तों का लेप करें।

5- गठिया, आर्थराइटिस, जोड़ों की सूजन, लीवर की सूजन, आँतों की सूजन, शरीर में दर्द आदि

इसके पंचांग + सोंठ का काढ़ा बनाकर सेवन करें।

6- दांत सम्बन्धी रोग, दांत में दर्द, मसूड़ों से खून आना, दांतों का ढीला होना, मसूड़ों का फूल जाना

  • इसके पत्तों को पानी में उबाल कर काढ़ा बना कुल्ला करें। अथवा
  • इसके पत्ते + हल्दी + अकरकरा + नमक + सरसों का तेल, मिलाकर एक बारीक मुलायम पेस्ट बना लें और इससे मसूड़ों की मालिश करें।

7- मूत्र सम्बन्धी दिक्कत, पेशाब कम आना

इसके पत्तों में पोटैशियम की अच्छी मात्रा पायी जाती है व इन्हें साफ़-कूट कर स्वरस निकाल कर पानी मेवं मिलाकर पीने से लाभ होता है।

8- स्वप्नदोष, spermatorrhoea, धातुरोग, लिकोरिया, प्रमेह, प्रदर Dhatu rog, Prameha Roga of men, Pradar of females

इसके पत्तों से 4-5 चम्मच रस निकालकर मिश्री के साथ दिन में दो बार सेवन करें।

9- गर्भ ठहरने में दिक्कत, पुरुष इनफर्टिलिटी, वीर्य की कम मात्रा, महिला इनफर्टिलिटी Infertility problem in male or female

इसके पंचांग को दस ग्राम की मात्रा में लेकर डेढ़ गिलास पानी में डाल कर उबालें और जब एक कप पानी बच जाए तो इसे छान कर पियें। ऐसा तीन महीने तक लगातार करें।

10- सूजन, दर्द, घाव, घाव धोने के लिए, चमड़ी के रोग, फोड़ा-फुंसी, बालों के लिए External use

पौधे के पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाएं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. इसके पत्तों में काफी मात्रा में पोटैशियम पाया जाता है।
  2. यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  3. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  4. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  5. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  6. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।

Laung लौंग जानकारी, उपयोग और सावधानियां

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लौंग को एक मसाले की तरह पूरी दुनिया में प्रयोग किया जाता है। इसे खाने में मुख्य रूप से फ्लेवर देने के लिए डालते हैं। लवंग एक पेड़ से प्राप्त सुखाई हुई कलियाँ हैं।

लौंग के अनेकों औषधीय प्रयोग हैं। लवंग, देवकुसुम, चन्दनपुष्प, श्रीसंज्ञ, श्रीपुष्प, वारिपुष्प, ग्रहणीहर, दिव्यगंध, श्रीप्रसूनक आदि इसके संस्कृत नाम है। कन्नड़ में लवंगकलिका, तेलुगु में लवंगलू, तमिल में किरम्बेर, और इंग्लिश में क्लव्स / क्लोव्ज़ कहते हैं। लैटिन में इसे कैरियोफ़िलस एरोमेटिक्स के नाम से जानते हैं।

cloves

लौंग का पेड़ सदाहरित होता है व इसमें उत्त्पति के नौं वर्ष बाद पहली बार पुष्प आता है। यह एक सुगन्धित वृक्ष है। भारत में इसकी दक्षिण राज्यों में अधिक होती है। जिसे हम लौंग कहते हैं, वह वृक्ष के फूलों की कलियाँ हैं। लौंग के आगे के भाग में दिखने वाली गोलाई में फोलों की चार पंखुड़ियां, अनेकों पुंकेसर, और एक गर्भतंतु होता है। लौंग की कलियाँ जब लाल रंग की होती हैं तभी उन्हें तोड़ कर सुखा दिया जाता है। यदि यह कलियाँ वृक्षों से न तोड़ी जाएँ तो यह पुष्प में बदल जाती हैं। लवंग के पेड़ से सबसे अधिक इन शुष्क कलियों का ही प्रयोग होता है।

आयुर्वेद में इसे प्राचीन समय से ही रोगों के उपचार में अकेले ही या अन्य घटकों के साथ औषधीय प्रयोजनों हेतु प्रयोग करते हैं। लवंग, शीतल चीनी, सुपारी, जायफल और जावित्री को पञ्चसुगंधि कहा जाता है। लौंग को कटु, तिक्त, नेत्रों के लिए हितकारी, शीतल, दीपन, पाचन, रुचिकर, कफ-पित्त दोष के कारण होने वाले रोगों, रुधिर विकार, वमन, आध्मान, शूल, कास-श्वास, हिचकी तथा क्षय रोगों में प्रयोग किया जाता है। लौंग को लेने की आयुर्वेद में बताई मात्रा केवल आधा आना से लेकर दो आना है। काढ़े को दो तोले से लेकर चार तोले तक लिया जा सकता है। लौंग का तेल बहुत ही कम मात्रा में आंतरिक प्रयोग में लिया जाता है। लौंग के तेल का वर्णन चरक तथा सुश्रुत संहिता में नहीं पाया जाता है। इसके बारे में आत्रेय संहिता में बताया गया है। लौंग के तेल की तीक्ष्णता समय के साथ कम होती चली जाती है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: कैरियोफ़िलस एरोमेटिक्स Caryophyllus aromaticus
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: सुखाई हुई कली, पत्ते और तना
  • पौधे का प्रकार: पेड़
  • वितरण: दक्षिण प्रान्तों में

पर्याय

  • Syzygium aromaticum (L.) Merr। & Perry
  • Eugenia aromatica (L.) Baill.
  • Eugenia caryophyllata Thunb.
  • Eugenia caryophyllus (Spreng.) Bull.& Harr.

लौंग के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Devapushpa
  2. हिन्दी: लौंग
  3. अंग्रेजी: Cloves
  4. असमिया: Lavang, Lan, Long
  5. बंगाली: Lavang
  6. गुजराती: Lavang, Laving
  7. कन्नड़: Lavanga
  8. मलयालम: Karampu, Karayampoovu, Grampu
  9. मराठी: Lavang
  10. उड़िया: Labanga
  11. पंजाबी: Laung, Long
  12. तमिल: Kirambu, Lavangam
  13. तेलुगु: Lavangalu
  14. उर्दू: Qarnful, Laung

लौंग का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  7. आर्डर Order: Myrtales
  8. परिवार Family: Myrtaceae – Myrtle family
  9. जीनस Genus: Syzygium P. Br. ex Gaertn. – syzygium
  10. प्रजाति Species: Syzygium aromaticum (L.) Merr. & L.M. Perry – clove

लौंग के संघटक Phytochemicals

लवंग में Clove bud में उड़नशील तेल करीब 15–18% होता है जिसमे यूजीनॉल eugenol (80– 90%), यूजीनाइल एसीटेट eugenyl acetate (2–27%), बी कैरयोफिलेन b-caryophyllene (5–12%)। तथा अन्य घटक होते हैं (\ethylsalicylate, methyleugenol, benzaldehyde, methylamyl ketone and a-ylangene)।

  • पत्तों में 2% तेल होता है जिसमें यूजीनॉल eugenol 82–88% होता है।
  • तने में 4–6% तेल होता है जिसमें यूजीनॉल eugenol 90–95% होता है।

लौंग का तेल

लौंग का तेल, लौंग के पेड़ की कलियों, पत्तों और तने से डिस्टिलेशन करने पर प्राप्त होता है। ताज़ा तेल पीला लेकिन कुछ समय बाद कुछ लाल से रंग का होता है।

इसमें कपूर के समान गुण होते है। त्वचा पर इससे मालिश करने पर त्वचा का रंग लाल हो जाता है। इसमें कीड़े मारने की शक्ति पायी जाती है। इसे दांतों के दर्द में अक्सर प्रयोग किया जाता है। लौंग के तेल को लगाने पर शून्यता आती है, प्रभावित हिस्सा सुन्न हो जाता है जिससे दर्द में राहत मिलती है।

लौंग के तेल के आंतरिक प्रयोग

  1. लौंग का तेल, शूल को बाहर निकालता है।
  2. यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  3. यह आँतों का प्रेरक है।
  4. पेट के दर्द में बतासे पर इसकी 3 बूँद डाल कर लेने से लाभ होता है।

लौंग का तेल आंतरिक प्रयोग के लिए बहुत ही कम मात्रा में प्रयोग किया जाता है,आधी से लेकर तीन बूँद तक।

लौंग के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

लवंग तिक्त, कटु, स्निग्ध, कटु विपाक, शीतल, दीपन, पाचन, रुचिकर और कफपित्तहर है। रस में कटु व तिक्त होने के कारण, यह कफ और वात को कम करता है। वीर्य में शीतल होने से यह पित्त को कम करता है। शीत गुण के कारण ही यह सूजन में लाभकारी है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त Pungent, bitter
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): शीत Cold
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु Pungent

कर्म Principle Action

  1. पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष निवारक हो। antibilious
  2. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  3. श्वास-कासहर: द्रव्य जो श्वशन में सहयोग करे और कफदोष दूर करे।
  4. पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  5. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  6. हृदय: द्रव्य जो हृदय के लिए लाभप्रद है।
  7. कंठ्य: द्रव्य जो गले के लिए लाभप्रद है।
  8. शिरोविरेचन: द्रव्य जो सिर के स्रोतों में रुकावट खोले वाला हो।
  9. छर्दीनिग्रहण: द्रव्य जो जी मिचलाना को रोके।
  10. हिक्कानिग्रहण: द्रव्य जो हिचकी को रोके।
  11. तृष्णानिग्रहण: द्रव्य जो अधिक प्यास लगना रोके।
  12. शूलप्रशमन: द्रव्य जो आँतों में ऐंठन रोके।
  13. वेदनास्थापन: दर्द निवारक।
  14. अग्निमांद्यनाशक: द्रव्य जो पाचन को ठीक करे।

लौंग के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Cloves in Hindi

चक्रदत्त ने लवंग का उपयोग पिपासा और उत्क्लेश (हमेशा उलटी जैसा लगना) में बतलाया है। कॉलरा जिसे विषूचिका कहते हैं, में हमेशा प्यास लगने की स्थिति में इसका प्रयोग अच्छे परिणाम देता है। लवंग को पानी में उबालकर, इस पानी को पीने से अधिक प्यास लगना और उबकाई आना दूर होता हैं।

लवंग शीतल है और पित्त की अधिकता को कम करती है। यह विषघ्न, दर्द शामक, रक्त्दोषहर, व पाचक है। लौंग का पेस्ट व इसका तेल बाह्य रूप से भी प्रयोग किये जाते हैं।

बाह्य प्रयोग स्पर्शज्ञानहारी और सुन्नता पैदा करता है। इसके लेप से लालिमा आती है। यह स्फोटक / फोड़े पैदा करने वाला व दर्द निवारक है।

वृष्य योगों में और औषधियों में इसका अधिक प्रयोग किया जाता है। स्तंभक तिलाओं में इसका प्रयोग जननेंद्रिया को शून्य करता है जिससे स्तम्भन देर तक रहता है।

लवंगादी चूर्ण, लावंगादि वटी, लावंगादि कषाय, लावंगादि तेल, प्रलेप Lavangadi churna, Lavangadi vati, Devakusumadi rasa, Sudarsana churna, Pippalasava and Khadirarista आदि इसकी कुछ आयुर्वेदिक औषधियां हैं।

सिर के बालों का पैच में उड़ना

इच्छाभेदी रस की चार-पांच गोलियों को पीस लें। इसमें लौंग के तेल की कुछ बूँदें मिलाकर प्रभावित जगहों पर दिन में दो बार, सुबह और शाम लगायें। यदि रैश होने लगें तो इस पेस्ट को न लागएं और चमेली का तेल लगाएं। ठीक हो जाने पर फिर से लगाएं।

मोतियाबिन्द

लौंग को पत्थर पर घिस कर रात में सोते समय अंजन की तरह लगाया जाता है। इसको लगाने से जलन होती है इसलिए तुरंत ही शहद लगाने का सुझाव है।

मुहांसे

लौंग को घिस कर मुहांसे पर लगाएं।

साइटिका

पिसी हुई दो लौंग या केवल एक लौंग को लहसुन की कलियों के साथ दिन में दो बार, सुबह-शाम खाएं।

अधिक प्यास लगना

२-३ लौंग को एक कप पानी में उबालें। गुनगुना रहने पर पियें।

बदहजमी, अपच, भोजन का न पचना

लौंग 8 + हरीतकी 2 + पिप्पली 4 + सेंधा नमक २ चुटकी, को मिलाकर पीस लें। इसे सुबह और शाम, खाना खाने के बाद खाएं।

जुखाम, नजला

लौंग, सोंठ/अदरक, तुलसी का काढ़ा बनाएं और शहद मिलाकर पियें।

वाजीकरण

अकरकरा की जड़ को लौंग के साथ चबाया जाता है।

दांत में दर्द

लौंग का तेल प्रभावित दांत पर लगायें।

लार कम बनना

2-3 लौंग चबाएं।

मुंह से बदबू आना

लौंग को खाना खाने के बाद मुख में रखकर चूसें।

जुखाम – रायनाइटिस

लौंग को मुख में रखकर चूसें।

जीभ का पित्त की अधिकता से फट जाना

  1. लौंग को मुख में रखकर चूसें।
  2. लौंग की औषधीय मात्रा
  3. लौंग को पाउडर करके लेने की मात्रा 100-300 mg है।
  4. इसकी एक से दो कली को चबा सकते हैं।
  5. लौंग के तेल को लेने की मात्रा आधा से लेकर छः बूँद तक है।

सुझाव /सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. बाज़ार में मिलने वाली बहुत सी लौंग में तेल निकाला हुआ होता है।
  2. अच्छी / उत्तम पुष्ट लौंग को पानी में डालने पर वह तैरती है, जबकि तेल रहित लौंगनीचे बैठ जाती है।
  3. खाने की तरह लेने का गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान सेवन कोई नुकसान नहीं करता।
  4. इसे अधिक मात्रा में न लें।
  5. तेल से cheilitis, dermatosis, stomatitis हो सकता है।
  6. इसे बच्चों को न दें।
  7. लौंग थक्कारोधी anticoagulant दवाओं के साथ इंटरैक्ट कर सकती है।
  8. यह खून को पतला कर सकती है।
  9. कुछ लोंगों को लौंग से एलर्जी हो सकती है।
  10. इसमें पाया जाने वाला यूजिनोल म्यूकस मेम्ब्रेन में जलन पैदा कर सकता है।
  11. बाह्य प्रयोग से छाले पड़ सकते हैं।
  12. लौंग मूत्रजनन है.
  13. यूनानी मत अनुसार यह तीसरे दर्जे में गर्म और खुश्क है।

हींग Asafoetida उपयोग, लाभ और सावधानियां

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हींग Asafoetida,को तो सभी जानते हैं। इसे बहुत से भोज्य पदार्थों जो की गैस बनाते हैं, जैसे की दाल, पकौड़े, गोभी, बीन्स, आदि बनाते समय एक सामग्री के रूप प्रयोग करते हैं। इसे घरेलू उपचार के रूप में भी पाचन रोगों में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से अफारा दूर होता है। छोटे बच्चों में भी इसे पानी में घिस कर नाभी के आस-पास लगा देने से गैस, पेट का दर्द आदि दूर होते हैं।

hing ke upyog

हींग के पौधे कश्मीर, बालटिस्तान, अफगानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। भारत में हींग को मुख्य रूप से अफगानिस्तान तथा फारस से आयात करते हैं। आयातित होने के कारण यह काफी महंगी होती है व उत्तम गुणवत्ता की हिंग मिल पाना भी आजकल मुश्किल है।

हींग, तेल और रालयुक्त गोंद है जिसे इंग्लिश में ओले-गम-रेसिन कहते हैं। हींग के पौधे की जड़ एवं तने पर चीरा लगाकर इस गोंद को प्राप्त करते हैं। हींग के पौधे पांच फुट तक ऊँचे हो सकते हैं। इनका तना कोमल होता है। पत्तियां कोमल, रोयेंदार, संयुक्त, 2-4 पक्षयुक्त होती हैं। फूलों का रंग पीला होता है और गाजर कुल के अन्य पौधों के तरह छतरी की तरह निकलते हैं। जड़ें गाजर की तरह कन्द होती हैं। इन कन्द रुपी जड़ों से 4-5 साल की आयु होने पर हींग को प्राप्त किया जाता है। हींग के फल अज्जूदान कहलाते हैं। पत्तो का भी साग बनाकर खाया जाता है।

हींग को प्राप्त करने के लिए, मार्च-अप्रैल में फूल आने के पहले, जड़ों के पास की मिट्टी को खुरच कर हटा लिया जाता है। इससे जड़ें बाहर दिखने लगती है। इसके बाद जड़ के कुछ ऊपर तने से पौधा पूरा काट दिया जाता है। कटे तल से सफ़ेद रंग का गाढ़ा स्राव निकलने लगता है। इस पर धूल-मिट्टी न जमे इसलिए इन्हें ढक दते हैं। कुछ दिनों के बाद, निकले पदार्थ को खुरच कर रख लेते हैं तथा दूसरा कट लगा देते हैं, जिससे नया निर्यास मिल सके। इस तरह कुछ महीने हींग को इकठ्ठा करते हैं जब तक स्राव होना बंद न हो जाए।

बाज़ार में कई प्रकार की हींग उपलब्ध है। इनमे से हीरा हींग सबसे उत्तम मानी जाती है। महंगी होने से बहुत से नकली और घटिया गुणवत्ता की हींग भी मार्किट में उपलब्ध है। दवा के रूप में उत्तम हिंग को कम मात्रा में प्रयोग करने से ही फायदा होता है।

सामान्य जानकारी

  1. वानस्पतिक नाम: Ferrula asafoetida, Ferula foetida (Bunge) Regel
  2. कुल (Family): छत्रक कुल
  3. औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: गोंद
  4. पौधे का प्रकार: पांच फुट तक के कोमल काण्ड वाले पौधे
  5. वितरण: कश्मीर, बालटिस्तान, अफगानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि
  6. पर्यावास: ठन्डे प्रदेश, मध्य एशिया, ईरान और अफगानिस्तान

हींग के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Ramatha, Sahasravedhi, Ramatta, Bhutnasan, Hingu, Sulansan, Bahleeka, Suraini
  2. हिन्दी: हींग Hing, Hingda
  3. अंग्रेजी: Asafoetida, Asafetida, Asant, Devil’s Dung, Gum Asafetida
  4. असमिया: Hin
  5. बंगाली: Hing
  6. गुजराती: Hing, Vagharni
  7. कन्नड़: Hing, Ingu
  8. मलयालम: Kayam
  9. मराठी: Hing, Hira, Hing
  10. उड़िया: Hengu, Hingu
  11. पंजाबी: Hing
  12. तमिल: Perungayam
  13. तेलुगु: Inguva
  14. उर्दू: Hitleet, Hing
  15. अरेबिक Arabic: Zallouh, Anjadan, Hilteet, Simagh-ul-mehroos
  16. यूरोप Europeans: Devil’s dung
  17. पर्शिया Persian: Angoza, Angzoo, Amma, Anksar, Nagoora, Nagsatgudha
  18. तुर्की Turkish: Şeytantersi (devil’s sweat), şeytan boku (devil’s shit) or şeytanotu (the devil’s herb)

हींग का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: Rosidae
  7. आर्डर Order: Apiales
  8. परिवार Family: एपिएसिए Apiaceae ⁄ Umbelliferae – गाजर परिवार
  9. जीनस Genus: फेरुला Ferula L – ferula
  10. प्रजाति Species: फेरुला एसाफोएटिडा Ferula assa-foetida L – asafetida

हींग के संघटक Phytochemicals

गोंद का हिस्सा Gum fraction 25%: Glucose, galactose, L-arabinose, rhamnose and glucuronic acid

राल Resins 40-64%: Ferulic acid esters (60%), free ferulic acid (1.3%), asaresinotannols and farnesiferols A, B and C, coumarin derivatives (e .g. umbelliferone), coumarin-sesquiterpene coinplexes (e.g . asacoumarin A and asacoumarin B). Free ferulic acid is converted to coumarin during dry distillation.

उड़नशील तेल Volatile oils: 3-17%. Sulfur containing compounds with disulfides as major components, various monoterpenes.

अलग – अलग फेरुला स्पीशीज के पौधों से प्राप्त हींग के संगठन एक समान नहीं होते।

पौष्टिकता

  1. कार्बोहायड्रेट 68%
  2. मिनरल 7%
  3. प्रोटीन 4%
  4. फाइबर 4%
  5. नमी 16%

हींग के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

हींग स्वाद में कटु गुण में लघु, चिकनी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। यह पित्त वर्धक है और पाचन को तेज करती है।

  • रस (taste on tongue): कटु
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • दोष पर असर: वात और कफ को संतुलित करना व पित्त वर्धक

यह कटु रस औषधि है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि।

कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। इसका अधिक सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

प्रधान कर्म

  1. अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  2. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  3. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  4. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  5. पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
  6. छेदन: द्रव्य जो श्वास नलिका, फुफ्फुस, कंठ से लगे मलको बलपूर्वक निकाल दे।

आयुर्वेदिक दवाएं

  1. हिंग्वाष्टक चूर्ण
  2. हिंगवादि चूर्ण
  3. हिन्गुवचादि चूर्ण

मुख्य रोग जिनमें हींग का प्रयोग लाभप्रद है:

  1. अग्निमांद्य
  2. आध्मान
  3. अनाह
  4. गुल्म
  5. शूलरोग
  6. उदर / पेट रोग
  7. हृदय रोग
  8. कृमिरोग

हींग के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Asafoetida in Hindi

हींग बहुत वीर्यवान तेज गंध युक्त निर्यास है। इसमें एक विशिष्ट गंध होती है जो की इसमें उपस्थित डाईसल्फाइड के कारण होती है। ऐसा माना जाता है की कच्चा हींग उलटी लाता है इस लिए इसे घी में भून कर प्रयोग करते हैं। यह शरीर में गर्मी बढ़ाने वाला मसाला है। खाने में इसे डालने का मुख्य कारण पाचन में गैस को न बनने देना है। यह आक्षेपनिवारक, आध्माननाशक, बल्य, मृदु विरेचक, मूत्रल, रजःप्रवर्तक, कृमिघ्न और वृष्य neuroprotective, antispasmodic, antiulcerogenic, hepatoprotective, hypotensive, relaxant, nephroprotective, antiviral, antifungal, chemopreventive, antidiabetic, antioxidant है।

हींग का अधिक मात्रा में सेवन नुकसान करता है। यह शरीर का ताप तो नहीं बढ़ाता परन्तु धातुओं में उष्मा बढ़ा देता है। जहाँ कम मात्रा में यह पाचन में सहयोगी है, वहीँ इसकी अधिक मात्रा पाचन की दुर्बलता, लहसुन की तरह वाली डकार, शरीर में जलन, पेट में जलन, एसिडिटी, अतिसार, पेशाब में जलन आदि दिक्कतें पैदा करता है।

हींग का तेल वातनाशक है। यह पेट में दर्द, गैस आदि में राहत देता है। आमवात में सामान्य तेल के साथ मिलाकर इससे मालिश करते हैं। हिंग के तेल के सेब्वन से मासिक में अधिक रक्त जाता है। इसे आंतरिक रूप से लेने की मात्रा आधा बूँद से लेकर तीन बूँद है। इसे बताशे पर डाल कर लेते हैं।

हींग के पित्त वर्धक गुण से इसे पित्त की कमी से होने वाले अपच में, वायुनाशक होने से आध्मान-शूल, ग्रहणीशूल में, और कफनाशक होने से पुराने कफ रोग व अस्थमा में प्रयोग करते हैं।

अपच

हींग को तड़के के रूप में प्रयोग करें।

खांसी, टीबी

शहद के साथ हींग को चाट कर लें।

जहरीले कीट, बिच्छू, ततैया आदि काट लेना

प्रभावित जगह पर हींग का लेप करें।

पुराना घाव

हींग को नीम के पत्तों के साथ पीसकर लेप लगाएं।

हिस्टीरिया

हींग सुंघाने से लाभ होता है।

सांस की तकलीफ

पानी में घोल कर हींग का सेवन करें।

हृदय के लिए

इसके प्रयोग से हृदय को ताकत मिलती है, थक्का नहीं जमता और रक्त संचार ठीक होता है।

पेट में दर्द, गैस, अफारा

  1. एक रत्ती हींग को गर्म पानी के साथ निगल जाएँ। अथवा
  2. भुनी हींग को सेंध नामक के साथ कम मात्रा में लें। अथवा
  3. घी में भुनी हींग दो चुटकी को अजवाइन, हरीतकी, काला नमक (प्रत्येक 2 ग्राम) के साथ मिला बारीक़ चूर्ण बना कर रख लें। इसे खाना खाने के बाद चौथाई-आधा चम्मच लें। अथवा
  4. हींग को आधा चम्मच अजवाइन के साथ गर्म पानी के साथ लें। अथवा
  5. हिंग्वाष्टक चूर्ण का सेवन करें। अथवा
  6. हींग को सिरके के साथ चाट कर लें। अथवा
  7. हींग चुटकी भर, अदरक रस आधा चम्मच, नीबू एक चम्मच, काली मिर्च का चूर्ण को मिलाकर गर्म पानी के साथ लें।
  8. अथवा नाभि के आस-पास पेस्ट रूप में लगाएं।

भूख न लगना

भुनी हींग को 1 रत्ती की मात्रा में पिप्पली के चूर्ण और शहद के साथ लें।

हींग की औषधीय मात्रा

हींग को लेने की औषधीय मात्रा 125-500 mg है। अधिकतर मामलों में 250mg मात्रा पर्याप्त होती है। अधिक मात्रा में इसे लेने से पित्त की अधिकता, पेट की जलन, सिर में दर्द आदि समस्याएं हो सकती हैं।

यह मात्रा उत्तम गुणवत्ता की हींग के लिए है। बाजार में जो तड़के वाली हींग मिलती है, उसमें पचास प्रतिशत से अधिक आटा, खाने वाला गोंद और बहुत कम हींग होती है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह पित्त को बढ़ाती है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. रक्तपित्त में इसका अधिक सेवन समस्या को गंभीर कर सकता है।
  6. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  7. इससे मासिक स्राव को बढ़ाने वाला और गर्भनाशक माना गया है।
  8. स्तनपान के दौरान भी इसका सेवन दवा के रूप में न करें क्योंकि दूध से बच्चे में जाने पर यह methaemoglobinaemia कर सकता है।
  9. बच्चों को आंतरिक प्रयोग के लिए न दें। बाह्य रूप से पानी में घुला कर लगा सकते हैं।
  10. शिशुओं को देने पर यह हीमोग्लोबिन को ऑक्सीडाइज कर देता है जिससे methaemoglobinaemia हो जाता है।
  11. यदि सर्जरी कराने वाले हैं, तो इसका सेवन २ सप्ताह पहले से बंद कर दें क्योंकि इसका सेवन शरीर में गर्मी बढ़ाता हैं खून पतला करता है, थक्के बनना रोकता है और इन सबसे खून के अधिक बहने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  12. ऐसा कोई भी रोग जिसमें पेट में या शरीर में जलन होती हो, में इसका सेवन दवा रूप में न करें।
  13. हिंग उच्चरक्तचाप, एंटीप्लेटलेट और एंटीकोएगुलेंट दवाओं के साथ ड्रग इंटरेक्शन संभव है। इसलिए इन सभी मामलों में सावधानी रखें।
  14. हींग का बाह्य प्रयोग त्वचा को लाल कर सकता है। यह dermatitis के लक्षण उत्पन्न कर सकता है।
  15. चूहों में किये गए परीक्षण में हींग के सेवन से कमजोर sister chromatid exchange-inducing effect स्पर्म के बनने के दौरान देखा गया। यह क्रोमोसोमल को डैमेज करने वाला असर हींग में मौजूद coumarin के कारण होता है।

चुकंदर Beetroot जानकारी, लाभ और सावधानियां

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चुकंदर को इंग्लिश में शुगर बीट, बीट, बीटरूट, गार्डन बीट और बीटा वलगेरिस के नाम से जानते हैं। गन्ने के अतिरिक्त चुकंदर ही एक ऐसा पादप है जिससे चीनी प्राप्त की जा सकती है। यह मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध के शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों की फसल है। यह एशिया, समेत रूस, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका आदि देशों में उगाया जाता है।

chukandar ka laabh

चुकंदर के पत्तों को शाक रूप में व लाल रंग की जड़ को सब्जी, सलाद और जूस की तरह खाया जाता है। चुकंदर का जूस अकेले ही या अन्य फलों के जूस के साथ मिला कर पिया जाता है। चुकंदर का जूस शारीरिक क्षमता को बढ़ाता है। यह बहुत स्वास्थ्यवर्धक और आयरन से भरपूर होता है। इसका जूस वजन घटाने में सहायक करता है। चुकंदर को दैनिक भोजन में शामिल करने के अनेकों लाभ हैं। लेकिन इसे कम मात्रा में ही लेना चाहिए। इसमें पाया जाने वाला ओक्सालिक एसिड अधिक मात्रा में सेवन करने पर नुकसान करता है।

चुकंदर के नाम

  1. हिंदी: चुकंदर
  2. अंग्रेजी: Beet
  3. लैटिन: Beta vulgaris
  4. फ्रेंच French: Bette
  5. जर्मन German: Baisskohl
  6. स्पेनिश Spanish: Barba bictola
  7. ईटालियन Italian: Bictola
  8. चायनीज़ Chinese: T’ientsai

चुकंदर के घटक

  • Saccharose: A nonreducing disaccharide made up of d-glucose and d-fructose.
  • Other oligosaccharides: refined sugar, ketose.
  • Polysaccharides: including galactans, arabans, pectin.
  • Fruit acids: including L(-)-malic acid, D(+)-tartaric acid, oxaluric acid, adipic acid, citric acid, glycolic acid, glutaric acid.
  • Amino acids: including asparagine, glutamine, Betaine (trimethylglycine) Triterpene saponins

प्रति 100 ग्राम ताजे चुकंदर में पोषण Nutrition per 100 gram

  1. कार्बोहाइड्रेट 9.96 ग्राम
  2. शुगर्स 7.96 ग्राम
  3. आहार फाइबर 2.0 ग्राम
  4. फैट 0.18 ग्राम
  5. प्रोटीन 1.68 ग्राम
  6. विटामिन ए 2 माइक्रोग्राम
  7. थाइमिन (विटामिन बी1) 0.031 मिलीग्राम
  8. रिबोफ़्लविन (विटामिन बी2) 0.027 मिलीग्राम
  9. नियासिन (विटामिन बी3) 0.331 मिलीग्राम
  10. पैंटोथेमिक एसिड (बी5) 0.145 मिलीग्राम
  11. फॉलेट (विटामिन बी9) 80 माइक्रोग्राम
  12. विटामिन बी6 0.067 मिलीग्राम
  13. विटामिन सी 3.6 मिलीग्राम
  14. कैल्शियम 16 मिलीग्राम
  15. आयरन 0.7 9 मिलीग्राम
  16. सोडियम 77 मिलीग्राम
  17. मैगनीशियम 23 मिलीग्राम
  18. फास्फोरस 38 मिलीग्राम
  19. पोटेशियम 305 मिलीग्राम
  20. जिंक 0.35 मिलीग्राम

चुकंदर के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits of Beetroot in Hindi

चुकंदर के सेवन के बहुत से लाभ हैं। इसमें पौष्टिक, एंटीइन्फ्लेमेटरी, एंटीकैंसर, एंटीट्युमर, एंटीएनिमिक व एंटीहेपेटोटॉक्सिक गुण पाए जाते हैं। जानवरों में किये गए अध्ययन दिखाते हैं, चुकंदर लीवर में फैट के स्टोरेज को रोकता है। इसलिए इसे लीवर के रोगों और फैटी लीवर में प्रयोग किया जाता है। यह cellulite और obesity में लाभ करता है।

रंग मे यह लाल होता है और खून में वृद्धि करता है। इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर कब्ज़ को नहीं होने देते। इसके अतिरिक्त यह कोलेस्ट्रोल को कम करने भी सहयोगी है। इसमें पाए जाने वाले नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट शरीर में फ्री रेडिकल डैमेज को रोकते हैं और रोगों से शरीर की रक्षा करते हैं। चुकंदर में मौजूद कैरोटिनोइड्स और फ्लेवोनोइड्स बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करते हैं।

चुकंदर हृदय के लिए लाभप्रद है। यह बुरे कोलेस्ट्रोल को धमनियों में जमने नहीं देता और उच्चरक्तचाप को कम करता है। इसमें नाइट्रेट्स होते हैं जो खून में नाइट्रिक ऑक्साइड गैस बनाते हैं जो की खून की नलियों को खोलती और बढ़े हुए रक्तचाप को कम करती है। यह धमनी के सख्त हो जाने व नसों की समस्या में लाभ करता है।  इसमें पाए जाने वाला नाइट्रेट गैस बनना कम करता है।

चुकंदर में पाए जाने खनिज लवण जैसे की सोडियम, पोटासियम, क्लोरिन, फोलिक एसिड, सल्फर और आयोडीन आदि स्वास्थ्य पर अच्छे प्रभाव डालते हैं। इसमें विटामिन्स की अच्छी मात्रा होती है। पोटेशियम शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है। क्लोरीन गुर्दों के शोधन में मदद करता है।

  1. चुकंदर में पाया जाने वाला बीटासाइनिन गांठों को नष्ट करता है।
  2. इसमें फोलिक एसिड (विटामिन बी-9 या फोलासीन या फोलेट) भी होता है। यह विटामिन कोशिका निर्माण और कोशिका वृद्धि के लिए आवश्यक है। स्वस्थ रक्त कोशिका के निर्माण के लिए और अनीमिया को रोकने के लिए यह अत्यंत ज़रूरी विटमिन है। फोलेट उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में भी मदद करता है।
  3. चुकंदर में कम किन्तु अच्छी गुणवत्ता का लौह, होता है जो रक्तवर्धन और शोधन के काम में सहायक होते हैं।
  4. इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट तत्व, बीटासाइनिन, कैरोटिनोइड्स और फ्लेवोनोइड्स शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं।
  5. यह प्राकृतिक शर्करा सुक्रोज़’ का स्रोत होता है। इसे खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है।
  6. यह गुर्दे और पित्ताशय को साफ करता है।
  7. इसे खाने से कब्ज़ नहीं होता इसलिए इसे पाइल्स में लेना चाहिए।
  8. चुकंदर के साथ गाजर का रस या सेब का रस मिलाकर पीने से खून की कमी की दूर होती है, फोलिक एसिड की आपूर्ति होती है और ताकत मिलती है। दूसरे रस में मिलाकर पीने से स्वाद बेहतर होता है और गले में चुभन भी नहीं होती।
  9. चुकंदर में बोरोन पाया जाता है जो की ह्यूमन सेक्स हॉर्मोन को बढ़ाता है जिससे सेक्स ड्राइव बढ़ती है।
  10. यह बहुत पौष्टिक है और पूरे पाचन तन्त्र पर टॉनिक असर दिखाता है।
  11. चुकंदर का रस पीने से लीवर से टोक्सिन दूर होते हैं। इसलिए इसे पीलिया, हेपेटाइटिस, फैटी लीवर, फ़ूड पोइज़निंग, उलटी, दस्त आदि में लेना लाभप्रद है।
  12. चुकंदर को अल्सर में लेने से लाभ होता है। इसके लिए चुकंदर के रस में शहद मिलाकर सप्ताह में दो से तीन बार खाली पेट लेना चाहिए।
  13. इसको खाने से खून साफ़ होता है और त्वचा में कान्ति आती है।

सावधानियां / चुकंदर खाने के नुकसान / कब न खाएं

  1. चुकंदर को ताज आंच पर नहीं पकाना चाहिए।
  2. चुकंदर को अधिक पका देने पर इसके स्वास्थ्यवर्धक गुण नष्ट हो जाते है।
  3. चुकंदर में सुक्रोज़ होता है इसलिए इसे डायबिटीज में न खाएं तो बेहतर है।
  4. इसे कच्चा खाने से पहले बहुत अच्छे से धो लें।
  5. जब चुकंदर का जूस पीना शुरू करें, तो शुरू में इसी कम मात्रा पियें। आधे मीडियम साइज़ चुकंदर का रस पीने से शुरुवात करें। मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं।
  6. एक दिन में एक कप जूस का सेवन पर्याप्त है।
  7. इसमें ओक्सालिक एसिड की काफी मात्रा होती है। इसका अधिकता में सेवन किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है।
  8. ऑक्सालेट वाले किडनी स्टोंस हों तो इसका सेवन कम मात्रा में करें।
  9. इसको पीने से पेशाब का रंग लाल-गुलाबी हो सकता है लेकिन इससे कोई नुकसान harmless side effect नहीं है।
  10. अधिक मात्रा में इसके सेवंन से ब्लड सीरम में कैल्शियम की कमी hypocalcemia, ऐंठन, उलटी, आदि हो सकते है।

गुणकारी पपीता Health Benefits of Papaya in Hindi

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पपीते का फल, कच्चा या हरा और पका दोनों ही तरीके से खाया जाता है। कच्चे पपीते को सब्जी के रूप में पका कर खाया जाता है। यह सब्जी पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होती है। पका पपीता स्वादिष्ट होता है और इसे खाने से शरीर को ज़रूरी पोषक पदार्थ मिलाते हैं व पाचन भी ठीक रहता है। पेट के सभी विकारोंकब्ज़ के लिए तो यह बहुत ही फायदेमंद है। रोजाना पपीता खाने से कब्ज़ नहीं रहती। पेट ठीक से साफ़ होता है तो दर्द, अफारा दूर रहते है और भूख ठीक से लगती है। यह आसानी से पचता है एवं सभी के खाने योग्य है।

papita ke fayade

पपीता गर्भावस्था में नहीं खाना चाहिए। पपीता और अन्नानास दो ऐसे फल हैं जिनको एलोपैथिक डॉक्टर भी खाने के लिए मना करते हैं।

Health Benefits of Papaya in Hindi

  1. पपीते के फल को खाने के बहुत से लाभ हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ नीचे दिए गए हैं:
  2. पपीते को खाने से पाचन समस्याएं दूर रहती हैं। यह अमाशय को मजबूत करता है। यह मुख्य रूप से कब्ज़ की दवाई है। सुबह खाली पेट पका पपीता खाने से कब्ज़ का निवारण होता है।
  3. पपीता खाने से आँतों की सफाई होती है, पाचन शक्ति बढ़ती है और भूख ठीक से लगती है। यह मन्दाग्नि, अजीर्ण, अफारा, पेट में जलन, प्यास न लगना आदि सभी में कारगर है।
  4. गरिष्ठ पदार्थों के सेवन करने से जो उपद्रव पैदा होते हैं, वे पपीता खाने से दूर हो जाते हैं।
  5. पपीता खाने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। पेड़ पर पके पपीते को सुबह खाली पेट खाने से उच्चरक्तचाप कम होता है। ऐसा कई सप्ताह तक लगातार करना चाहिए और पपीता खाने के २ घंटे बाद तक कुछ नहीं खाना चाहिए।
  6. पपीता का सेवन आँखों के लिए बहुत लाभकारी है। इसे खाने से आँखों की रौशनी बढ़ती है।
  7. पपीता का सेवन अस्थमा, खून की कमी, टीबी, बवासीर आदि सभी में लाभप्रद है। बवासीर में इसे खाने से खून गिरना बंद होता है।
  8. लीवर के रोग होने पर भी पपीता खाने से लाभ होता है। प्लीहा या तिल्ली के बढ़ जाने पर पपीता काली मिर्च डाल कर खाना चाहिए। बुखार में भी पपीता सेव्य है।
  9. इसके सेवन से मूत्र खुल कर आता है और इसलिये यह पेशाब रोग की पथरी में प्रयोग किया जाता है।
  10. पेट के कीड़ों में पके पपीते के बीजों का प्रयोग किया जाता है। इसके बीजों का पेस्ट बना लें। इसे पानी में मिला लें और छान कर पियें। ऐसा 2-3 दिन लगातार करें।

पपीता विटामिन ए और विटामिन सी का एक बहुत ही अच्छा स्रोत है। विटामिन ए एक फैट में घुलनशील विटामिन है जो कि एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी है। यह स्वस्थ दृष्टि, न्यूरोलॉजिकल फ़ंक्शन, स्वस्थ त्वचा तथा शरीर में अन्य कामों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सूजन को कम करने में मदद करता है। एंटीऑक्सिडेंट्स होने से यह एंटीएजिंग है। विटामिन ए मजबूत हड्डियों के निर्माण, जीन विनियमन, स्वस्थ त्वचा को बनाए रखने व बेहतर इम्युनिटी के लिए जिम्मेदार हैं।

विटामिन सी पानी में घुलनशील विटामिन है जो शरीर के संयोजी ऊतकों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करने में भूमिका निभाता है। विटामिन सी के सेवन से बहुत से रोगों जैसे की, हृदय रोग, जन्मपूर्व स्वास्थ्य समस्याओं, नेत्र रोग, आदि से बचाव होत्सा है। इसके अतिरिक्त यह विटामिन त्वचा पर झुर्रियों को आना कम करता है और शरीर की इम्युनिटी को बढ़ा बार बार होने वाले संक्रमणों से शरीर की रक्षा करता है।

नियमित रूप से पपीता खाने से कमर की चर्बी दूर होती है।

पपीते की पोषकता

पपीते के फल में कैलोरी में कम है तथा यह प्राकृतिक विटामिन और खनिजों में समृद्ध है। पपीता में विटामिन सी, विटामिन ए, रिबोफ़्लिविन, फोलेट, कैल्शियम, थाइमिन, लोहा, नियासिन, पोटेशियम और फाइबर पाया जाता है। फाइबर और पानी की अच्छी मात्रा होने से यह कब्ज़ में बहुत लाभकारी है।

तुलनात्मक रूप से कम कैलोरी (39 किलो कैलोरी / 100 ग्राम) होने के कारण यह मोटे लोगों के लिए एक पसंदीदा फल है जो वजन कम करने में सहायक है।

इसके अलावा, पपीता में कैरोटीनॉड्स, यपोटेशिम, सोडियम भी पाया जाता है। इसमें एस्कॉर्बिक एसिड की मात्रा संतरे (61 मिलीग्राम / 100 ग्राम) से अधिक है। यह एक स्वादिष्ट, पोषकता से भरपूर व पाचन गुण और सेरोटोनिन से युक्त फल है। पपीता सेरोटोनिन का एक अच्छा स्रोत है (0।9 9 मिलीग्राम / 100 मिलीग्राम)।

पपीते में प्रति 100 ग्राम पोषण की अनुमानित मात्रा नीचे दी गई है। ब्रैकेट में पपीते के सेवन से प्राप्त पोषक पदार्थ की मात्रा को दैनिक आवश्यक मात्रा के सन्दर्भ में प्रतिशत के रूप में दिया गया है।

  1. प्रोटीन 0.61 ग्राम
  2. वसा 0.14 ग्राम
  3. कार्बोहाइड्रेट 9.81 ग्राम
  4. चीनी 5.90 ग्राम
  5. आहार फाइबर 1.8 ग्राम
  6. ऊर्जा 39 किलो कैलोरी
  7. विटामिन ए 328 ग्राम (41%)
  8. थायामिन (विटामिन बी 1) 0.04 मिलीग्राम (3%
  9. रिबोफैविविन (विटामिन बी 2) 0.05 मिलीग्राम (4%)
  10. नियासिन (विटामिन बी 3) 0.338 मिलीग्राम (2%)
  11. विटामिन बी6 0.1 मिलीग्राम (8%)
  12. फोलेट (विटामिन बी 9) 38 ग्रा (10%)
  13. विटामिन सी 61.8 मिलीग्राम (74%)
  14. कैल्शियम 24 मिलीग्राम (2%)
  15. आयरन 0.10 मिलीग्राम (1%)
  16. सोडियम 3 मिलीग्राम (0%)
  17. मैग्नेशियम 10 मिलीग्राम (3%)
  18. फास्फोरस 5 मिलीग्राम (1%)
  19. पोटेशियम 257 मिलीग्राम (5%)

पपीते के पौधे के अन्य प्रयोग

  1. चेहरे पर झुर्रियां कम करने के लिए पपीते को चेहरे पर मलकर लगाना चाहिए।
  2. झाइयाँ पड़ जाएँ तो नियमित पपीते का गूदा चेहरे पर लगायें।
  3. पपीते को नियमित चेहरे पर लगाने से दाग धब्बे दूर होते हैं, कान्ति आती है और त्वचा कोमल होती है।
  4. पपीते के बीज के सेवन से मासिक स्राव नियमित होता है।
  5. कच्चे पपीते के रस को दाद-खाज-खुजली, एक्जिमा, आदि पर लगाने से यह सभी दूर होते हैं।
  6. पपीते के पत्ते को पानी के साथ अथवा इसका पेस्ट खाने से बुखार दूर होता है। डेंगू के बुखार में पत्तों के सेवन से प्लेटलेट बढ़ता है।

पपीते को खाने में सावधानियां

  1. 100-200 ग्राम पपीता रोज खाने से कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
  2. कच्चे पपीते के embryotoxic and teratogenic असर देखे गए हैं। कच्चा पपीता भ्रूण के लिए टॉक्सिक है और जन्मजात विकृतियाँ हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त यह गर्भ नाशक है, इसलिए इसे गर्भावस्था में न खाएं।
  3. पपीते का एक्सट्रेक्ट एंटीकोअगुललेंट दवाओं के साथ इंटरैक्ट कर सकता है। एस्पिरिन Warfarin के साथ सेवन ब्लीडिंग के खतरे को बढ़ा देता है।
  4. इसमें पोटैशियम की अच्छी मात्रा होती है।
  5. अधिक मात्रा में खाने से carotenemia हो सकता है जिसमें हथेली, तलवों और आँखों पीलापन हो जाता है।
  6. कुछ सेंसिटिव लोगों में अस्थमा, सांस लेने की तकलीफ और हे फीवर के लक्षण देखे जा सकते हैं।
  7. इसमें विटामिन सी की काफी मात्रा है। अधिकता में सेवन किडनी की पथरी का कारण बन सकता है।
  8. ज्यादा मात्रा में सेवन पेट दर्द, गैस, जी मिचलाना आदि पेट सम्बंधित परेशानियां कर सकता है।
  9. लूज़ मोशन में यह न खाएं।

माजूफल Majuphal (Manjakani) in Hindi

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माजूफल, मायाफल, मज्जफल, माईफल, माजुफल, गाल्स व ओक गाल्स एक पेड़ से प्राप्त होने वाला पदार्थ `है जिसे औषधि की तरह मुख्य रूप से यूनानी दवाओं में प्रयोग किया जाता है। आजकल इसे आयुर्वेदिक दन्त मंजनों में डाला जाता है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग मध्यकाल के बाद शुरू हुआ। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन नहीं पाया जाता। इसका उत्पत्ति स्थान यूनान, एशिया माइनर, सीरिया और फारस है। भारत में इसका आयात इन्ही जगहों से होता आया है।

majuphal

इसमें टैनिक और गैलिक एसिड की अच्छी मात्रा होने से यह संकोचक / एसट्रिनजेंट है और रक्त, बहना, सूजन, योनि के ढीलेपन, पाइल्स, घाव आदि पर में प्रयोग किया जाता है।

माजूफल क्या है?

माजूफल एक कीट के कारण ईरानी बलूत, क्वेरकस इंफेक्टोरिया में निर्मित होने वाला पदार्थ है। यह कोई फल नहीं है। यह पेड़ में तब बनता है, जब गाल वास्प कीट, पेड़ को इन्फेक्ट कर उनमें छेद कर देते हैं और परिणाम स्वरुप पेड़ में यह असामान्य ग्रोथ होती है। कीट इसमें अपने अंडे देते हैं। ओक गाल्स या माजूफल देखने में गोल, और कठोर होते हैं।

इस प्रकार माजूफल, फल न हो कर एक कीट गृह है। माजूफल का आकार उन्नाव के बराबर और रंग में हरा-कुछ नीला लिए हुए, पीला-सफेदी लिये भूरा और छोटे-छोटे उभार युक्त होता है। रंग के अनुसार यह चार तरह का हो सकता है: नीला (माजु नीला), काला (माजु स्याह), हरा (माजू सब्ज़) और सफ़ेद (माजु सफ़ेद)। इनमें से नीला अथवा काला माजु जो कीड़ों के छेद करके बाहर निकल जाने से पहले संग्रहित किया हो औषधीय प्रयोजनों के लिए उत्तम माना जाता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: क्वेरकस इंफेक्टोरिया Quercus Infectoria
  • कुल (Family): Fagaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: ओक गाल्स
  • पौधे का प्रकार: ईरानी बलूत

माजूफल के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. Latin name: Quercus infectoria
  2. Sanskrit: Mayaphala, Majuphul
  3. Assamese: Aphsa
  4. Bengali: Majoophal, Majuphal
  5. English: Oak Galls, Magic Nuts, Mecca Gall, Syrian Gall, Turkey Gall, Gallnut
  6. Gujrati: Muajoophal, Mayfal, Maiphal
  7. Hindi: Maajoophal, Majuphal, Mazu
  8. Kannada: Machikaai, Mapalakam
  9. Malayalam: Majakaanee, Mashikkay
  10. Marathi: Maayaphal
  11. Oriya: Mayakku
  12. Punjabi: Maju
  13. Tamil: Machakaai, Masikki, Mussikki, Machakai, Maasikkai, Masikkai
  14. Telugu: Machikaaya
  15. Urdu: Mazu, Mazuphal, Baloot, Mazu Sabz
  16. Arabic: Uffes, Afas, Ballut Afssi
  17. Burma: Pinza-kanj-si, Pyintagar-ne-thi
  18. German: Gall-Eiche
  19. Indonesia: Manjakani
  20. Malaysia: Manjakani, Biji manjakani
  21. Persian: Mazu, Mazu-E-Sabz
  22. Spanish: Encina De La Agalla
  23. Swedish: Aleppoek
  24. Thai: Ben Ka Nee
  25. Turkish: Mzi Mesesi
  26. Other common names: Gall-Oak, Cyprus Oak, Nut-Galls, Asian Holly-Oak, Aleppo oak

माजूफल के संघटक Phytochemicals

मुख्य रूप से टैनिक और गैलिक एसिड।

माजूफल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

माजुफल स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और हल्का है। स्वभाव से यह ठंडा है और कटु विपाक है।

कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।

  • रस (taste on tongue): कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

प्रधान कर्म

  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  • शिथिलतानाशक: शिथिलता को संकुचित करने वाला।
  • केश्य: बालों को काला करने वाला।
  • रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
  • व्रण रोपण: घाव ठीक करने के गुण।

माजूफल के फायदे

  1. यह उत्तम रक्त स्तंभक, श्लेष्मघ्न, घाव भरने वाला और विषघ्न है।
  2. यह आंतरिक और बाह्य दोनों ही रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  3. यह उन रोगों में बहुत लाभप्रद है जिनमें प्रभावित स्थान को संकुचित करने की आवशकता होता है, जैसे रक्त बहना, चोट, योनि का ढीलापन, गुदभ्रंश आदि।
  4. यह ग्राही है और अतिसार, प्रवाहिका आदि में लाभप्रद है।
  5. इसे गिस कर यदि घाव पर लगा दें तो घाव जल्दी भरता है।
  6. इसे जल में घिस पर टोंसिल पर लगा दें तो यह उसकी सूजन को दूर करता है।
  7. यह सूखी खांसी, कफ में लाभप्रद है।

माजूफल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Majuphal in Hindi

माजूफल खून बहना रोकने वाला, बालों को काला करने वाला व संग्राही है। यह पसीने के दुर्गन्ध दूर करता है। पुराने अतिसार, श्वेत प्रदर में इसके आंतरिक प्रयोग से लाभ होता है। कान बहना में इसे कुलफा के रस में मिला कर कान में डाला जाता है। इसे अकेले ही चूर्ण बनाकर, दांतों को मजबूत करने, मसूड़ों से खून बहना रोकने, मुंह से पानी गिरना, बदबू आना आदि में प्रयोग करते हैं। इसे दन्त मंजनों में दांत और मसूड़ों को मजबूत करने और रोग को दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं।

सिरके में मिला कर इसे चेहरे की झाईं, दाद, गंजेपन पर लगाते हैं। आँखों में इसका अंजन, आँख से पानी गिरना, खुजली आदि में लगाया जाता है। नकसीर हो तो इसका नस्य लेने से खून गिरना रुक जाता है। गुदभ्रश, गुदशोथ, गुद व्रण में इसका चूर्ण आंतरिक रूप से व काढ़ा बनाकर बाहरी रूप से प्रयोग होता है।

योनि का ढीलापन Vaginal Sag

अशोक की छाल + बबूल छाल + गूलर छाल + माजूफल + फिटकरी, समान भाग में मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से छान कर इसका कपड़छन पाउडर बना लें। इस चूर्ण की सौ ग्राम की मात्रा एक लीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई रह जाए तो स्टोव से उतार कर ठंडा कर लें। इसे योनि के अन्दर रात को डालें। यह प्रयोग कुछ दिन तक लगातार करें।

भगंदर, बवासीर, गुदाभ्रंश (कांच निकलना) anal prolapse

  1. एक हिस्सा माजूफल के चूर्ण को चार हिस्सा वेसेलिन के साथ मिलाकर बाहरी रूप से लगाया जाता है।
  2. अथवा
  3. माजूफल का काढ़ा बनाएं। इससे प्रभावित स्थान धोएं या एक कपड़े में काढ़ा सुखा कर प्रभावित स्थान पर कुछ देर रखें। अथवा
  4. माजूफल + फिटकरी + त्रिफला, का काढ़ा बना कर प्रभावित स्थान पर लगाएं।

गुदा से खून गिरना, रक्तार्श

  • एक ग्राम माजूफल चूर्ण + सोंठ चौथाई ग्राम + नागकेशर चौथाई ग्राम, को मिला कर घी के साथ लें।
  • यह प्रयोग स्थिति अनुसार पांच दिन से पंद्रह दिन तक किया जा सकता है।

अतिसार, संग्रहणी

  • एक ग्राम माजूफल चूर्ण को शहद के साथ मिला कर लें। अथवा
  • एक ग्राम माजूफल चूर्ण को दिन में दो-तीन बार, एक ग्राम दालचीनी चूर्ण के साथ लिया जाता है।
  • यह प्रयोग स्थिति अनुसार पांच दिन से पंद्रह दिन तक किया जा सकता है।

पुराना सूजाक

माजूफल का चूर्ण, एक ग्राम की मात्रा में दिन में २ बार लेते हैं।

ग्रहणी IBS

एक ग्राम माजूफल चूर्ण + सोंठ आधा ग्राम + मोथा आधा ग्राम, को मिला कर लें।

दांत की समस्याएं, मसूड़ों में सूजन, मसूड़ों से खून आना, पायरिया

  1. माजुफल को पानी में उबाल आकर काढ़ा बना लें और इससे कुल्ले करें। अथवा
  2. माजूफल के बहुत बारीक चूर्ण से मसूड़ों की मालिश करें। अथवा
  3. माजूफल + फिटकरी + हल्दी, का बारीक चूर्ण बनाकर दन्त पाउडर की तरह प्रयोग करें।

नकसीर

माजूफल के चूर्ण को सूंघें।

घाव, घाव से खून निकलना

माजूफल चूर्ण का बाहरी रूप से छिडकाव प्रभावित स्थान पर करें।

माजूफल की औषधीय मात्रा

ओक गाल्स को लेने की आंतरिक मात्रा आधा ग्राम से लेकर दो ग्राम तक की है जो की शारीरिक बनावट, रोग, पाचन, वज़न से लेकर बहुत से अन्य कारकों पर निर्भर है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. इसमें टैनिक एसिड और गैलिक एसिड की अच्छी मात्रा है। इसे अधिक मात्रा में लेने से पेट में जलन, उलटी, लीवर को नुकसान हो सकता है।
  2. इसे गर्भावस्था में न लें।
  3. इसे लीवर या किडनी के रोग से ग्रसित होने पर न लें।
  4. इसे लम्बे समय तक या अधिक मात्रा में आंतरिक प्रयोग में न लायें।
  5. यह लोहे के अवशोषण को प्रभावित करता है।
  6. यह वात दोष को बढ़ा सकता है।
  7. यह ग्राही है और शरीर के जल को सुखाता है।
  8. इसके सेवन से कब्ज़ हो सकता है।
  9. इससे होने वाले दोष का निवारण करने के लिए गोंद कतीरा, गोंद बबूल प्रयोग होता है।

आम Mango के औषधीय प्रयोग

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आम्र, रसाल, सहकार, अतिसौरभ, कामांग, मघुदूत, माकन्द, पिकवल्लभ, कामशर, किरेष्ट, पिकबंधू, प्रियाम्बु, वसंतदूत आदि आम के संस्कृत नाम है। यह वृक्ष भारत का ही है इसलिए इसका लैटिन नाम मैंगीफेरा इंडिका है। पूरी दुनिया में मीठे रसीले पके आम भारत से ही निर्यात किये जाते हैं। आम के फल से अचार, चटनी, मुरब्बा, शरबत से लेकर अनेकों भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। कच्चे आम से बनी चटनी, पन्ना, दाल में उबाल कर, अचार रूप में, सभी कुछ स्वादिष्ट है। पके आम के तो कहने ही क्या।

Mango health benefits

आम के वृक्ष पूरे भारतवर्ष में पाए जाते हैं। इसके पत्ते लम्बे होते हैं व पतझड़ में गिर जाते हैं। वसंत के मौसम में लाल रंग के नए पत्ते व मंजरिया निकलती हैं। यह लाल पत्ते बाद में हरे हो जाते हैं।

आम के कई भेद हैं। कुछ प्राकृतिक हैं और कुछ को बनाया गया है। कलमी और बीजू (कन) आम के दो मुख्य भेद हैं। जो आम के वृक्ष बीज बो कर प्राप्त होते हैं उन्हें बीजू और जो अच्छी जाती के आम पर कलम बाँध कर तैयार किये जाते हैं उन्हें कलमी आम कहते हैं।

देसी आम में रेशा अधिक और रस कम होता है जबकि कलमी आम के फल में गूदा अधिक होता है। कलमी आमों में लंग्दम अल्फांजो आदि बहुत लोकप्रिय हैं। दवा के रूप में प्रयोग हेतु बीजू आम को अधिक गुणकारी माना गया है।

आम के वृक्ष के प्रत्येक हिस्से को आयुर्वेद में औषधीय रूप से प्रयोग किया जाता है। छाल, पत्ते, गुठली, समेत जड़, फल आदि सभी गुणकारी हैं।

पत्ते: आम के नए पत्ते, रूचिकारी, कफ-पित्त नाशक हैं। इन पत्तों को सुखाकर चूर्ण बनाकर मधुमेह में खाया जाता है।

फूल: पुष्प शीतल, रुचिकारी, ग्राही, वातकारक हैं व कफ-पित्त, प्रमेह, और दुष्ट रुधिर नाशक हैं।

फल: आम के कच्चे फल जिन्हें अमिया या टिकोरा भी कहते हैं, कसैले, खट्टे, रुचिकारक, वात और पित्त को बढ़ाने वाले हैं। थोड़े बड़े होने पर यह खट्टे, त्रिदोष तथा रक्त विकार करने वाले हो जाते हैं।

अमचूर, जो की कच्चे सुखाये हुए फलों को पीस कर बनाया जाता है, उसे आम्रपेशी भी कहते हैं। यह स्वाद में खट्टा, स्वादिष्ट, कसैला, मलभेदक, दस्त लाने वाला और कफ-वात को दूर करने वाला होता है।

पका हुआ आम मधुर, वीर्यवर्धक, स्निग्ध, बल वर्धक, सुखदायक, भारी, वातनाशक, हृदय को प्रिय, रंग सुधारने वाला, शीतल, पित्त न बढ़ाने वाला, व विरेचक होता है।

कृत्रिम रूप से पकाया गया आम पित्त नाशक, मधुर और भारी होता है।

आम का रस बलदायक, भारी, वातनाशक, दस्तावार, हृदय को अप्रिय, तृप्तिदायक, पुष्टिकारक और कफ बढ़ाने वाला है। पके आम के सेवन से रक्त, मांस और बल बढ़ता है। यह शुक्रवर्धक लेकिन अजीर्णकारक भी माने गए हैं। यह तृप्तिकारक, कान्ति और धातु वर्धक है।

दूध के साथ खाया जाने वाला आम, वात-पित्त नाशक, रुचिकारक, पुष्टिकारक, बलदायक, वीर्यवर्धक, रंगत को उत्तम करने वाला, भरी, मधुर, व शीतल होता है।

आम का खंड, भारी, रुचिकारक, देर से पचे वाला, मधुर, पुष्टिकारक, बलदायक। शीतल और वात नाशक है।

अमावट: किसी कपड़े पर आम के रस को धूप में सुखाकर जब जमाते हैं तो अमावट बनती है। यह अमावट दस्तावार, रुचिकारक, हल्का, तृषा, वमन तथा वात-पित्तनाशक है।

गिरी: आम की गुठली, जो की आम का बीज है, भी बहुत गुणकारी है। आम की गुठली के अन्दर जो मज्जा या गिरी होती है उससे बहुत सी दवाएं बनाई जाती है।

डायबिटीज में इसके सेवन से रक्त में शर्करा का स्तर घटता है। गुठली की मज्जा में प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, की काफी अच्छी मात्रा होती है। गुठली से गिरी को निकाल कर उसे सुखा कर पीस करके रख लेना चाहिए। गिरी का चूर्ण दस्त, पेचिश, पाचन रोगों और मधुमेह में बहुत अच्छी औषध के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसे 2-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार खाया जा सकता है।

सामान्य जानकारी

  1. वानस्पतिक नाम: Mangifera indica
  2. कुल (Family): ऐनाकारडीएसए
  3. औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते, पुष्प, टहनी, फल, जड़, छाल
  4. पौधे का प्रकार: बढ़ा वृक्ष
  5. वितरण: भारतवर्ष के गर्म प्रदेश

आम के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: आम्र
  2. हिन्दी: आम
  3. अंग्रेजी: Mango
  4. गुजराती: Aambaro, Ambanoo, Aambo, Keri
  5. कन्नड़: Amavina
  6. मलयालम: Manga
  7. मराठी: Aamba
  8. उड़िया: Amkoili, Ambakoiti
  9. पंजाबी: Amb
  10. तमिल: Mangottai Paruppu, Maangottai
  11. तेलुगु: Mamidi-Jeedi
  12. उर्दू: Aam

आम का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  7. आर्डर Order: सेपिन्डेल्स  Sapindales
  8. परिवार Family: ऐनाकारडीएसए Anacardiaceae
  9. जीनस Genus: मैंगीफेरा एल Mangifera L
  10. प्रजाति Species: मैंगीफेरा इंडिका Mangifera indica

आम्र बीजमज्जा व वृक्ष की छाल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

स्वाद में यह मधुर और कषाय है, व गुण में रूक्ष है। स्वभाव से यह शीत है और कटु विपाक है।

यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

  1. रस (taste on tongue): मधुर, कषाय
  2. गुण (Pharmacological Action): रुक्ष
  3. वीर्य (Potency):शीत
  4. विपाक (transformed state after digestion):कटु

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं।

प्रधान कर्म

  • वातकर: द्रव्य जो वातदोष बढ़ाए।
  • कृमिघ्न: कृमिनाशक।
  • संग्राही: मल को बाँधने वाला।
  • कफशामक: कफ दोष को संतुलित करना।
  • पित्तशामक: पित्त दोष को संतुलित करना।

आयुर्वेदिक दवाएं जिनमें आम के बीज की मज्जा है:

  1. पुष्यनुग चूर्ण
  2. बृहत् गंगाधर चूर्ण
  3. अशोकारिष्ट

आयुर्वेदिक दवाएं जिनमें आम के वृक्ष की छाल है:

  1. न्याग्रोधादि चूर्ण
  2. चंदनासव
  3. मूत्रसंग्रहनीय चूर्ण

आम की पौष्टिकता (प्रति 100 ग्राम में)

100 ग्राम पके आम के फल में लगभग 60 किलोकैलोरी होती है। इसमें आम तौर पर पानी सबसे अधिक प्रतिशत में होता है। कच्चे आम में पानी की मात्रा कम होती है। पके आम में सुक्रोज, ग्लूकोज, और फ्रुक्टोज मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट का प्रमुख घटक होते हैं। कैरोटीनॉइड जैसे कि बीटा-कैरोटीन, बीओ-क्रिप्टोक्सैथिन, ज़ेक्सैथिन, ल्यूटॉक्सैथिन आइसोमर्स, वायलएक्सैथीन, और नेक्सैथीन, सभी प्रो-विटामिन ए हैं जो कि आम में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। आम को पीला रंग इन्हीं कैरोनोएनोड्स से मिलता है।

आम में मौजूद विटामिन ए दृष्टि, विकास, सेल्स, और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए आवश्यक है। पके आम में कच्चे आम की तुलना में बीटा-कैरोटीन की दस गुना अधिक मात्रा होती है। विटामिन सी की मात्रा आम के पकने पर काफी कम हो जाती है। इसके अलावा, आम में विटामिन बी 1 (थायामिन), बी 2 (राइबोफ्लैविविन) और विटामिन ई भी मौजूद हैं।

कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम और सोडियम जैसे खनिज, कई प्रकार के एंटीऑक्सिडेंट्स और फियोथेकैमिकल्स, विटामिन्स आदि सब मिल कर आम को सुपरफ्रूट बनाते हैं। अपने स्वाद, रस और पौष्टिकता के कारण ही आम फलों का राजा है।

  1. पानी 83.46 ग्राम
  2. ऊर्जा 60 किलोग्राम
  3. प्रोटीन 0.82 ग्राम
  4. कार्बोहाइड्रेट 14.98 ग्राम
  5. फाइबर 1.6 ग्राम

विटामिन

  1. थायामिन 0.028 मिलीग्राम
  2. रिबोफेलाविन 0.038 मिलीग्राम
  3. विटामिन ए 1082 आईयू
  4. विटामिन सी 6.4 मिलीग्राम
  5. विटामिन ई 0.90 मिलीग्राम

खनिज पदार्थ

  1. कैल्शियम 11 मिलीग्राम
  2. आयरन मिलीग्राम 0.16 मिलीग्राम
  3. मैगनीशियम एमजी 10 मिलीग्राम
  4. फास्फोरस पी 14 मिलीग्राम
  5. पोटेशियम के 168 मिलीग्राम
  6. सोडियम 1 मिलीग्राम

आम के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Mango in Hindi

औषधीय प्रयोगों के लिए आम के पत्तों, गिरी, तथा छाल का अधिक प्रयोग होता है। आम की गुठली की मज्जा को आयुर्वेद में मुख्य रूप से प्रमेह, मधुमेह, अतिसार, प्रवाहिका, छर्दी, जलन, व त्वचारोग में प्रयोग किया जाता है। वृक्ष की छाल को अतिसार, व्रण, अग्निमांद्य, ग्रहणी, प्रमेह व योनि रोग में औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है।

संकोचक, संग्राही और पित्त शामक होने के कारण पाचन के रोगों में यह विशेष रूप से उपयोगी है। रक्त शर्करा को कम करने के गुण से यह मधुमेह में बहुत लाभप्रद है। आम के पत्ते में शक्तिशाली मधुमेह विरोधी गुण पाए जाते हैं और यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है। यह टाइप 1 डायबिटीज में अधिक प्रभावी है।

पत्तों का किसी प्रकार से किया गया सेवन अग्न्याशय में पायी जाने वाली β- कोशिकाओं को अधिक इंसुलिन स्राव को प्रेरित करता है । इसके अतिरिक्त यह आंतों में ग्लूकोज़ के अवशोषण को भी कम करता है।

डायबिटीज, प्रमेह, सूजाक

  • आम के पत्तों को छाया में सुखा लें। छः ग्राम की मात्रा में लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें। पानी जब एक कप रह जाए तो छान कर पियें।
  • अथवा आम के पत्तों को छाया में सुखा कर चूर्ण बना लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन पर पानी के साथ लें।

अतिसार diarrhea

  1. आम की गुठली की मज्जा + बेल गिरी + मिश्री को समान भाग में मिला लें। इसे तीन से छः ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार लें। अथवा
  2. आम की छाल छः ग्राम + शहद छः ग्राम + बकरी का दूध 1 कप, दिन में तीन बार लें। अथवा
  3. आम के पत्तों का रस + जामुन के पत्तों का रस + आमला रस, को 15 – 30 ml की मात्रा में बकरी के दूध के साथ लें।

खूनी पेचिश

आम के पत्तों का रस 25 ml +  शहद + दूध, को मिलाकर पियें।

रक्तार्श bleeding piles

  • आम की गुठली का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार सेवन करें। अथवा
  • आम की कोमल पत्तियों को पानी के साथ पीस लें। इसे पानी में मिलाकर छान ले और शक्कर मिला कर पियें।

आंव

गंगाधर चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में सौंफ के अर्क के साथ लें।

रक्तप्रदर

आम की छाल को 20 ग्राम की मात्रा में पानी में उबाल कर काढ़ा बना लें और दिन में दो बार पियें।

संग्रहणी रोग अथवा ग्रहणी (IBS)

मीठे आम का रस 20-25 ml + मीठा दही 20-25 ml + सोंठ 1चम्मच, को दिन में 2-3 बार सेवन करें।

तृष्णा / अधिक प्यास लगना

ताज़ा पत्तों का 7-14 ml रस अथवा सूखी पत्तियों से बना काढ़ा 14-28 ml की मात्रा में पियें।

दाद

दाद पर आम के फल की चोप लगाने से लाभ होता है।

हिक्का रोग hiccups

आम के पत्तों + धनिया को दो-चार ग्राम की मात्रा में कूट कर गुनगुने पानी के साथ लेना चाहिए।

हैजा विसूचिका Cholera, आवाज बैठ जाना या गला बैठना या स्वरभंग hoarseness of voice

आम के पत्तों को चालीस ग्राम की मात्रा में लेकर 400 ml पानी में उबालें जब तक की पानी चौथाई न हो जाए। इसे छान कर थोड़ा शहद मिलाकर पियें।

यकृत की कमजोरी liver weakness

आम के पत्तों को छाया में सुखा लें। छः ग्राम की मात्रा में लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें। पानी जब एक कप रह जाए तो छान कर थोड़ा दूध मिलाकर पियें।

नकसीर

आम के पुष्पों का नस्य लें।

काम शक्ति और स्तम्भन बढ़ाने के लिए

आम के पुष्पों का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करें।

मसूड़ों की कमजोरी

आम के पत्तों + छाल को पीसकर पानी में उबाल कर कुल्ला करें।

दातुन

आम की मुलायम टहनी से दातुन करने से दांत मजबूत होते हैं।

सूजाक

आम की छाल 25 ग्राम को कूट कर एक गिलास पानी में भिगो दें और सुबह छान कर पियें।

बल, पुष्टि

आम का सेवन करें। दूध में छुहारा और सोंठ डाल कर पका कर पियें।

वीर्य को गाढ़ा करने के लिए

आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करें।

आम की औषधीय मात्रा

  1. आम के वृक्ष की छाल को 3-6 ग्राम की मात्रा में चूर्ण रूप में लिया जाता है। 20-50 ग्राम की मात्रा में लेकर इसका काढ़ा भी बनाया जा सकता है।
  2. आम्रबीज मज्जा के बारीक चूर्ण को लेने की औषधीय मात्रा 2-3 ग्राम है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. कच्चे आमों को अधिक में नहीं खाया जाना चाहिए। केवल एक या दो छोटे कच्चे आम ही खाए जा सकते हैं।
  2. कच्चे -खट्टे आम को बहुत अधिक मात्रा में खाने से मन्दाग्नि, विषम ज्वर, रक्त के दोष, विबंध, गले में जलन, अपच, पेचिश और व नेत्र रोग throat irritation, indigestion, dysentery and abdominal colic  होते हैं, ऐसा आयुर्वेद में कहा गया है।
  3. अधिक आम खाने के दुष्प्रभाव को ठीक करने के लिए सोंठ के चूर्ण को पानी के साथ अथवा जीरा को काले नमक के साथ खाना चाहिये।
  4. आम खाने के बाद दूध का सेवन किया जाता है। यह शरीर को बल, कान्ति और ताकत देता है।
  5. आम खाने के बाद पानी न पियें।
  6. आम की चोपी को खाने से पहले हटा दें। चोपी के सेवन से जलन mouth, throat and gastro intestinal irritations होती है।
  7. बहुत अधिक आम खाने से कुछ बच्चों में मौसमी त्वचा रोग हो सकते हैं।

एवोकाडो Avocado (Persea americana) पौष्टिकता, लाभ और सावधानियां

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एवोकाडो से आप जरुर परिचित होंगे। यह नाशपाती के आकार का यह एक एक्सोटिक फल है जो की आजकल भारत में भी मिलने लगा है। इसका लैटिन नाम पर्सिआ अमेरिकाना Persea americana है। यह मध्य और दक्षिण अमेरिका का मूल निवासी है और अब पूरी दुनिया के ट्रॉपिकल और सबट्रॉपिकल प्रदेशों में उगाया जाना लगा है। भारत में एवोकाडो बैंगलोर, नंदी हिल्स, पुणे और नीलगिरी में उगाया जा रहा है। तमिलनाडु के कल्लार और बुर्लिअर में इसकी आठ किस्में और बैंगलोर में चौदह किस्में उगाई जा रही है।

avocados

एवाकाडो फल स्वाद में कसैला और कुछ मीठा होता है। यह एक पौष्टिक और गुणकारी फल है। ओलिव को छोड़ किसी भी फल में इतना फैट नहीं है जितना की एवोकाडो में। एवोकाडो की पौष्टिकता में उगाई जाने वाली जगह के अनुसार कुछ भिन्नता हो सकती है।

नीलगिरी से मिलने वाले एवाकाडो में करीब 23 प्रतिशत वसा, 2 प्रतिशत प्रोटीन के साथ-साथ बहुत से खनिज और विटामिन पाए हैं। जो एवोकाडो मेक्सिको के हैं उनमें तेल की मात्रा काफी अधिक है (30 g/100 g)। फल के अन्दर केवल एक ही बीज होता है जो की वसा युक्त गूदे से घिरा होता है।

एवोकाडो के पेड़ के भिन्न हिस्सों का मध्य-दक्षिण अमेरिका के देशों में विविध रूप से प्रयोग होता है। इसके फल, बीज, पत्ते, तेल आदि को भोजन-दवा और सौदर्य बढ़ाने के लिए प्रयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है। इसे आंतरिक-बाह्य सभी तरह से इस्तेमाल हैं। इसके अतिरिक्त पहले के समय में एवोकाडो बीज के दूधिया फ्लूइड से एक भूरी-काली स्याही भी प्राप्त की जाती थी जिसे कागज पर लिखने और कपड़ों को रंगने में प्रयोग करते थे। पत्तों को सुखा कर तेज पत्ता की ही तरह भोजन में प्रयोग किया जाता है।

सामान्य जानकारी

पर्सिया अमेरिकाना एक बड़ा वृक्ष है जिसकी उंचाई 15-18 मीटर हो सकती है। यह मध्य अमेरिका में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसके पत्ते लम्बगोल – भालकार, चालीस सेंटीमीटर लम्बे हो सकते हैं। फूल हरे छोटे और फल बड़े नाशपाती के आकार के होते हैं। यह देखने में कुछ लम्बे और अंडाकार होते हैं। फलों का रंग पीला-हरा, लाल-भूरा या जामुनी सा होता है। फल का गूदा मक्खन जैसा मुलायम या सख्त हो सकता है। फल में केवल एक बीज होता है।

  • वानस्पतिक नाम: पर्सिया अमेरिकाना Persea gratissima Gaertn
  • अन्य अंग्रेजी नाम: Alligator Pear, Butter Fruit
  • भारतीय नाम: Kulu Naspati or Makhanphal
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष

एवोकाडो का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: Magnoliidae
  7. आर्डर Order: लौरेल्स Laurales
  8. परिवार Family: लौरेसेऐइ  – लौरेल फॅमिली (दालचीनी, तेजपत्ता परिवार)
  9. जीनस Genus: पर्सिआ Persea Mill। – bay P
  10. प्रजाति Species: पर्सिआ अमेरिकाना

एवोकाडो फल में पोषण (प्रति 30 ग्राम)

  • कैलोरी 50
  • कोलेस्ट्रोल नहीं
  • सोडियम 2 मिलीग्राम
  • पोटैशियम 150 मिलीग्राम
  • डाइटरी फाइबर 2 ग्राम
  • प्रोटीन 1 ग्राम
  • टोटल फैट 4.5 ग्राम
  • – पूफा (पीयूएफए-पॉली अनसेच्युरेटेड फैटी एसिड) 0.5 ग्राम
  • – मूफा (एमयूएफए-मोनो सेच्युरेटेड फैटी एसिड) 3 ग्राम
  • विटामिन A 1%
  • विटामिन C 4%
  • आयरन 1 %
  • खनिज 1.1 प्रतिशत

एवोकाडो के औषधीय प्रयोग

एवोकाडो में गर्भस्रावकारी, गर्भनिरोधी, एंटीसेप्टिक, कामोद्दीपक, कसैला, मूत्रवर्धक, परजीवीनिरोधी, आदि गुण हैं। फल के गूदे को कामोत्तेजक aphrodisiac और emmenagogue के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह मेक्सिको में काफी पुराने समय से बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं के प्राकृतिक इलाज़ में प्रयोग किया जाता रहा है। मेक्सिको निवासी इसे लीवर की समस्या में इसके हिपेटोप्रोटेक्टिव गुण hepatoprotective के कारण प्रयोग करते आ रहे हैं।

मेक्सिको में फल के गूदे को ट्यूमर के लिए व कुटे हुए बीजों को रूबेफिएन्ट rubefacient के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बीजों का काढ़ा, दांत दर्द को दूर करने के लिए स्थानीय रूप से उपयोग किया जाता है।

एवेकाडो के फल के पेरिकार्प से तेल बनाया जाता हैं जिसे Avocado oil कहते हैं। इसमें विटामिन ई, ओलिक एसिड, पामिटिक एसिड, लिनोलिक एसिड और पालमिटोलिक एसिड मुख्य रूप से पाए जाते हैं। इसे प्राकृतिक सौन्दर्य प्रसाधनों natural cosmetics क्रीम, आदि में काफी प्रयोग किया जा रहा है।

  1. एवेकाडो फल को बाहरी रूप से त्वचा पर भी लगा सकते हैं। यह त्वचा को ठंडक देता है और मुलायम बनाता है।
  2. बीज के पाउडर का रूसी के लिए प्रयोग किया जाता है।
  3. त्वचा पर फोड़े-फुंसी के लिए बीज का तेल प्रयोग किया जाता है ।
  4. एवकाडो के बीजों से बने काढ़े के सेवन से पेट के कीड़े दूर होते हैं।
  5. इसके बीजों की पुल्टिस को बाहरी रूप से लागने से बाल का झड़ना रुकता है।
  6. पत्तों से बनी चाय को मासिक लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  7. पायरिया में पत्तों को चबाने से लाभ होता है।
  8. पत्तों से बनी पुल्टिस को घाव पर लगाया जाता है।
  9. इसकी मुलायम टहनी का काढा कफ में दिया जाता है।
  10. पत्तों का काढ़ा दस्त, गले में खराश, हेमरेज, तथा मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करने के लिए देते हैं।

एवोकाडो खाने के लाभ Health Benefits of Avocado Fruits in Hindi

एवोकाडो फल बहुत अधिक पौष्टिक होते हैं। यह फलों में सबसे अधिक एनर्जी देने वाले फल हैं। फलों को ताज़ा, नमक के साथ, काली मिर्च छिड़क कर, चीनी और नींबू रस के आदि के साथ खाया जा सकता है। इसे आइस क्रीम, सलाद, सैंडविच, सूप, टोरटीला आदि में भी डाला जाता है।

फलों के गूदे में 3–30% तेल होता है जो की त्वचा की नमी बनाये रखने वाले जेलों, फेस क्रीम, हैण्ड लोशन आदि में एक इनग्रेडीयेंट की तरह डाला जाता है। यह तेल एलर्जी नहीं करता और सूर्य की त्वचा को काली करने वाली किरणों को रोकता है।

एवोकाडो में प्रोटीन बहुत होता है। इसमें MUFA, Mono-unsaturated Fatty Acid (up to 69% oleic-हेल्थी फैट, की काफी अधिक मात्रा होती है। इस प्रकार के फैट पूरी सेहत और विशेषकर हृदय की रक्षा के लिए अत्यंत ज़रूरी हैं। यह शरीर में बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करने में सहयोगी है और अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है। इसलिए यदि आपको हाई कोलेस्ट्रोल है तो निश्चित ही एवोकाडो को अपनी डाइट में शामिल करें।

इसमें विटामिन E हैं जो की एक उत्तम एंटीऑक्सीडेंट है और शरीर की सेल्स को फ्री सेल डैमेज से बचाता है। इसमें फोलेट होता है जो की होमोसिस्टीन लेवल को कम करता है।

इसमें पाया जाने वाले कैरोटीनोइड्स के कारण यह आँखों के लिए अच्छा है और कैटरेक्ट और मेकुलर डीजनरेशन से आँखों को बचाता है।

  1. यह लीवर, फेफड़ों, त्वचा, और हृदय को पोषण देता है।
  2. यह टॉनिक है और शरीर को काम करने के लिए ताकत देता है।
  3. इसमें फैट में घुलनशील विटामिन A, D, E पाए जाते हैं।
  4. इसमें खनिज विशेष रूप से कॉपर और आयरन की अच्छी मात्रा होती है।
  5. इसमें फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम, मैंगनीज़ होता है।
  6. इसमें पोटैशियम की मात्रा केलों की तुलना में अधिक है। पोटैशियम शरीर में रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहयोगी है।
  7. यह मांसपेशियों को ताकत देता है, त्वचा का पोषण करता है और अन्य फलों की अपेक्षा में अधिक पौष्टिक है।
  8. इसके सेवन से शरीर में वात कम होता है, इसलिए वात रोगों में इसका सेवन लाभप्रद है।
  9. इसके फल में काफी फाइबर होता है जिस कारण यह कब्ज़ और कोलेस्ट्रोल को दूर करता है।
  10. एवोकाडो का सेवन डायबिटीज में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में लाभप्रद है। यह ट्राइग्लिसराइड, बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करता है और साथ ही इन्सुलिन के सही से काम करने में मदद करता है।
  11. जोड़ों के दर्द, स्टिफनेस, आर्थराइटिस तथा अन्य वातरोगों में एवोकाडो का सेवन लाभप्रद हैं। इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स, कैरोटीनोइड्स carotenoid lutein, सूजन और दर्द में आराम देते हैं।
  12. यह एंटीएजिंग है। यह वज़न को बढ़ाने में लाभप्रद है। इसके सेवन से इम्युनिटी बढ़ती है। इसमें मौजूद वसा के कारण इसके सेवन से किसी अन्य फल की तुलना में अधिक एनर्जी, फैट सोल्यूबल विटामिन और अच्छा फैट मिलता है। यह फैट बालों और त्वचा को चिकनाई देता है और ड्राईनेस दूर करता है।

सावधनियाँ

जो लोग डिप्रेशन के लिए Monoamine oxidase inhibitors (MAOIs) दवाओं का सेवन करते हैं, उन्हें अवकेडो का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए क्योंकि इसमें tyramine होता है।

  1. एवाकाडो में पोटैशियम की प्रचुर मात्रा होती है।
  2. जिन्हें पोटैशियम कम लेने की सलाह हो, वे इसका सेवन सावधानी से करें।
  3. पत्तों का काढ़ा गर्भवस्था में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  4. अवाकेडो वात और पित्त को कम करता है लेकिन कफ को बढ़ाता है।
  5. कफ की अधिक प्रवृति हो तो इसका सेवन सावधानी से करें।
  6. अवाकेडो से यदि कोई दुष्प्रभाव हो तो हल्दी, नींबू और काली मिर्च का सेवन करें।
  7. कच्चा फल न खाएं।
  8. इसे बहुत लम्बे समय तक स्टोर न करें।
  9. इसे फ्रिज में न रखें।
  10. इस फल में कैलोरी की मात्रा काफी होती है।
  11. अधिक मात्रा में सेवन वज़न बढ़ा सकता है।

अंजीर Common Figs जानकारी, फायदे प्रयोग और सावधानियां

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अंजीर का उत्पत्ति स्थान एशिया माइनर, फिलिस्तीन और फारस है। भारत के लिए यह विलायती फल है तथा अब इसे कश्मीर, बैंगलोर, नासिक, मैसूर आदि में उगाया जाता है। बलूचिस्तान और अफगानिस्तान (काबुल) में यह प्रचुरता से पायी जाती है। अफगानिस्तान की अंजीर को अच्छी गुणवत्ता का माना जाता है।

अंजीर गूलर जाति के वृक्ष से प्राप्त एक फल है। इसके पेड़ चार-पांच मीटर ऊँचे होते हैं। पत्ते और शाखाएं रोयें युक्त होती हैं। शुरू में फल हरे और पकने पर भूरे-आसमानी से हो जाते हैं। । अंजीर के पके फल मीठे, स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं। फलों को ताज़ा व सुखा कर प्रयोग किया जाता है।

fig

सूखे अंजीर मेवे की तरह खाए जातें हैं और यह हमेशा उपलब्ध होते हैं जबकि ताज़े फल केवल मौसम में ही उपलब्ध होते हैं। सुखा दिए जाने पर इसमें से पानी की मात्रा काफी कम और शर्करा की मात्रा अधिक हो जाती है। सूखे हुए फल में शर्करा, वसा, पेक्टोज़, अल्ब्युमिन, खनिज और विटामिन होते हैं। इसके बीजों से तेल भी निकाला जाता है। अंजीर के सेवन के अनेकों लाभ हैं।

अंजीर को एक औषधी की तरह भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे शीत वीर्य लेकिन यूनानी में इसे पहले दर्जे का गर्म और दूसरे दर्जे का तर माना गया है। यूनानी दवा माजून इन्जीर MAJUN INJEER, में यह प्रमुख घटक है। इस दवा को पुराने कब्ज़ (एक्शन Mulaiyin / Aperient) में दिया जाता है। माजून इन्जीर को सोने से पहले एक चम्मच की मात्रा में पानी के साथ लेते हैं।

अंजीर शक्तिवर्धक, वाजीकारक, स्वास्थ्यवर्धक, पाचन और आँतों के लिए हितकारी व पौष्टिकता से भरपूर है। इस पेज पर अंजीर के बारे जानकारी देने की कोशिश की गई है। कृपया इसे पढ़ें, ज्ञान वर्धन करें एवम इसे अपने आहार में शामिल करके स्वास्थ्य ठीक रखें और रोगों को दूर करें।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: फाईकस केरिका
  • कुल (Family): मोरेसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते और फल
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष
  • जलवायु: सूखी और गर्म

अंजीर के स्थानीय नाम / Synonyms

  • हिन्दी: अंजीर
  • अंग्रेजी: Figs
  • अरब: तीन
  • फ़ारसी: अंजीर विलायती

अंजीर का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: हेमेमेलीडिडेइ Hamamelididae
  7. आर्डर Order: अरटीकेल्स Urticales
  8. परिवार Family: मोरेसिएई Moraceae
  9. जीनस Genus: फाईकस Ficus
  10. प्रजाति Species: फाईकस केरिका Ficus carica

अंजीर मेवा (सूखी अंजीर) के हर 100 ग्राम की पौष्टिकता

  1. कुल कैलोरी: 250
  2. कार्बोहाइड्रेट: 64 ग्राम
  3. आहार फाइबर: 10 ग्राम
  4. शर्करा: 48 ग्राम
  5. प्रोटीन: 3 ग्राम
  6. कुल वसा: 1 ग्राम
  7. संतृप्त फैट: 0.3 ग्राम
  8. मोनोअनसैचुरेटेड फैट: 0.3 ग्राम
  9. विटामिन ए: 10 आईयू
  10. विटामिन सी: 1.2 मिलीग्राम
  11. विटामिन ई: 0.4 मिलीग्राम
  12. विटामिन के: 15.6 माइक्रोग्राम
  13. फोलिक एसिड: 9 ग्राम
  14. नियासिन: 0.6 मिलीग्राम
  15. पैंटोफेनीक एसिड: 0.4 मिलीग्राम
  16. विटामिन बी 6: 0.1 मिलीग्राम
  17. रिबोफैक्विइन: 0.1 मिलीग्राम
  18. थियामीन: 0.1 मिलीग्राम
  19. चोलिन: 15.8 मिलीग्राम
  20. बेटेन: 0.7 मिलीग्राम
  21. कैल्शियम: 162 मिलीग्राम
  22. कॉपर: 0.3 मिलीग्राम
  23. लोहा: 2 मिलीग्राम
  24. मैग्नीशियम: 68 मिलीग्राम
  25. मैंगनीज: 0.5 मिलीग्राम
  26. फास्फोरस: 67 मिलीग्राम
  27. पोटेशियम: 680 मिलीग्राम
  28. सोडियम: 10 मिलीग्राम
  29. सेलेनियम: 0.6 माइक्रोग्राम
  30. जस्ता / जिंक: 0.5 मिलीग्राम

ताजे अंजीर के फल का हर 100 ग्राम का पौष्टिकता

  1. कैलोरीज़: 74
  2. कार्बोहाइड्रेट: 1 9 ग्राम
  3. आहार फाइबर: 2. 9 ग्राम
  4. शर्करा: 16 ग्राम
  5. प्रोटीन: 0.75 ग्राम
  6. कुल वसा: 0.3 ग्राम
  7. संतृप्त फैट: 0.1 ग्राम
  8. पूफा/पोलीअनसैचुरेटेड फैट: 0.1 ग्राम
  9. मूफा/मोनोअनसैचुरेटेड फैट: 0.1 ग्राम
  10. विटामिन ए: 140 आईयू
  11. विटामिन सी: 2 मिलीग्राम
  12. विटामिन ई: 0.11 मिलीग्राम
  13. विटामिन के: 4.7 माइक्रोग्राम
  14. फोलिक एसिड: 6 माइक्रोग्राम
  15. नियासिन: 0.4 मिलीग्राम
  16. पैंटोफेनीक एसिड: 0.3 मिलीग्राम
  17. पाइरिडोक्सीन: 0.12 मिलीग्राम
  18. रिबोफ़्लिविन: 0.05 मिलीग्राम
  19. थियामीन: 0.06 मिलीग्राम
  20. पोटेशियम: 232 मिलीग्राम
  21. सोडियम: 1 मिलीग्राम
  22. कैल्शियम: 35 मिलीग्राम
  23. कॉपर: 0.07 मिलीग्राम
  24. लोहा: 0.37 मिलीग्राम
  25. मैग्नीशियम: 17 मिलीग्राम
  26. मैंगनीज: 0.13 मिलीग्राम
  27. सेलेनियम: 0.2 माइक्रोग्राम
  28. जस्ता: 0.15 मिलीग्राम

कर्म Principle Action

  1. अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  2. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  3. कफनिःसारक / छेदन: द्रव्य जो श्वासनलिका, फेफड़ों, गले से लगे कफ को बलपूर्वक बाहर निकाल दे।
  4. मूत्रल : द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये। diuretics
  5. मूत्रकृच्छघ्न: द्रव्य जो मूत्रकृच्छ strangury को दूर करे।
  6. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  7. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  8. वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
  9. हृदय: द्रव्य जो हृदय के लिए लाभप्रद है।
  10. विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
  11. बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
  12. स्वेदल: द्रव्य जो स्वेद / पसीना लाये।
  13. श्वासकासहर: द्रव्य जो श्वशन में सहयोग करे और कफदोष दूर करे।

अंजीर खाने के लाभ और औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Figs in Hindi

सभी जानते हैं की सूखी हुई अंजीर को एक मेवे की तरह प्रयोग किया जाता है। यह मार्किट में पूरे साल उपलब्ध होते हैं। मेवे की तरह खाने से हमे कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, खनिज, अम्ल, लोहा, विटमिन A, पोटैशियम, सोडियम, गंधक व फोस्फोरिक एसिड मिलते हैं। अंजीर खाने से मन प्रसन्न होता है व कमजोरी दूर होती है। यह कब्ज़नाशक, पित्त नाशक, रक्त-रोग निवारक तथा वायु विकार दूर करने वाली है। इसके सेवन से पुराने कब्ज़, सदैव थकावट-सी महसूस कोना, नींद-सी बनी रहना, किसी कार्य में मन नहीं लगना, गैस, लीवर की समस्या, में लाभ होता है।

अंजीर में वसा होती हैं जिससे यह त्वचा और बालों को चिकनाई देता है। कम मात्रा में लेने पर इसे लीवर और स्प्लीन के लिए इसे लाभकारी माना गया है। किन्तु अधिक मात्रा में किया गया सेवन हानिप्रद है। अंजीर विरेचक, मूत्रल, स्वेदक, और कफनिस्सारक होने से शरीर से विजातीय पदार्थों को विभिन्न माध्यमों से बाहर करती है। इसे न केवल मेवे बल्कि एक औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

अंजीर के फायदे

  1. अंजीर को सोने से पहले लेने से कब्ज़ दूर होती है और कोष्ठ साफ़ होता है।
  2. अंजीर दीपन – पाचन, स्वेदन, कफ शामक और मूत्रल है।
  3. यह अत्यंत पुष्टिकर और जीवनीय मेवा है।
  4. इसके सेवन से शरीर से गन्दगी दूर होती है व रंग निखरता है।
  5. यह श्वास-कास, अधिक कफ आदि में लाभप्रद है।
  6. अपने स्वेदन के गुणों के कारण यह शरीर से पसीना ला कर विजातीय पदार्थों को दूर करने में सहायक है।
  7. अखरोट के साथ इसका सेवन वाजीकारक है और कामेच्छा को बढ़ाता है।
  8. यह शरीर को वसा देता है।
  9. यह अनुलोमिक है और गैस, पेट फूलना, आनाह में सूखे अंजीर खाने से आराम होता है।
  10. यह रक्त पित्त और वात रोगों में लाभप्रद है।
  11. अंजीर में आयरन और कैल्सियम भरपूर मात्रा में होते हैं।

अंजीर के दवा की तरह प्रयोग

कब्ज़, बवासीर

अंजीर में सेल्यूलोज़, चिकनाई पायी जाती है इस कारण यह कब्ज़, बवासीर और कब्ज़ के कारण होने वाली अन्य दिक्कतों में अत्यंत लाभकारी है। इसमें सेवन से आँतों में जमा मल दूर हो जाता है। इसको कब्ज़ में लेने से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं है अपितु इसकी पौष्टिकता के कारण यह अत्यंत लाभप्रद है। यह आँतों की भीतरी दीवारों को ताकत और स्वास्थ्य प्रदान करने में सहयोगी है।

  1. अंजीर 3-4 को दूध में उबालकर रात को सोने से पहले खाएं और दूध पी जाएँ। अथवा
  2. अंजीर को रात में पानी में भिगो दें और सुबह मसल कर खा ले और पानी पी जाएँ।
  3. अथवा अंजीर को शहद के साथ खाएं।

अस्थमा

अंजीर 3-4 को रात में पानी में भिगो दें और सुबह मसल कर खा ले और पानी पी जाएँ।

कमजोरी, कफ,खांसी

अंजीर खाएं।

प्यास अधिक लगना

अंजीर 3-4 खाएं।

खून की कमी

अंजीर का सेवन करें।

आँतों की कमजोरी, पेचिश, दस्त

अंजीर का कुछ घंटे पानी में भिगों लें और फिर इसका काढ़ा बनाकर सेवन करें।

खून के विकार, रक्त पित्त, नकसीर फूटना

अंजीर को शहद के साथ खाएं।

पेशाब के रोग, पेशाब में जलन

अंजीर को रात में पानी में भिगो दें और सुबह मसल कर खा ले और पानी पी जाएँ।

वाजीकरण, बलवर्धन, शक्ति वर्धन

  1. सुबह 2-3 अंजीर खा कर मिश्री मिला दूध पी लें। ऐसा नियमित एक महीने तक करें। अथवा
  2. रात को खजूर और अंजीर को पानी में भिगो लें। सुबह इसे खाली पेट मसल कर सेवन करें और पानी पी लें।

अंजीर की औषधीय मात्रा

सूखी अंजीर को पांच पीस तक की मात्रा में ले सकते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. अधिक मात्रा में इसे पेट और लीवर के लिए अहितकर माना गया है।
  2. इसके दुष्प्रभाव दूर करने के लिए सिकजबीन अथवा बादाम दिया जाता है।
  3. प्रतिनिधि रूप में मुनक्का प्रयोग किया जाता है।
  4. डायबिटीज में सूखी अंजीर का प्रयोग या तो पूरी तरह से न करें, अथवा बहुत कम मात्रा में और वो भी सावधानी से करें। सूखी अंजीर में शर्करा की काफी मात्रा होती है इसलिए यह ब्लड ग्लूकोज लेवल को बढ़ा सकती है।
  5. अंजीर में पोटैशियम होता है।
  6. यह पचने में भारी है।
  7. खाने से पहले अंजीर को अच्छे से धो लें।
  8. रात में अंजीर भिगोते समय केवल उतना ही पानी डालें जो की अवशोषित हो जाए।
  9. कम मात्रा में खाने पर यह पाचक, हृदय-लीवर और स्प्लीन के लिए हितकर है। परन्तु अधिक मात्रा में खाने गैस, अतिसार आदि उपद्रव हो सकते हैं।
  10. अंजीर को पूरे लाभ लेने के लिए इसे अच्छे से धो लें। अब एक बर्तन में पीने के पानी की इतनी मात्रा लें  जितनी अंजीर सोख ले, और ढक दें। इसे सुबह मसल कर खा लें।

शमी (खेजड़ी) Shami Tree धार्मिक महत्व और औषधीय प्रयोग

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शमी को छोकर, खेजड़ी, जंड, चौंकर, सफ़ेद कीकर, खार, सांगरी, सेमरु, सोमी, सवंदल ताम्बु आदि नामों से भारत भर में जाना जाता है। लैटिन में इसका नाम प्रोसोपिस सिनेरेरिया और प्रोसोपिस स्पाईसीजेरा है।

shami tree

शमी का वृक्ष राजस्थान, गुजरात, सिंध, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पाया जाता है। इसकी लकड़ी का प्रयोग यज्ञ-हवन आदि में होता है। देखने में यह बबूल के वृक्ष जैसा होता है। कुछ लोग इसे सफ़ेद कीकर भी कहते हैं। यह देश के सूखे हिस्सों की नमकीन-रेतीली भूमि में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। नए पौधे वृक्ष की जड़ों और बीजों से प्राप्त होते हैं। इसमें पीले-गुलाबी से पुष्प मार्च से मई महीने में आते हैं।

यह प्रायः जंगलों में पाया जाता है और पूजन आदि के लिए मंदिरों के आस-पास भी लगाया जाता है। इस वृक्ष का तना छाल युक्त होता है। यह एक मध्यम आकार का एक कांटेदार वृक्ष है। इसकी उंचाई 5-9 मीटर तक हो सकती है। पत्ते घने और बबूल या इमली के समान दिखाई देते है। यह मटर जाति का वृक्ष है और इसमें फलियाँ लगती हैं जो कुछ जगहों पर खायीं भी जाती है।

शमी को राजस्थान में कल्पवृक्ष कहते हैं। इसके पत्ते, फल, काष्ठ, जड़ें सभी कुछ लाभप्रद है। यह भूमि के अपरदन को रोकता है। इसकी जड़ें भूमि में बहुत अधिक गहरी (3 मीटर से भी अधिक) होती हैं व पानी की बहुत कमी हो जाने पर भी हरी रहती हैं। इसलिए सूखे के समय इसकी पत्तियाँ पशुओं के लिए चारे के काम आती हैं। इसकी फलियों से बनी सब्जी में 14-18 प्रतिशत प्रोटीन होती है। इसकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं इसलिए अन्य पौधे जो इसके आस-पास उगते हैं, उनके विकास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अतिरिक्त शमी के पेड़ के नीचे भूमि की उर्वरता भी अधिक होती है।

धार्मिक महत्व

संस्कृत शमी के कई नाम दिए गए है जैसे की अग्निगर्भा, ईशानी, पार्वती, सुपत्रा, मंगल्या, लक्ष्मी, रामपूजिता, हविर्गन्धा आदि। शमी का छोटा वृक्ष शमीर या शमरी कहलाता है तथा बड़ी शमी को सक्तुफला व शिवा कहा गया है। राजस्थान में शमीर को खेजड़ी और शमी को खेजड़ा कहा जाता है। इसकी लकड़ी यज्ञ के लिए बहुत ही उपयुक्त है और इसी कारण इसे अग्निगर्भा कहा गया है। शमी के लिए अग्निगर्भा नाम भागवत पुराण, मनुस्मृति, अभिज्ञान शकुंतलम और रघुवंश आदि में प्रयोग किया गया है। शमी के फल भीतर से भुरभुरे होते हैं अतः यह सक्तुफला कहते हैं। इसकी शाखाएं अल्प होती है और यह अल्पिका कहलाता है। इसके क्षार को हरिताल के साथ लगाने से बाल झड़ जाते हैं इसलिए इसे केशहन्त्री कहते हैं।

शमी एक पूजनीय वृक्ष है। इस पवित्र वृक्ष को माता पार्वती का साक्षात् रूप माना जाता है क्योंकि अग्नि के माध्यम से इसने कुछ काल तक भगवान शिव का तेज वहन किया। अतः यह वृक्ष शिवा, इशानी आदि नामों से जाना जाता है। आयुर्वेद के निघंटुओं में इसे केशों के लिए विनाशकारी, मादकता करने वाला कहा गया है।

भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले शमी के वृक्ष की पूजा की। शमी ने उन्हें आशीर्वाद दिया की आपकी ही विजय होगी। दशहरा जिसे विजयदशमी भी कहते हैं, के दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन की जाने वाली इस विशेष पूजा-आराधना से व्यक्ति को कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता।

महाभारत में ऐसा वर्णन मिलता है की अग्नि देव, महर्षि भृगु से भयभीत होकर शमी में प्रविष्ट हो गए। देवताओं द्वारा खोजे जाने पर वे शमी के गर्भ में रहते हुए मिले। पांडवों ने वनवास के समय अज्ञातवास शुरू होने से पहले अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के वृक्ष पर छिपा दिए थे।

महाकवि कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम् में ऋषि कण्व जब तीर्थ यात्रा से लौटते हैं ती वे आश्रम में सुनते है, जिस प्रकार शमी अग्नि को धारण किये हुए है उसी प्रकार आपकी कन्या ने प्राणियों के मंगल के लये दुष्यंत का तेज धारण किया है।

ऐसा माना जाता है, शमी वृक्ष की पूजा करने से शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होती है। इसके लिए है, शमी के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल जालना चाहिए।

शमी की पत्तों को ग्रन्थों में अग्नि जिह्वा कहा गया है। मांगलिक कार्यों में किये जाने वाले यज्ञों में शमी के पत्तों को यज्ञ में डाला जाता है इसलिए यह मांगल्या है। शमी के पत्ते शुद्ध हैं और पापों को दूर करते हैं। पीपल का वृक्ष पुरुष का प्रतीक है और इसके विवाह लोकधर्म में कदली, तुलसी और शमी से किये जाते हैं। शमी पापों को नष्ट करने वाली व शत्रुओं का विनाश करने वाली है। यह अमंगलों को दूर करने वाली और सिद्धियों को प्राप्त करने वाली है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: Prosopis cineraria / Druce। Prosopis spicigera
  • कुल (Family): Mimosaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: सभी हिस्से
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष / बड़ी झाड़ी

शमी के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Shami, Tungaa, Keshahantri, Shankuphalaa
  2. हिन्दी: शमी Chhonkar, Sami, Chhikur, Jhand, Khejra,  Banni Mara, Khejri tree, Khejri, Safed Kikar, Sami, Shami, Shame, Jhand, Chikur, Chonkar, Chinkur
  3. अंग्रेजी: Spunge tree, Indian Mesoquite, Shame
  4. असमिया: Kalisam
  5. बंगाली: Sain, Shami
  6. गुजराती: Kheejado, Sami
  7. कन्नड़: Banni, Kabanni
  8. मलयालम: Parampu, Tambu, Vahni
  9. मराठी: Sami, Saunder
  10. उड़िया: Shami
  11. पंजाबी: Jand
  12. तमिल: Vanni, Kalisam
  13. तेलुगु: Jammi

शमी का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta  संवहनी पौधे
  • सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  • सब क्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
  • आर्डर Order: फेबल्स Fabales
  • परिवार Family: Fabaceae ⁄ Leguminosae मटर परिवार
  • जीनस Genus: Prosopis L. – mesquite
  • प्रजाति Species: Prosopis cineraria (L.) Druce – jand

शमी के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

शमी के पत्ते स्वाद में कटु, तिक्त, कषाय व गुण में लघु,-रुक्ष है। स्वभाव से पत्ते शीत (फल उष्ण) और कटु विपाक है। यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

शमी का फल भारी, पित्तकारक, रूखे माने गए हैं। इनका सेवन मेधा और केशों का नाश करने वाला बताया गया है।

  1. रस (taste on tongue): कटु, तिक्त, कषाय
  2. गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  3. वीर्य (Potency): शीत
  4. विपाक (transformed state after digestion): कटु

प्रधान कर्म

  1. पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
  2. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  3. विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
  4. कुष्ठघ्न: द्रव्य जो त्वचा रोगों में लाभप्रद हो।
  5. अर्शोघं: द्रव्य जो अर्श में लाभप्रद हो।
  6. कृमिघ्न: द्रव्य जो कृमि को नष्ट कर दे।

शमी के पत्तों का चूर्ण 3-5 ग्राम की मात्रा में अकेले ही इन रोगों में लाभप्रद है:

  1. अर्श (piles)
  2. अतिसार (diarrhoea)
  3. बालगृह (psychotic syndrome of children)
  4. भ्रम (vertigo)
  5. कृमि (worm infestation)
  6. कास (cough)
  7. कुष्ठ (Leprosy /diseases of skin)
  8. नेत्ररोग (diseases of the eye)
  9. रक्तपित्त (bleeding disorder)
  10. श्वास (Asthma)
  11. विषविकार (disorders due to poison)

शमी की छाल के काढ़े को 50-100 ml की मात्रा में फलों के चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में लेते हैं।

शमी के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Shami Tree in Hindi

शमी के वृक्ष का धार्मिक महत्व तो है ही परन्तु यह एक औषधीय वृक्ष भी है। इसके काढ़े को बुखार में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों को बाह्य रूप से पेस्ट रूप में लगाया जाता है। इसकी छाल कड़वी, कसैली, और कृमिनाशक होती है। इसे बुखार, त्वचा रोग, प्रमेह, उच्च रक्तचाप, कृमि और वात-पित्त के प्रकोप से होने वाले रोगों में प्रयोग किया जाता है।

दाद-खाज, एक्जीमा

शमी की पत्तियों को गो मूत्र अथवा धि में पीस कर प्रभावित स्थानों पर बाह्य रूप से लेप किया जाता है। ऐसा 3-4 दिन तक लगातार किया जाता है।

पीलिया

वृक्ष की छाल का काढ़ा पीलिया में दिया जाता है।

मवाद वाला फोड़ा

शमी की छाल का चूर्ण अथवा पेस्ट प्रभावित स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

प्रमेह रोग

शमी की कोपल को पांच ग्राम की मात्रा में चबा कर खाने के बाद गाय का दूध पीने से लाभ होता है। ऐसा 2-4 दिन तक किया जाता है।

गर्भपात रोकने के लिए

इसके फूलों और चीनी के पेस्ट को गर्भावस्था में खाया जाता है।

सफ़ेद पानी (श्वेत प्रदर / लिकोरिया)

जड़ों की छाल का चूर्ण 1-3 ग्राम की मात्रा में 100 ml बकरी के दूध के अट्टह लिया जाता है।

धातु रोग, धातुपौष्टिक, स्तम्भन बढ़ाने के लिए

शमी की कोपलें 5-10 ग्राम की मात्रा में, बराबर मात्रा में मिश्री के साथ पानी डाल कर पीसकर लेने से लाभ होता है।

पित्त प्रकोप के रोग

शमी की कोपलें 5-10 ग्राम की मात्रा में, खांड के साथ लेकर ऊपर से गाय का दूध पियें।

आँखों के लिए ड्रॉप्स

पत्तों के रस को आँखों में डाला जाता है।

अपच

ताज़ा पत्तों को पीस कर, नींबू के रस के साथ खाया जाता है।

दांतों में दर्द

पत्तों को चबाने से दांत मजबूत होते हैं और दर्द में लाभ होता है।

बिच्छू के काटने पर

छाल का पेस्ट प्रभावित स्थान पर लगाते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह कार्डियक डिप्रेशन करता है।
  2. यह रक्तचाप को कम करता है।
  3. यह श्वशन को तेज करता है।

प्याज Onion जानकारी, लाभ, प्रयोग और सावधानियां

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प्याज को तो सभी जानते हैं। संस्कृत में इसका नाम पलाण्डु, यवनेष्ट, दुर्गन्ध, मुखदूषक आदि हैं। हिंदी में इसे पियाज या प्याज़ और गुजराती में डूंगरी कहते हैं। इंग्लिश में इसे अनियन और लैटिन में एलियम सेपा कहते हैं। प्याज कच्चा और पका कर दोनों ही तरीकों से खाया जाता है। प्याज के बिना तो करी वाली सब्जी बन ही नहीं सकती। कच्चा प्याज सलाद की तरह और भरते में डाला जाता है। इसका रस निकाल कर भी प्रयोग करते हैं।

onion health benefits

प्याज भोजन तो है ही लेकिन यह औषधि भी है। इसमें गंधक, जिसे सल्फर भी कहते हैं, होने से यह पूरे स्वास्थ्य को सही कर सकती है।

सल्फर शरीर के हर टिश्यू में पाया जाता है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। यह शरीर में बैक्टीरिया को बढ़ने को रोकता है और टॉक्सिक पदार्थों से सेल्स की रक्षा करता है। यह बालों, त्वचा, जोड़ों और कनेक्टिव टिश्यू के सही विकास के लिए भी ज़रूरी है। सल्फर जोड़ों के दर्द, नाखूनों के टूटने, और शरीर से नुकसान दायक केमिकल्स को दूर करने में सक्षम है। यह धमनियों को इलास्टिक बनाये रखता है और एंटीऑक्सीडेंट की सिंथेसिस के लिए भी ज़रूरी है। प्याज, लहसुन की ही तरह गंधक का आर्गेनिक स्रोत है। यह प्रोटीन में कम है इसलिए यूरिक एसिड की समस्या में भी लाभप्रद है। प्याज को आंतरिक और बाह्य, दोनों ही तरह से प्रयोग किया जाता है। यह कफनिःसारक व मूत्रल होता है। इसे पुरानी खांसी, वूपिंग कफ, जकड़न आदि में अन्य पदार्थों के साथ प्रयोग किया जाता है।

प्याज ही एक ऐसी सब्जी है जिसे काटने पर आँखों से आंसू आते हैं और आँखों में जलन होती है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले कुछ कंपाउंड्स lachrymator compounds के कारण होता है।

सामान्य जानकारी

प्याज का पौधा रसोन/लहसुन की ही भाँती एक 2-3 फुट उंचा क्षुप है। इसके पत्ते लम्बे और अन्दर से पोपले होते हैं। इसके पुष्प सफ़ेद होते हैं। भूमि के अन्दर कन्द होते हैं। सफ़ेद कन्द के दो प्रकार माने गए हैं – छोटा वाला घोड़ पियाज और बड़ा वाला पटनहिया प्याज। पटनहिया प्याज क्षीरपलांडू कहा गया है। सफ़ेद कन्द मधुर और पिच्छिल होता है। लाल कन्द को आयुर्वेद में राजपलांडू कहा गया है। यह सफ़ेद प्याज से अधिक तीक्ष्ण होता है।

  • वानस्पतिक नाम: Allium cepa
  • कुल (Family): प्लांडू कुल / लिलीएसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज, बल्ब, पौधा जिसे स्प्रिंग अनियन कहते हैं।
  • वितरण: प्याज का उत्पत्ति स्थान एशिया माना जाता है और अब यह पूरे विश्व में उगाई जाती है।
  • प्राप्तिस्थान: समस्त भारत।

प्याज का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: Liliopsida – Monocotyledons एकबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: Liliidae
  • आर्डर Order: Liliales लिलीएल्स
  • परिवार Family:  Liliaceae – लिली परिवार
  • जीनस Genus: Allium L. – एलियम
  • प्रजाति Species: Allium cepa एलियम सेपा

प्याज के संघटक Phytochemicals

प्याज में सिलापिक्रिन, सिलामेरिन, सिलीनाइन, सिनिस्ट्रिन, शक्कर, म्युसिलेज, लवण आदि पाए जाते है। इसके कन्द तथा पौधे दोनों में ही उग्रगंध युक्त व चरपरा तेल तथा गंधक पाया जाता है।

  • Alliins (alkylcysteine sulphoxides):
  • Fructosans (polysaccharides, 10-40%)
  • Saccharose and other sugars
  • Flavonoids quercetin-4′-O-beta-D-glucoside
  • Steroid Saponins

प्याज काटते समय आँख में आंसू क्यों आते हैं?

प्याज में अमीनो एसिड सल्फोक्सिड्स sulfoxides होते हैं जो कि प्याज कोशिकाओं में सल्फ़ेनिक एसिड के रूप में होते हैं। प्याज में लेक्राइमेट्री-फैक्टर सिंथेस एंजाइम भी होते हैं। यह एंजाइम और सल्फ़ेनिक एसिड अलग अलग कोशिका में होते हैं।

जब आप प्याज काटते हैं, तो अन्यथा अलग-अलग एंजाइम और सल्फ़ेनिक एसिड मिल जाते हैं और सिन-प्रोपेनथिऑल एस-ऑक्साइड syn-propanethiol S-oxide का उत्पादन करना शुरू होता है, जो एक वाष्पशील सल्फर कंपाउंड है। यह उड़ती हुई वाष्पशील सल्फर कंपाउंड की गैस आंखों के पानी के साथ प्रतिक्रिया करती है और सल्फ्यूरिक एसिड बनाती है। इस प्रकार सल्फ्यूरिक एसिड ने आँखों में जलन पैदा करने का कारण बनता है। जलन से लेक्राइमल ग्लैंड उत्तेजित होते हैं और आँसूओं का निकलना शुरू हो जाता है।

कच्चे प्याज की पोषकता

कच्चे प्याज में बहुत कम कैलोरी होती है, करीब 40 कैलोरी प्रति 100 ग्राम। इसमें 89 प्रतिशत पानी, 9 प्रतिशत कार्बोहायड्रेट, 1.7 प्रतिशत फाइबर और कुछ मात्रा में प्रोटीन भी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें खनिज और विटामिन भी आये जाते है। नीचे 20 ग्राम प्याज की पोषकता दी गई है। ब्रैकेट में प्याज के सेवन से मिलने वाले पोषक पदार्थ को प्रतिदिन ज़रूरी मात्रा के रतिशत रूप में दिया गया है।

  1. कैलोरीज Calories 8
  2. पानी Water 89 %
  3. प्रोटीन Protein 0.2 g
  4. कार्बोहायड्रेट Carbs 1.9 g
  5. चीनी Sugar 0.8 g
  6. फाइबर Fiber 0.3 g

विटामिन्स

  1. विटामिन सी Vitamin C 1.48 mg (2%)
  2. विटामिन डी Vitamin D 0 µg ~
  3. विटामिन ई Vitamin E 0 µg
  4. विटामिन के Vitamin K 0.08 µg
  5. विटामिन बी१ Vitamin B1 (Thiamine) 0.01 mg (1%)
  6. विटामिन बी२ Vitamin B2 (Riboflavin) 0.01 mg
  7. विटामिन बी३ Vitamin B3 (Niacin) 0.02 mg
  8. विटामिन बी५ Vitamin B5 (Panthothenic acid) 0.02 mg (1%)
  9. विटामिन बी६ Vitamin B6 (Pyridoxine) 0.06 mg (5%)
  10. विटामिन बी१२ Vitamin B12 0 µg ~
  11. फोलेट Folate 3.8 µg (1%)
  12. काओलिन Choline 1.22 mg (0%)

खनिज पदार्थ Minerals

  1. कैल्शियम Calcium  4.6 mg 0%
  2. आयरन Iron  0.04 mg 1%
  3. मैग्नीशियम Magnesium 2 mg 1%
  4. फास्फोरस Phosphorus 5.8 mg 1%
  5. पोटेशियम Potassium 29.2 mg 1%
  6. सोडियम Sodium  0.8 mg 0%
  7. जिंक Zinc 0.03 mg 0%
  8. कॉपर Copper 0.01 mg 1%
  9. मैग्नीज Manganese  0.03 mg 1%
  10. सेलेनियम Selenium  0.1 µg 0%

अमीनो अम्ल Amino Acids

  1. ट्रिप्टोफैन Tryptophan 3 mg
  2. थ्रोनिन Threonine 4 mg
  3. आईसोल्यूसीन Isoleucine 3 mg
  4. ल्यूसीन Leucine 5 mg
  5. लाइसिन Lysine 8 mg
  6. मेथियोनीन Methionine 1 mg
  7. सिस्टीन Cysteine 1 mg
  8. टाईरोसिन Tyrosine 3 mg
  9. वेलिन Valine 4 mg
  10. आर्गीनिन Arginine 21 mg
  11. हिस्टीडाइन Histidine 3 mg
  12. एलनिन Alanine 4 mg
  13. एस्पेरेटिक एसिड Aspartic acid 18 mg
  14. ग्लूटामिक एसिड Glutamic acid 52 mg
  15. ग्लाइसीन Glycine 5 mg
  16. प्रोलाइन Proline 2 mg
  17. सेरीन Serine 4 mg

प्याज के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

प्याज गुणों में लहसुन के सदृश्य ही गुण वाला है। यह भी गंधक युक्त है। यह पाक और रस में मधुर माना गया है। गुण में उष्ण और बहुत अधिक पित्त को बढ़ाने वाला नहीं है। इसके सेवन से बल और वीर्य की वृद्धि होती है। यह भारी और वात दोष को दूर करने वाला है।

यह कटु-मधुर रस है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि। मधुर रस, धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात शामक है।

  • रस (taste on tongue): मधुर, कटु
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु, तीक्ष्ण, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है।

प्रधान कर्म

  1. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  2. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  3. कफनिःसारक / छेदन: द्रव्य जो श्वासनलिका, फेफड़ों, गले से लगे कफ को बलपूर्वक बाहर निकाल दे।
  4. रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
  5. विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
  6. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  7. बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
  8. शुक्रल: द्रव्य जो शुक्र की वृद्धि करे।
  9. मूत्रल : द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये।
  10. हृदयोत्तेजक: द्रव्य जो हृदय को उत्तेजित करे।
  11. आर्त्तवजनन: मासिक लाने वाला।
  12. त्वग्दोषहर: त्वचा रोगों को दूर करने वाला।
  13. यकृदुत्तेजक: लीवर को उत्तेजित करने वाला।

बाह्यप्रयोग

  1. शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
  2. वेदनास्थापन: दर्द निवारक।

प्याज खाने के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits of Onion in Hindi

  1. प्याज़ में घुलनशील फाइबर फ्रुक्टन होता है व यह कब्ज़ दूर करने में मदद करता है। फ्रुक्टन फ्रुक्टोस का पॉलीमर है। प्याज में कार्बोहायड्रेट का भण्डारण इसी रूप में होता है।
  2. यह ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करता है। डायबिटीज में इसके सेवन से इन्सुलिन उत्पन्न होता है। एक अध्ययन में देखा गया दैनिक 100 ग्राम प्याज का सेवन ब्लड शुगर के लेवल को काफी हद तक नियंत्रित करता है। यह टाइप 1 और 2, दोनों तरह की डायबिटीज में लाभप्रद है।
  3. यह कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता और बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
  4. यह प्रकृति में गर्म है और पित्त वर्धक है।
  5. यह शरीर में कफ को कम करती है।
  6. इसमें विटामिन सी, एंथोसाईनिन, क्वरसेटिन आदि होने से यह अच्छा एंटीऑक्सीडेंट है।
  7. इसमें फोलेट पाए जाते हैं जो की मेटाबोलिज्म और कोशिकाओं के विकास के लिए ज़रूरी है।
  8. यह हृदय के लिए कई कारणों से लाभप्रद है। इसमें पाया जाने वाला थायोसलफिनेट Thiosulfinates धमिनियों में रक्त के थक्के जमने से रोकता है। इसमें पोटैशियम है जो की ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में लाभप्रद है। यह खून को पतला करती है। यह बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करती है।
  9. इसमें गंधक के कंपाउंड हैं जो की शरीर की बीमारियों से रक्षा करते हैं।
  10. दही के साथ प्याज खाने से दस्त, आंव वाली दस्त, और खूनी दस्त में लाभ होता है।
  11. प्याज को कच्चा खाने से उसमें पाए जाने वाले विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट तथा अन्य पोषक पदार्थ नष्ट नहीं होते।
  12. प्याज के सेवन से शरीर में यूरिक एसिड कम होता है। चूहों में किये गए एक्सपेरिमेंट में इस बात की पुष्टि होती है।
  13. प्याज के सेवन से शरीर में हानिप्रद जीवाणु नष्ट होते हैं।
  14. प्याज के नियमित सेवन से हड्डियाँ मजबूत होती है।
  15. प्याज को चबा कर खाने से मुंह के बैक्टीरिया नष्ट होते हैं और दांतों के रोगों से बचाव होते है। एक रूसी डॉक्टर Russian Doctor, B.P. Tohkin के अनुसार तीन मिनट तक प्याज चबाने से मुंह के सभी बैक्टीरिया नष्ट होते हैं।
  16. खून की कमी को प्याज़ के सेवन से दूर किया जा सकता है।
  17. यह लिपिड को कम करती है।
  18. प्याज में क्वरसेटिन Quercetin bioflavonoid यौगिक पाया जाता है जो की हिस्टामिन का रिलीज़ रोकता है और सूजन को कम करता है।

प्याज दवा की तरह निम्न रोगों में लाभप्रद है

  1. धमनीकाठिन्य Arteriosclerosis
  2. सामान्य जुखाम Common cold
  3. खांसी / ब्रोंकाइटिस Cough/bronchitis
  4. पाचन की कमजोरी Dyspeptic complaints
  5. कफ और बुखार  Fevers and colds
  6. उच्च रक्तचाप Hypertension
  7. मुंह और ग्रसनी का सूजन Inflammation of the mouth and pharynx
  8. भूख में कमी Loss of appetite
  9. संक्रमण की प्रवृत्ति Tendency to infection

प्याज के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of ONION in Hindi

प्याज गंधक युक्त होता है। इसमें स्टार्च, कैल्शियम, लोहा और विटामिन पाए जाते हैं। यह आंतरिक प्रयोग में दीपन, रोचन, मूत्रजनन, शुक्रजनन, बाजिकारक, बलकारक और बाह्य प्रयोग में दर्द निवारक, शोथहर और त्वचा के रोग दूर करने वाली है।  यूनानी मत के अनुसार कन्द तीसरे दर्जे के गरम और पहले दर्जे के खुश्क हैं। बीज दूसरे दर्जे के गर्म और खुश्क हैं। बीजों को मुख्य रूप से वाजीकारक और लेखन माना गया है। प्याज के बीजों को अरबी और फ़ारसी में बज्रुल्ब्स्ल और तुख्मेपियाज कहते हैं।

प्याज को कान रोग, दाद-खुजली, कामशक्ति की कमी, अतिसार, पेट दर्द, वायु के रोगों में प्रयोग किया जाता है।

पीलिया

  • आधा कप सफ़ेद प्याज के रस में पिसी हल्दी और गुड़ मिलाकर पीने से लाभ होता है।
  • प्याज को काट, उसमें काली मिर्च और सेंधा नमक डाल कर भी खाना चाहिए।

अस्थमा, खांसी

प्याज का रस + शहद, मिलाकर चाटना चाहिए।

उलटी

  • प्याज का रस + अदरक का रस, पीने से उल्टियां रुक जाती हैं।
  • थोड़ी- थोड़ी देर पर पर प्याज का एक टीस्पून रस पियें।

पाचन की कमजोरी

प्याज को सिरके के साथ खाएं।

बवासीर

प्याज का रस को 30 ml की मात्रा में मिश्री के साथ लेते हैं।

कान का दर्द, टिनिटस, कान में आवाजें आना

प्याज के रस की कुछ बूंदे कान में टपकाते हैं।

आँख में दर्द, नजला

प्याज का रस + शहद, के साथ मिलाकर आँख में लगाते हैं।

अनिद्रा

रात के भोजन में कच्ची प्याज खाएं।

नपुंसकता, स्वप्नदोष, वीर्य की कमी

प्याज का रस 10 ml + अदरक का रस + शहद 6 ग्राम + घी 4 ग्राम, मिलाकर सेवन करें। ऐसा एक महीने तक करें।

पेट दर्द

प्याज का रस + हींग + काला नमक, का सेवन करें।

मधुमक्खी का काटना

प्रभावित जगह पर प्याज का रस लगायें।

पेट के कीड़े

प्याज का रस एक चम्मच की मात्रा में एक सप्ताह तक सेवन करें।

कॉलरा, हैजा

  1. प्याज का रस + नींबू का रस + पुदीने का रस, मिलाकर पियें।
  2. प्याज 30 ग्राम को सात काली मिर्च के साथ कूट कर, रोगी को दें। इसमें थोड़ी चीनी भी मिला सकते हैं।

गले की खराश, कोल्ड-कफ

प्याज का रस और शहद पियें।

पथरी

प्याज का रस सुबह खाली पेट पियें।

पेशाब की जलन, पेशाब के रोग

प्याज 10 ग्राम को आधा लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो इसे छान लें। इसे ठंडा करके पी लें।

अजीर्ण

प्याज में नींबू निचौड़ भोजन के साथ खाने से लाभ होता है।

वाजीकरण

  1. सफ़ेद प्याज को काट कर घी में भून लें। इसमें एक चम्मच शहद मिला कर नियमित खाली पेट खाएं।
  2. प्याज का रस और शहद पियें।

पटाखे से जल जाना

प्याज का रस लगाएं।

नकसीर

प्याज का रस नाक में टपकाते हैं।

गठिया का दर्द

प्याज का रस + सरसों का तेल, बराबर मात्रा में मिलाकर मालिश करें।

मोच

प्याज और हल्दी को पीस कर प्रभावित जगह पर बाधें।

सूजन

सरसों के तेल में प्याज के बारीक टुकड़े फ्राई करें। थोड़ी हल्दी डालें और सहता हुआ पुल्टिस बना सूजन पर लगायें।

दाद-खुजली

प्याज का लेप करें।

फोड़े-फुंसी

प्याज को कच्चा या भून कर पुल्टिस बनाकर लगाएं।

वार्ट

कच्चा प्याज रगड़ें।

प्याज की औषधीय मात्रा

  1. सलाद की तरह एक मीडियम साइज़ प्याज को काट कर दिन में एक-दो बार खाना चाहिए।
  2. प्याज के रस को 10-30 ml की मात्रा में पी सकते हैं।
  3. बीजों के चूर्ण को लेने की मात्रा 1 से 3 ग्राम है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. प्याज़ में फ्रुक्टन होता है। अधिक मात्रा में इसका सेवन गैस, पेट फूलना और पेट में दर्द कर सकता है।
  2. कुछ लोग फ्रुक्टन fructans are also known FODMAPs (fermentable oligo-, di monosaccharides and polyols) का पाचन करने में सक्षम नहीं होते। उनमें फ्रुक्टन युक्त भोज्य पदार्थ खाने के बाद पाचन समस्या हो सकती है। ऐसा सभी में नहीं होता लेकिन इरीटेबल बोवेल सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के साथ हो सकता है।
  3. प्याज के सेवन से मुंह और पसीने से प्याज की बदबू आ सकती है।
  4. आयुर्वेद के अनुसार अत्यधिक मात्रा में प्याज का सेवन बेचैनी, पेशाब में जलन, पेट-अंत में जलन, आदि कर सकता है।
  5. अधिक मात्रा में इसके सेवन से विरेचन होता है।
  6. यह पित्त प्रकृति के लोगों के लिए अहितकर कहा गया है।
  7. प्याज गर्म स्वभाव वाले लोगों में प्यास पैदा करता है।
  8. गर्भावस्था में प्याज को औषधीय मात्रा या अधिक मात्रा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। भोजन के रूप में इसे खाने से कोई नुकसान नहीं देखा गया है।
  9. प्याज के हानिप्रद असर को कम करने के शहद, अनार का रस, सिरका और नमक का प्रयोग किया जा सकता है।
  10. प्याज़ की बदबू को कम करने के लिए गुड़ का सेवन करना चाहिए।
  11. प्याज को बहुत अधिक मात्रा में न खाएं।

बनफशा Viola odorata in Hindi

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बनफशा, बनप्शा, बन्फश, फारफीर, ब्लू वायलेट, स्वीट वायलेट आदि वाओला ओडोराटा Viola odorata Flower के नाम है। इसका उत्पत्ति स्थान फारस है और यह मुख्य रूप से यूनानी चिकित्सा पद्यति में दवाई की तरह प्रयोग किया जाता है।

bansafa
By Majercsik László / LaMa (http://zoldvilaginfo.info) [GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html) or CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons
बनफशा भारत में अनुष्णाशीत पश्चिमी हिमालय में लगभग 5000 फुट की उंचाई पर पाया जाता है। बनफशा के पौधे छः अंगुल तक के होते हैं और पत्ते रोम युक्त और ब्राह्मी की पत्तियों के समान दांतेदार होती हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी होता है और यह खुशबूदार होते हैं।

यूनानी चिकित्सा में पूरे पौधे को दवाई के रूप में प्रयोग करते हैं और बनफसा कहते हैं। इसके सूखे फूल को गुलेबनफ्शा कहा जाता है। यूनानी में इसे पहले दर्जे का ठण्डा और तर माना गया है। यह श्लेष्मनिस्सारक, स्वप्नजनन, और शीतल है। इसे पेट दर्द, गले में दर्द, पित्त की अधिकता, अधिक प्यास में प्रयोग किया जाता है। यह फेफड़ों के रोगों, जुखाम, खांसी, सूखी खांसी, और पेट और लीवर में अधिक गर्मी के रोगों में दवा के तौर पर दिया जाता है।

पुराने दिनों में बनफ्शा को ईरान से आयात किया जाता था, लेकिन अब यह कश्मीर में कांगड़ा और चंबा से एकत्र किया जाता है। यूनानी चिकित्सा में जड़ी बूटी, परिपक्व फूल का दवा के रूप में उपयोग स्वेदजनन/डाइफोरेक्टिक, ज्वरनाशक/एंटीपीरेक्टिक और मूत्रवर्धक की तरह अकेले या अन्य दवाओं के नुस्खे में प्रयोग किया जाता है। इसका फुफ्फुसीय प्रभाव है और आम तौर पर इसे फांट, काढ़े की तरह प्रयोग किया जाता है।

बनफशा से बना गुलकंद, रोग़न बनफशा , खामीरा-ए-बनफ्शा और शरबत-ए-बनफ्शा दवाई की तरह श्वसन पथ, ब्रोंकाइटिस, बुखार, अनिद्रा, जोड़ों के दर्द आदि में दिया जाता है। यूनानी चिकित्सकों ने सूजन दूर करने के गुण से बनफ्शा से बने काढ़े को फुफ्फुस, यकृत की बीमारियों में दिया जाता है।

सामान्य जानकारी

  1. वानस्पतिक नाम: वाओला ओडोराटा
  2. कुल (Family): वायोलेसीए
  3. औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
  4. पौधे का प्रकार: हर्ब
  5. वितरण: अनुष्णाशीत पश्चिमी हिमालय में
  6. पर्यावास: लगभग 5000 फुट की उंचाई पर, कश्मीर, काँगड़ा, और चम्बा में।

बनफशा के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. हिन्दी: Banapsa, Banafsha, Vanapsha
  2. अंग्रेजी: Sweet Violet, Wood violet, Common violet, Garden violet
  3. तमिल: Vayilethe
  4. उर्दू: Banafshaa, Banafsaj, Kakosh, Fareer

बनफशा का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: डिल्लेनीडाए Dilleniidae
  7. आर्डर Order: विओलेल्स Violales
  8. परिवार Family: विओलेसिएइ Violaceae – वायलेट फॅमिली
  9. जीनस Genus: वाइला Viola L.– वायलेट
  10. प्रजाति Species: Viola odorata L. – स्वीट वायलेट

बनफशा के संघटक Phytochemicals

फूलों में वायलिन नामक एक उलटी लाने वाला पदार्थ है जो पौधे के सभी भागों में मौजूद होता है। यह पदार्थ कड़वा और तीव्र होता है। इसके अतिरिक्त इसमें एक अस्थिर तेल, रटिन (2%), साइनाइन (5.3%), एक बेरंग क्रोमोजेन, एक ग्लाइकोसाइड मिथाइल सैलिसिलेट और चीनी पाया जाता है। वाष्पशील तेल में अल्फा- और बैटेरोन होते हैं। रूट स्टॉक में सैपोनिन (0.1-2.5%) होता है।

बनफशा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

बनफ्शा का पंचांग (पाँचों अंग) स्वाद में कटु, तिक्त गुण में हल्का, तर है। स्वभाव से यह ठण्डा और कटु विपाक है। यह वातपित्त शामक और शोथहर है। यह जन्तुनाशक, पीड़ा शामक और शोथ दूर करने वाला है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध,
  • वीर्य (Potency): आयुर्वेद में उष्ण / यूनानी में पहले दर्जे का ठण्डा
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

प्रधान कर्म

  1. कफनिःसारक / छेदन: द्रव्य जो श्वासनलिका, फेफड़ों, गले से लगे कफ को बलपूर्वक बाहर निकाल दे।
  2. मूत्रल: द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये। diuretics
  3. शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  4. श्लेष्महर: द्रव्य जो चिपचिपे पदार्थ, कफ को दूर करे।
  5. शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
  6. बल्य: द्रव्य जो बल दे।

बनफशा इन रोगों में लाभप्रद है:

  1. दमा Asthma
  2. ब्रोंकाइटिस Bronchitis
  3. सर्दी Colds
  4. खांसी Cough
  5. डिप्रेशन Depression
  6. फ्लू के लक्षण Flu symptoms
  7. नींद (अनिद्रा) insomnia
  8. फेफड़े की समस्याएं Lung problems
  9. रजोनिवृत्ति के लक्षण Menopausal symptoms
  10. घबराहट Nervousness
  11. पाचन समस्याओं Digestion problems
  12. मूत्र समस्याएं Urinary problems आदि।

बनफशा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Viola odorata in Hindi

बनफशा पौधे के पत्ते, फूल समेत पूरे पौधे को दवा की तरह प्रयोग किया जाता है। इसके केवल सूखे फूल को गुले बनफशा कहते हैं। यूनानी चिकित्सा में इसका बहुत प्रयोग किया जाता है। बनफशा की अनेक प्रजातियाँ है जैसे की वायोला सिनेरेआ और वायोला सर्पेंस। इनमें से नीले और जामुनी रंग के फूलों वनस्पति उत्तम मानी जाती है।

गुलेबनफशा में वमनकारी अल्कालॉयड, तेल, रंजक द्रव्य, वायोलेक्वरसेटिन आदि पाए जाते हैं।

आमतौर पर बनफशा को जुखाम, नज़ला, कफ, खाँसी, जकड़न, श्वसन तंत्र की सूजन, भरी हुई नाक, ब्रोंकाइटिस, ऐंठन, मस्तिष्क, हिस्टीरिया, कलाई के गठिया, तंत्रिका तनाव, हिस्टीरिया, शारीरिक और मानसिक थकावट, रजोनिवृत्ति के लक्षण, अवसाद और चिड़चिड़ापन coryza, cough, congestion, and inflammation of the respiratory tract, spasmodic cough, neuralgia, hysteria, rheumatism of wrist आदि में दिया जाता है। यह श्लेष्म को पतला करता है जिससे वह आसानी से निकल सकता है। यह बच्चों और गर्भवती माताओं के लिए सुरक्षित है।

इसके फूलों का मदर टिंक्चर डिस्पिनिया, खांसी, सूखी खांसी, गले में खराश, ग्रीवा ग्रंथियों की सूजन के उपचार के लिए होम्योपैथी में दिया जाता है।

बनफशा शरीर में जलन, आँखों की जलन, पेशाब की जलन आदि में शीतल गुणों के कारण लाभप्रद हैं। इसे पेट दर्द, पेट और आंतों की सूजन, अनुचित आहार के कारण पाचन समस्याएं, गैस, जलन,पित्ताशय की बीमारियों, और भूख न लगना आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है।

इसके पत्तों का पेस्ट दर्द और सूजन पर बाह्य रूप से लगाया जाता है। इसे त्वचा विकारों के में और त्वचा साफ़ करने के लिए भी पेस्ट की तरह लगाते हैं।

बनफशा की औषधीय मात्रा

गुले बनफशा को लेने की आंतरिक मात्रा 5-6 ग्राम है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. बनफशा का कोई ज्ञात साइड इफ़ेक्ट नहीं है।
  2. वैसे तो इसे बच्चों और गर्भवती माताओं के लिए इसे सुरक्षित कहा गया है, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बिना इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।
  3. बनफशा का किसी दवा के साथ इंटरेक्शन ज्ञात नहीं है।

हींग Asafoetida उपयोग, लाभ और सावधानियां

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हींग Asafoetida,को तो सभी जानते हैं। इसे बहुत से भोज्य पदार्थों जो की गैस बनाते हैं, जैसे की दाल, पकौड़े, गोभी, बीन्स, आदि बनाते समय एक सामग्री के रूप प्रयोग करते हैं। इसे घरेलू उपचार के रूप में भी पाचन रोगों में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से अफारा दूर होता है। छोटे बच्चों में भी इसे पानी में घिस कर नाभी के आस-पास लगा देने से गैस, पेट का दर्द आदि दूर होते हैं।

hing ke upyog

हींग के पौधे कश्मीर, बालटिस्तान, अफगानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। भारत में हींग को मुख्य रूप से अफगानिस्तान तथा फारस से आयात करते हैं। आयातित होने के कारण यह काफी महंगी होती है व उत्तम गुणवत्ता की हिंग मिल पाना भी आजकल मुश्किल है।

हींग, तेल और रालयुक्त गोंद है जिसे इंग्लिश में ओले-गम-रेसिन कहते हैं। हींग के पौधे की जड़ एवं तने पर चीरा लगाकर इस गोंद को प्राप्त करते हैं। हींग के पौधे पांच फुट तक ऊँचे हो सकते हैं। इनका तना कोमल होता है। पत्तियां कोमल, रोयेंदार, संयुक्त, 2-4 पक्षयुक्त होती हैं। फूलों का रंग पीला होता है और गाजर कुल के अन्य पौधों के तरह छतरी की तरह निकलते हैं। जड़ें गाजर की तरह कन्द होती हैं। इन कन्द रुपी जड़ों से 4-5 साल की आयु होने पर हींग को प्राप्त किया जाता है। हींग के फल अज्जूदान कहलाते हैं। पत्तो का भी साग बनाकर खाया जाता है।

हींग को प्राप्त करने के लिए, मार्च-अप्रैल में फूल आने के पहले, जड़ों के पास की मिट्टी को खुरच कर हटा लिया जाता है। इससे जड़ें बाहर दिखने लगती है। इसके बाद जड़ के कुछ ऊपर तने से पौधा पूरा काट दिया जाता है। कटे तल से सफ़ेद रंग का गाढ़ा स्राव निकलने लगता है। इस पर धूल-मिट्टी न जमे इसलिए इन्हें ढक दते हैं। कुछ दिनों के बाद, निकले पदार्थ को खुरच कर रख लेते हैं तथा दूसरा कट लगा देते हैं, जिससे नया निर्यास मिल सके। इस तरह कुछ महीने हींग को इकठ्ठा करते हैं जब तक स्राव होना बंद न हो जाए।

बाज़ार में कई प्रकार की हींग उपलब्ध है। इनमे से हीरा हींग सबसे उत्तम मानी जाती है। महंगी होने से बहुत से नकली और घटिया गुणवत्ता की हींग भी मार्किट में उपलब्ध है। दवा के रूप में उत्तम हिंग को कम मात्रा में प्रयोग करने से ही फायदा होता है।

सामान्य जानकारी

  1. वानस्पतिक नाम: Ferrula asafoetida, Ferula foetida (Bunge) Regel
  2. कुल (Family): छत्रक कुल
  3. औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: गोंद
  4. पौधे का प्रकार: पांच फुट तक के कोमल काण्ड वाले पौधे
  5. वितरण: कश्मीर, बालटिस्तान, अफगानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि
  6. पर्यावास: ठन्डे प्रदेश, मध्य एशिया, ईरान और अफगानिस्तान

हींग के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Ramatha, Sahasravedhi, Ramatta, Bhutnasan, Hingu, Sulansan, Bahleeka, Suraini
  2. हिन्दी: हींग Hing, Hingda
  3. अंग्रेजी: Asafoetida, Asafetida, Asant, Devil’s Dung, Gum Asafetida
  4. असमिया: Hin
  5. बंगाली: Hing
  6. गुजराती: Hing, Vagharni
  7. कन्नड़: Hing, Ingu
  8. मलयालम: Kayam
  9. मराठी: Hing, Hira, Hing
  10. उड़िया: Hengu, Hingu
  11. पंजाबी: Hing
  12. तमिल: Perungayam
  13. तेलुगु: Inguva
  14. उर्दू: Hitleet, Hing
  15. अरेबिक Arabic: Zallouh, Anjadan, Hilteet, Simagh-ul-mehroos
  16. यूरोप Europeans: Devil’s dung
  17. पर्शिया Persian: Angoza, Angzoo, Amma, Anksar, Nagoora, Nagsatgudha
  18. तुर्की Turkish: Şeytantersi (devil’s sweat), şeytan boku (devil’s shit) or şeytanotu (the devil’s herb)

हींग का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: Rosidae
  7. आर्डर Order: Apiales
  8. परिवार Family: एपिएसिए Apiaceae ⁄ Umbelliferae – गाजर परिवार
  9. जीनस Genus: फेरुला Ferula L – ferula
  10. प्रजाति Species: फेरुला एसाफोएटिडा Ferula assa-foetida L – asafetida

हींग के संघटक Phytochemicals

गोंद का हिस्सा Gum fraction 25%: Glucose, galactose, L-arabinose, rhamnose and glucuronic acid

राल Resins 40-64%: Ferulic acid esters (60%), free ferulic acid (1.3%), asaresinotannols and farnesiferols A, B and C, coumarin derivatives (e .g. umbelliferone), coumarin-sesquiterpene coinplexes (e.g . asacoumarin A and asacoumarin B). Free ferulic acid is converted to coumarin during dry distillation.

उड़नशील तेल Volatile oils: 3-17%. Sulfur containing compounds with disulfides as major components, various monoterpenes.

अलग – अलग फेरुला स्पीशीज के पौधों से प्राप्त हींग के संगठन एक समान नहीं होते।

पौष्टिकता

  1. कार्बोहायड्रेट 68%
  2. मिनरल 7%
  3. प्रोटीन 4%
  4. फाइबर 4%
  5. नमी 16%

हींग के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

हींग स्वाद में कटु गुण में लघु, चिकनी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। यह पित्त वर्धक है और पाचन को तेज करती है।

  • रस (taste on tongue): कटु
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • दोष पर असर: वात और कफ को संतुलित करना व पित्त वर्धक

यह कटु रस औषधि है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि।

कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। इसका अधिक सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

प्रधान कर्म

  1. अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  2. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  3. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  4. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  5. पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
  6. छेदन: द्रव्य जो श्वास नलिका, फुफ्फुस, कंठ से लगे मलको बलपूर्वक निकाल दे।

आयुर्वेदिक दवाएं

  1. हिंग्वाष्टक चूर्ण
  2. हिंगवादि चूर्ण
  3. हिन्गुवचादि चूर्ण

मुख्य रोग जिनमें हींग का प्रयोग लाभप्रद है:

  1. अग्निमांद्य
  2. आध्मान
  3. अनाह
  4. गुल्म
  5. शूलरोग
  6. उदर / पेट रोग
  7. हृदय रोग
  8. कृमिरोग

हींग के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Asafoetida in Hindi

हींग बहुत वीर्यवान तेज गंध युक्त निर्यास है। इसमें एक विशिष्ट गंध होती है जो की इसमें उपस्थित डाईसल्फाइड के कारण होती है। ऐसा माना जाता है की कच्चा हींग उलटी लाता है इस लिए इसे घी में भून कर प्रयोग करते हैं। यह शरीर में गर्मी बढ़ाने वाला मसाला है। खाने में इसे डालने का मुख्य कारण पाचन में गैस को न बनने देना है। यह आक्षेपनिवारक, आध्माननाशक, बल्य, मृदु विरेचक, मूत्रल, रजःप्रवर्तक, कृमिघ्न और वृष्य neuroprotective, antispasmodic, antiulcerogenic, hepatoprotective, hypotensive, relaxant, nephroprotective, antiviral, antifungal, chemopreventive, antidiabetic, antioxidant है।

हींग का अधिक मात्रा में सेवन नुकसान करता है। यह शरीर का ताप तो नहीं बढ़ाता परन्तु धातुओं में उष्मा बढ़ा देता है। जहाँ कम मात्रा में यह पाचन में सहयोगी है, वहीँ इसकी अधिक मात्रा पाचन की दुर्बलता, लहसुन की तरह वाली डकार, शरीर में जलन, पेट में जलन, एसिडिटी, अतिसार, पेशाब में जलन आदि दिक्कतें पैदा करता है।

हींग का तेल वातनाशक है। यह पेट में दर्द, गैस आदि में राहत देता है। आमवात में सामान्य तेल के साथ मिलाकर इससे मालिश करते हैं। हिंग के तेल के सेब्वन से मासिक में अधिक रक्त जाता है। इसे आंतरिक रूप से लेने की मात्रा आधा बूँद से लेकर तीन बूँद है। इसे बताशे पर डाल कर लेते हैं।

हींग के पित्त वर्धक गुण से इसे पित्त की कमी से होने वाले अपच में, वायुनाशक होने से आध्मान-शूल, ग्रहणीशूल में, और कफनाशक होने से पुराने कफ रोग व अस्थमा में प्रयोग करते हैं।

अपच

हींग को तड़के के रूप में प्रयोग करें।

खांसी, टीबी

शहद के साथ हींग को चाट कर लें।

जहरीले कीट, बिच्छू, ततैया आदि काट लेना

प्रभावित जगह पर हींग का लेप करें।

पुराना घाव

हींग को नीम के पत्तों के साथ पीसकर लेप लगाएं।

हिस्टीरिया

हींग सुंघाने से लाभ होता है।

सांस की तकलीफ

पानी में घोल कर हींग का सेवन करें।

हृदय के लिए

इसके प्रयोग से हृदय को ताकत मिलती है, थक्का नहीं जमता और रक्त संचार ठीक होता है।

पेट में दर्द, गैस, अफारा

  1. एक रत्ती हींग को गर्म पानी के साथ निगल जाएँ। अथवा
  2. भुनी हींग को सेंध नामक के साथ कम मात्रा में लें। अथवा
  3. घी में भुनी हींग दो चुटकी को अजवाइन, हरीतकी, काला नमक (प्रत्येक 2 ग्राम) के साथ मिला बारीक़ चूर्ण बना कर रख लें। इसे खाना खाने के बाद चौथाई-आधा चम्मच लें। अथवा
  4. हींग को आधा चम्मच अजवाइन के साथ गर्म पानी के साथ लें। अथवा
  5. हिंग्वाष्टक चूर्ण का सेवन करें। अथवा
  6. हींग को सिरके के साथ चाट कर लें। अथवा
  7. हींग चुटकी भर, अदरक रस आधा चम्मच, नीबू एक चम्मच, काली मिर्च का चूर्ण को मिलाकर गर्म पानी के साथ लें।
  8. अथवा नाभि के आस-पास पेस्ट रूप में लगाएं।

भूख न लगना

भुनी हींग को 1 रत्ती की मात्रा में पिप्पली के चूर्ण और शहद के साथ लें।

हींग की औषधीय मात्रा

हींग को लेने की औषधीय मात्रा 125-500 mg है। अधिकतर मामलों में 250mg मात्रा पर्याप्त होती है। अधिक मात्रा में इसे लेने से पित्त की अधिकता, पेट की जलन, सिर में दर्द आदि समस्याएं हो सकती हैं।

यह मात्रा उत्तम गुणवत्ता की हींग के लिए है। बाजार में जो तड़के वाली हींग मिलती है, उसमें पचास प्रतिशत से अधिक आटा, खाने वाला गोंद और बहुत कम हींग होती है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह पित्त को बढ़ाती है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. रक्तपित्त में इसका अधिक सेवन समस्या को गंभीर कर सकता है।
  6. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  7. इससे मासिक स्राव को बढ़ाने वाला और गर्भनाशक माना गया है।
  8. स्तनपान के दौरान भी इसका सेवन दवा के रूप में न करें क्योंकि दूध से बच्चे में जाने पर यह methaemoglobinaemia कर सकता है।
  9. बच्चों को आंतरिक प्रयोग के लिए न दें। बाह्य रूप से पानी में घुला कर लगा सकते हैं।
  10. शिशुओं को देने पर यह हीमोग्लोबिन को ऑक्सीडाइज कर देता है जिससे methaemoglobinaemia हो जाता है।
  11. यदि सर्जरी कराने वाले हैं, तो इसका सेवन २ सप्ताह पहले से बंद कर दें क्योंकि इसका सेवन शरीर में गर्मी बढ़ाता हैं खून पतला करता है, थक्के बनना रोकता है और इन सबसे खून के अधिक बहने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  12. ऐसा कोई भी रोग जिसमें पेट में या शरीर में जलन होती हो, में इसका सेवन दवा रूप में न करें।
  13. हिंग उच्चरक्तचाप, एंटीप्लेटलेट और एंटीकोएगुलेंट दवाओं के साथ ड्रग इंटरेक्शन संभव है। इसलिए इन सभी मामलों में सावधानी रखें।
  14. हींग का बाह्य प्रयोग त्वचा को लाल कर सकता है। यह dermatitis के लक्षण उत्पन्न कर सकता है।
  15. चूहों में किये गए परीक्षण में हींग के सेवन से कमजोर sister chromatid exchange-inducing effect स्पर्म के बनने के दौरान देखा गया। यह क्रोमोसोमल को डैमेज करने वाला असर हींग में मौजूद coumarin के कारण होता है।

चुकंदर Beetroot जानकारी, लाभ और सावधानियां

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चुकंदर को इंग्लिश में शुगर बीट, बीट, बीटरूट, गार्डन बीट और बीटा वलगेरिस के नाम से जानते हैं। गन्ने के अतिरिक्त चुकंदर ही एक ऐसा पादप है जिससे चीनी प्राप्त की जा सकती है। यह मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध के शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों की फसल है। यह एशिया, समेत रूस, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका आदि देशों में उगाया जाता है।

chukandar ka laabh

चुकंदर के पत्तों को शाक रूप में व लाल रंग की जड़ को सब्जी, सलाद और जूस की तरह खाया जाता है। चुकंदर का जूस अकेले ही या अन्य फलों के जूस के साथ मिला कर पिया जाता है। चुकंदर का जूस शारीरिक क्षमता को बढ़ाता है। यह बहुत स्वास्थ्यवर्धक और आयरन से भरपूर होता है। इसका जूस वजन घटाने में सहायक करता है। चुकंदर को दैनिक भोजन में शामिल करने के अनेकों लाभ हैं। लेकिन इसे कम मात्रा में ही लेना चाहिए। इसमें पाया जाने वाला ओक्सालिक एसिड अधिक मात्रा में सेवन करने पर नुकसान करता है।

चुकंदर के नाम

  1. हिंदी: चुकंदर
  2. अंग्रेजी: Beet
  3. लैटिन: Beta vulgaris
  4. फ्रेंच French: Bette
  5. जर्मन German: Baisskohl
  6. स्पेनिश Spanish: Barba bictola
  7. ईटालियन Italian: Bictola
  8. चायनीज़ Chinese: T’ientsai

चुकंदर के घटक

  • Saccharose: A nonreducing disaccharide made up of d-glucose and d-fructose.
  • Other oligosaccharides: refined sugar, ketose.
  • Polysaccharides: including galactans, arabans, pectin.
  • Fruit acids: including L(-)-malic acid, D(+)-tartaric acid, oxaluric acid, adipic acid, citric acid, glycolic acid, glutaric acid.
  • Amino acids: including asparagine, glutamine, Betaine (trimethylglycine) Triterpene saponins

प्रति 100 ग्राम ताजे चुकंदर में पोषण Nutrition per 100 gram

  1. कार्बोहाइड्रेट 9.96 ग्राम
  2. शुगर्स 7.96 ग्राम
  3. आहार फाइबर 2.0 ग्राम
  4. फैट 0.18 ग्राम
  5. प्रोटीन 1.68 ग्राम
  6. विटामिन ए 2 माइक्रोग्राम
  7. थाइमिन (विटामिन बी1) 0.031 मिलीग्राम
  8. रिबोफ़्लविन (विटामिन बी2) 0.027 मिलीग्राम
  9. नियासिन (विटामिन बी3) 0.331 मिलीग्राम
  10. पैंटोथेमिक एसिड (बी5) 0.145 मिलीग्राम
  11. फॉलेट (विटामिन बी9) 80 माइक्रोग्राम
  12. विटामिन बी6 0.067 मिलीग्राम
  13. विटामिन सी 3.6 मिलीग्राम
  14. कैल्शियम 16 मिलीग्राम
  15. आयरन 0.7 9 मिलीग्राम
  16. सोडियम 77 मिलीग्राम
  17. मैगनीशियम 23 मिलीग्राम
  18. फास्फोरस 38 मिलीग्राम
  19. पोटेशियम 305 मिलीग्राम
  20. जिंक 0.35 मिलीग्राम

चुकंदर के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits of Beetroot in Hindi

चुकंदर के सेवन के बहुत से लाभ हैं। इसमें पौष्टिक, एंटीइन्फ्लेमेटरी, एंटीकैंसर, एंटीट्युमर, एंटीएनिमिक व एंटीहेपेटोटॉक्सिक गुण पाए जाते हैं। जानवरों में किये गए अध्ययन दिखाते हैं, चुकंदर लीवर में फैट के स्टोरेज को रोकता है। इसलिए इसे लीवर के रोगों और फैटी लीवर में प्रयोग किया जाता है। यह cellulite और obesity में लाभ करता है।

रंग मे यह लाल होता है और खून में वृद्धि करता है। इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर कब्ज़ को नहीं होने देते। इसके अतिरिक्त यह कोलेस्ट्रोल को कम करने भी सहयोगी है। इसमें पाए जाने वाले नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट शरीर में फ्री रेडिकल डैमेज को रोकते हैं और रोगों से शरीर की रक्षा करते हैं। चुकंदर में मौजूद कैरोटिनोइड्स और फ्लेवोनोइड्स बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करते हैं।

चुकंदर हृदय के लिए लाभप्रद है। यह बुरे कोलेस्ट्रोल को धमनियों में जमने नहीं देता और उच्चरक्तचाप को कम करता है। इसमें नाइट्रेट्स होते हैं जो खून में नाइट्रिक ऑक्साइड गैस बनाते हैं जो की खून की नलियों को खोलती और बढ़े हुए रक्तचाप को कम करती है। यह धमनी के सख्त हो जाने व नसों की समस्या में लाभ करता है।  इसमें पाए जाने वाला नाइट्रेट गैस बनना कम करता है।

चुकंदर में पाए जाने खनिज लवण जैसे की सोडियम, पोटासियम, क्लोरिन, फोलिक एसिड, सल्फर और आयोडीन आदि स्वास्थ्य पर अच्छे प्रभाव डालते हैं। इसमें विटामिन्स की अच्छी मात्रा होती है। पोटेशियम शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है। क्लोरीन गुर्दों के शोधन में मदद करता है।

  1. चुकंदर में पाया जाने वाला बीटासाइनिन गांठों को नष्ट करता है।
  2. इसमें फोलिक एसिड (विटामिन बी-9 या फोलासीन या फोलेट) भी होता है। यह विटामिन कोशिका निर्माण और कोशिका वृद्धि के लिए आवश्यक है। स्वस्थ रक्त कोशिका के निर्माण के लिए और अनीमिया को रोकने के लिए यह अत्यंत ज़रूरी विटमिन है। फोलेट उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में भी मदद करता है।
  3. चुकंदर में कम किन्तु अच्छी गुणवत्ता का लौह, होता है जो रक्तवर्धन और शोधन के काम में सहायक होते हैं।
  4. इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट तत्व, बीटासाइनिन, कैरोटिनोइड्स और फ्लेवोनोइड्स शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं।
  5. यह प्राकृतिक शर्करा सुक्रोज़’ का स्रोत होता है। इसे खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है।
  6. यह गुर्दे और पित्ताशय को साफ करता है।
  7. इसे खाने से कब्ज़ नहीं होता इसलिए इसे पाइल्स में लेना चाहिए।
  8. चुकंदर के साथ गाजर का रस या सेब का रस मिलाकर पीने से खून की कमी की दूर होती है, फोलिक एसिड की आपूर्ति होती है और ताकत मिलती है। दूसरे रस में मिलाकर पीने से स्वाद बेहतर होता है और गले में चुभन भी नहीं होती।
  9. चुकंदर में बोरोन पाया जाता है जो की ह्यूमन सेक्स हॉर्मोन को बढ़ाता है जिससे सेक्स ड्राइव बढ़ती है।
  10. यह बहुत पौष्टिक है और पूरे पाचन तन्त्र पर टॉनिक असर दिखाता है।
  11. चुकंदर का रस पीने से लीवर से टोक्सिन दूर होते हैं। इसलिए इसे पीलिया, हेपेटाइटिस, फैटी लीवर, फ़ूड पोइज़निंग, उलटी, दस्त आदि में लेना लाभप्रद है।
  12. चुकंदर को अल्सर में लेने से लाभ होता है। इसके लिए चुकंदर के रस में शहद मिलाकर सप्ताह में दो से तीन बार खाली पेट लेना चाहिए।
  13. इसको खाने से खून साफ़ होता है और त्वचा में कान्ति आती है।

सावधानियां / चुकंदर खाने के नुकसान / कब न खाएं

  1. चुकंदर को ताज आंच पर नहीं पकाना चाहिए।
  2. चुकंदर को अधिक पका देने पर इसके स्वास्थ्यवर्धक गुण नष्ट हो जाते है।
  3. चुकंदर में सुक्रोज़ होता है इसलिए इसे डायबिटीज में न खाएं तो बेहतर है।
  4. इसे कच्चा खाने से पहले बहुत अच्छे से धो लें।
  5. जब चुकंदर का जूस पीना शुरू करें, तो शुरू में इसी कम मात्रा पियें। आधे मीडियम साइज़ चुकंदर का रस पीने से शुरुवात करें। मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं।
  6. एक दिन में एक कप जूस का सेवन पर्याप्त है।
  7. इसमें ओक्सालिक एसिड की काफी मात्रा होती है। इसका अधिकता में सेवन किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है।
  8. ऑक्सालेट वाले किडनी स्टोंस हों तो इसका सेवन कम मात्रा में करें।
  9. इसको पीने से पेशाब का रंग लाल-गुलाबी हो सकता है लेकिन इससे कोई नुकसान harmless side effect नहीं है।
  10. अधिक मात्रा में इसके सेवंन से ब्लड सीरम में कैल्शियम की कमी hypocalcemia, ऐंठन, उलटी, आदि हो सकते है।

गुणकारी पपीता Health Benefits of Papaya in Hindi

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पपीते का फल, कच्चा या हरा और पका दोनों ही तरीके से खाया जाता है। कच्चे पपीते को सब्जी के रूप में पका कर खाया जाता है। यह सब्जी पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होती है। पका पपीता स्वादिष्ट होता है और इसे खाने से शरीर को ज़रूरी पोषक पदार्थ मिलाते हैं व पाचन भी ठीक रहता है। पेट के सभी विकारोंकब्ज़ के लिए तो यह बहुत ही फायदेमंद है। रोजाना पपीता खाने से कब्ज़ नहीं रहती। पेट ठीक से साफ़ होता है तो दर्द, अफारा दूर रहते है और भूख ठीक से लगती है। यह आसानी से पचता है एवं सभी के खाने योग्य है।

papita ke fayade

पपीता गर्भावस्था में नहीं खाना चाहिए। पपीता और अन्नानास दो ऐसे फल हैं जिनको एलोपैथिक डॉक्टर भी खाने के लिए मना करते हैं।

Health Benefits of Papaya in Hindi

  1. पपीते के फल को खाने के बहुत से लाभ हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ नीचे दिए गए हैं:
  2. पपीते को खाने से पाचन समस्याएं दूर रहती हैं। यह अमाशय को मजबूत करता है। यह मुख्य रूप से कब्ज़ की दवाई है। सुबह खाली पेट पका पपीता खाने से कब्ज़ का निवारण होता है।
  3. पपीता खाने से आँतों की सफाई होती है, पाचन शक्ति बढ़ती है और भूख ठीक से लगती है। यह मन्दाग्नि, अजीर्ण, अफारा, पेट में जलन, प्यास न लगना आदि सभी में कारगर है।
  4. गरिष्ठ पदार्थों के सेवन करने से जो उपद्रव पैदा होते हैं, वे पपीता खाने से दूर हो जाते हैं।
  5. पपीता खाने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। पेड़ पर पके पपीते को सुबह खाली पेट खाने से उच्चरक्तचाप कम होता है। ऐसा कई सप्ताह तक लगातार करना चाहिए और पपीता खाने के २ घंटे बाद तक कुछ नहीं खाना चाहिए।
  6. पपीता का सेवन आँखों के लिए बहुत लाभकारी है। इसे खाने से आँखों की रौशनी बढ़ती है।
  7. पपीता का सेवन अस्थमा, खून की कमी, टीबी, बवासीर आदि सभी में लाभप्रद है। बवासीर में इसे खाने से खून गिरना बंद होता है।
  8. लीवर के रोग होने पर भी पपीता खाने से लाभ होता है। प्लीहा या तिल्ली के बढ़ जाने पर पपीता काली मिर्च डाल कर खाना चाहिए। बुखार में भी पपीता सेव्य है।
  9. इसके सेवन से मूत्र खुल कर आता है और इसलिये यह पेशाब रोग की पथरी में प्रयोग किया जाता है।
  10. पेट के कीड़ों में पके पपीते के बीजों का प्रयोग किया जाता है। इसके बीजों का पेस्ट बना लें। इसे पानी में मिला लें और छान कर पियें। ऐसा 2-3 दिन लगातार करें।

पपीता विटामिन ए और विटामिन सी का एक बहुत ही अच्छा स्रोत है। विटामिन ए एक फैट में घुलनशील विटामिन है जो कि एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी है। यह स्वस्थ दृष्टि, न्यूरोलॉजिकल फ़ंक्शन, स्वस्थ त्वचा तथा शरीर में अन्य कामों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सूजन को कम करने में मदद करता है। एंटीऑक्सिडेंट्स होने से यह एंटीएजिंग है। विटामिन ए मजबूत हड्डियों के निर्माण, जीन विनियमन, स्वस्थ त्वचा को बनाए रखने व बेहतर इम्युनिटी के लिए जिम्मेदार हैं।

विटामिन सी पानी में घुलनशील विटामिन है जो शरीर के संयोजी ऊतकों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करने में भूमिका निभाता है। विटामिन सी के सेवन से बहुत से रोगों जैसे की, हृदय रोग, जन्मपूर्व स्वास्थ्य समस्याओं, नेत्र रोग, आदि से बचाव होत्सा है। इसके अतिरिक्त यह विटामिन त्वचा पर झुर्रियों को आना कम करता है और शरीर की इम्युनिटी को बढ़ा बार बार होने वाले संक्रमणों से शरीर की रक्षा करता है।

नियमित रूप से पपीता खाने से कमर की चर्बी दूर होती है।

पपीते की पोषकता

पपीते के फल में कैलोरी में कम है तथा यह प्राकृतिक विटामिन और खनिजों में समृद्ध है। पपीता में विटामिन सी, विटामिन ए, रिबोफ़्लिविन, फोलेट, कैल्शियम, थाइमिन, लोहा, नियासिन, पोटेशियम और फाइबर पाया जाता है। फाइबर और पानी की अच्छी मात्रा होने से यह कब्ज़ में बहुत लाभकारी है।

तुलनात्मक रूप से कम कैलोरी (39 किलो कैलोरी / 100 ग्राम) होने के कारण यह मोटे लोगों के लिए एक पसंदीदा फल है जो वजन कम करने में सहायक है।

इसके अलावा, पपीता में कैरोटीनॉड्स, यपोटेशिम, सोडियम भी पाया जाता है। इसमें एस्कॉर्बिक एसिड की मात्रा संतरे (61 मिलीग्राम / 100 ग्राम) से अधिक है। यह एक स्वादिष्ट, पोषकता से भरपूर व पाचन गुण और सेरोटोनिन से युक्त फल है। पपीता सेरोटोनिन का एक अच्छा स्रोत है (0।9 9 मिलीग्राम / 100 मिलीग्राम)।

पपीते में प्रति 100 ग्राम पोषण की अनुमानित मात्रा नीचे दी गई है। ब्रैकेट में पपीते के सेवन से प्राप्त पोषक पदार्थ की मात्रा को दैनिक आवश्यक मात्रा के सन्दर्भ में प्रतिशत के रूप में दिया गया है।

  1. प्रोटीन 0.61 ग्राम
  2. वसा 0.14 ग्राम
  3. कार्बोहाइड्रेट 9.81 ग्राम
  4. चीनी 5.90 ग्राम
  5. आहार फाइबर 1.8 ग्राम
  6. ऊर्जा 39 किलो कैलोरी
  7. विटामिन ए 328 ग्राम (41%)
  8. थायामिन (विटामिन बी 1) 0.04 मिलीग्राम (3%
  9. रिबोफैविविन (विटामिन बी 2) 0.05 मिलीग्राम (4%)
  10. नियासिन (विटामिन बी 3) 0.338 मिलीग्राम (2%)
  11. विटामिन बी6 0.1 मिलीग्राम (8%)
  12. फोलेट (विटामिन बी 9) 38 ग्रा (10%)
  13. विटामिन सी 61.8 मिलीग्राम (74%)
  14. कैल्शियम 24 मिलीग्राम (2%)
  15. आयरन 0.10 मिलीग्राम (1%)
  16. सोडियम 3 मिलीग्राम (0%)
  17. मैग्नेशियम 10 मिलीग्राम (3%)
  18. फास्फोरस 5 मिलीग्राम (1%)
  19. पोटेशियम 257 मिलीग्राम (5%)

पपीते के पौधे के अन्य प्रयोग

  1. चेहरे पर झुर्रियां कम करने के लिए पपीते को चेहरे पर मलकर लगाना चाहिए।
  2. झाइयाँ पड़ जाएँ तो नियमित पपीते का गूदा चेहरे पर लगायें।
  3. पपीते को नियमित चेहरे पर लगाने से दाग धब्बे दूर होते हैं, कान्ति आती है और त्वचा कोमल होती है।
  4. पपीते के बीज के सेवन से मासिक स्राव नियमित होता है।
  5. कच्चे पपीते के रस को दाद-खाज-खुजली, एक्जिमा, आदि पर लगाने से यह सभी दूर होते हैं।
  6. पपीते के पत्ते को पानी के साथ अथवा इसका पेस्ट खाने से बुखार दूर होता है। डेंगू के बुखार में पत्तों के सेवन से प्लेटलेट बढ़ता है।

पपीते को खाने में सावधानियां

  1. 100-200 ग्राम पपीता रोज खाने से कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
  2. कच्चे पपीते के embryotoxic and teratogenic असर देखे गए हैं। कच्चा पपीता भ्रूण के लिए टॉक्सिक है और जन्मजात विकृतियाँ हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त यह गर्भ नाशक है, इसलिए इसे गर्भावस्था में न खाएं।
  3. पपीते का एक्सट्रेक्ट एंटीकोअगुललेंट दवाओं के साथ इंटरैक्ट कर सकता है। एस्पिरिन Warfarin के साथ सेवन ब्लीडिंग के खतरे को बढ़ा देता है।
  4. इसमें पोटैशियम की अच्छी मात्रा होती है।
  5. अधिक मात्रा में खाने से carotenemia हो सकता है जिसमें हथेली, तलवों और आँखों पीलापन हो जाता है।
  6. कुछ सेंसिटिव लोगों में अस्थमा, सांस लेने की तकलीफ और हे फीवर के लक्षण देखे जा सकते हैं।
  7. इसमें विटामिन सी की काफी मात्रा है। अधिकता में सेवन किडनी की पथरी का कारण बन सकता है।
  8. ज्यादा मात्रा में सेवन पेट दर्द, गैस, जी मिचलाना आदि पेट सम्बंधित परेशानियां कर सकता है।
  9. लूज़ मोशन में यह न खाएं।

माजूफल Majuphal (Manjakani) in Hindi

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माजूफल, मायाफल, मज्जफल, माईफल, माजुफल, गाल्स व ओक गाल्स एक पेड़ से प्राप्त होने वाला पदार्थ `है जिसे औषधि की तरह मुख्य रूप से यूनानी दवाओं में प्रयोग किया जाता है। आजकल इसे आयुर्वेदिक दन्त मंजनों में डाला जाता है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग मध्यकाल के बाद शुरू हुआ। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन नहीं पाया जाता। इसका उत्पत्ति स्थान यूनान, एशिया माइनर, सीरिया और फारस है। भारत में इसका आयात इन्ही जगहों से होता आया है।

majuphal

इसमें टैनिक और गैलिक एसिड की अच्छी मात्रा होने से यह संकोचक / एसट्रिनजेंट है और रक्त, बहना, सूजन, योनि के ढीलेपन, पाइल्स, घाव आदि पर में प्रयोग किया जाता है।

माजूफल क्या है?

माजूफल एक कीट के कारण ईरानी बलूत, क्वेरकस इंफेक्टोरिया में निर्मित होने वाला पदार्थ है। यह कोई फल नहीं है। यह पेड़ में तब बनता है, जब गाल वास्प कीट, पेड़ को इन्फेक्ट कर उनमें छेद कर देते हैं और परिणाम स्वरुप पेड़ में यह असामान्य ग्रोथ होती है। कीट इसमें अपने अंडे देते हैं। ओक गाल्स या माजूफल देखने में गोल, और कठोर होते हैं।

इस प्रकार माजूफल, फल न हो कर एक कीट गृह है। माजूफल का आकार उन्नाव के बराबर और रंग में हरा-कुछ नीला लिए हुए, पीला-सफेदी लिये भूरा और छोटे-छोटे उभार युक्त होता है। रंग के अनुसार यह चार तरह का हो सकता है: नीला (माजु नीला), काला (माजु स्याह), हरा (माजू सब्ज़) और सफ़ेद (माजु सफ़ेद)। इनमें से नीला अथवा काला माजु जो कीड़ों के छेद करके बाहर निकल जाने से पहले संग्रहित किया हो औषधीय प्रयोजनों के लिए उत्तम माना जाता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: क्वेरकस इंफेक्टोरिया Quercus Infectoria
  • कुल (Family): Fagaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: ओक गाल्स
  • पौधे का प्रकार: ईरानी बलूत

माजूफल के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. Latin name: Quercus infectoria
  2. Sanskrit: Mayaphala, Majuphul
  3. Assamese: Aphsa
  4. Bengali: Majoophal, Majuphal
  5. English: Oak Galls, Magic Nuts, Mecca Gall, Syrian Gall, Turkey Gall, Gallnut
  6. Gujrati: Muajoophal, Mayfal, Maiphal
  7. Hindi: Maajoophal, Majuphal, Mazu
  8. Kannada: Machikaai, Mapalakam
  9. Malayalam: Majakaanee, Mashikkay
  10. Marathi: Maayaphal
  11. Oriya: Mayakku
  12. Punjabi: Maju
  13. Tamil: Machakaai, Masikki, Mussikki, Machakai, Maasikkai, Masikkai
  14. Telugu: Machikaaya
  15. Urdu: Mazu, Mazuphal, Baloot, Mazu Sabz
  16. Arabic: Uffes, Afas, Ballut Afssi
  17. Burma: Pinza-kanj-si, Pyintagar-ne-thi
  18. German: Gall-Eiche
  19. Indonesia: Manjakani
  20. Malaysia: Manjakani, Biji manjakani
  21. Persian: Mazu, Mazu-E-Sabz
  22. Spanish: Encina De La Agalla
  23. Swedish: Aleppoek
  24. Thai: Ben Ka Nee
  25. Turkish: Mzi Mesesi
  26. Other common names: Gall-Oak, Cyprus Oak, Nut-Galls, Asian Holly-Oak, Aleppo oak

माजूफल के संघटक Phytochemicals

मुख्य रूप से टैनिक और गैलिक एसिड।

माजूफल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

माजुफल स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और हल्का है। स्वभाव से यह ठंडा है और कटु विपाक है।

कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।

  • रस (taste on tongue): कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): शीत
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

प्रधान कर्म

  • कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  • पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  • शिथिलतानाशक: शिथिलता को संकुचित करने वाला।
  • केश्य: बालों को काला करने वाला।
  • रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
  • व्रण रोपण: घाव ठीक करने के गुण।

माजूफल के फायदे

  1. यह उत्तम रक्त स्तंभक, श्लेष्मघ्न, घाव भरने वाला और विषघ्न है।
  2. यह आंतरिक और बाह्य दोनों ही रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  3. यह उन रोगों में बहुत लाभप्रद है जिनमें प्रभावित स्थान को संकुचित करने की आवशकता होता है, जैसे रक्त बहना, चोट, योनि का ढीलापन, गुदभ्रंश आदि।
  4. यह ग्राही है और अतिसार, प्रवाहिका आदि में लाभप्रद है।
  5. इसे गिस कर यदि घाव पर लगा दें तो घाव जल्दी भरता है।
  6. इसे जल में घिस पर टोंसिल पर लगा दें तो यह उसकी सूजन को दूर करता है।
  7. यह सूखी खांसी, कफ में लाभप्रद है।

माजूफल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Majuphal in Hindi

माजूफल खून बहना रोकने वाला, बालों को काला करने वाला व संग्राही है। यह पसीने के दुर्गन्ध दूर करता है। पुराने अतिसार, श्वेत प्रदर में इसके आंतरिक प्रयोग से लाभ होता है। कान बहना में इसे कुलफा के रस में मिला कर कान में डाला जाता है। इसे अकेले ही चूर्ण बनाकर, दांतों को मजबूत करने, मसूड़ों से खून बहना रोकने, मुंह से पानी गिरना, बदबू आना आदि में प्रयोग करते हैं। इसे दन्त मंजनों में दांत और मसूड़ों को मजबूत करने और रोग को दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं।

सिरके में मिला कर इसे चेहरे की झाईं, दाद, गंजेपन पर लगाते हैं। आँखों में इसका अंजन, आँख से पानी गिरना, खुजली आदि में लगाया जाता है। नकसीर हो तो इसका नस्य लेने से खून गिरना रुक जाता है। गुदभ्रश, गुदशोथ, गुद व्रण में इसका चूर्ण आंतरिक रूप से व काढ़ा बनाकर बाहरी रूप से प्रयोग होता है।

योनि का ढीलापन Vaginal Sag

अशोक की छाल + बबूल छाल + गूलर छाल + माजूफल + फिटकरी, समान भाग में मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से छान कर इसका कपड़छन पाउडर बना लें। इस चूर्ण की सौ ग्राम की मात्रा एक लीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई रह जाए तो स्टोव से उतार कर ठंडा कर लें। इसे योनि के अन्दर रात को डालें। यह प्रयोग कुछ दिन तक लगातार करें।

भगंदर, बवासीर, गुदाभ्रंश (कांच निकलना) anal prolapse

  1. एक हिस्सा माजूफल के चूर्ण को चार हिस्सा वेसेलिन के साथ मिलाकर बाहरी रूप से लगाया जाता है।
  2. अथवा
  3. माजूफल का काढ़ा बनाएं। इससे प्रभावित स्थान धोएं या एक कपड़े में काढ़ा सुखा कर प्रभावित स्थान पर कुछ देर रखें। अथवा
  4. माजूफल + फिटकरी + त्रिफला, का काढ़ा बना कर प्रभावित स्थान पर लगाएं।

गुदा से खून गिरना, रक्तार्श

  • एक ग्राम माजूफल चूर्ण + सोंठ चौथाई ग्राम + नागकेशर चौथाई ग्राम, को मिला कर घी के साथ लें।
  • यह प्रयोग स्थिति अनुसार पांच दिन से पंद्रह दिन तक किया जा सकता है।

अतिसार, संग्रहणी

  • एक ग्राम माजूफल चूर्ण को शहद के साथ मिला कर लें। अथवा
  • एक ग्राम माजूफल चूर्ण को दिन में दो-तीन बार, एक ग्राम दालचीनी चूर्ण के साथ लिया जाता है।
  • यह प्रयोग स्थिति अनुसार पांच दिन से पंद्रह दिन तक किया जा सकता है।

पुराना सूजाक

माजूफल का चूर्ण, एक ग्राम की मात्रा में दिन में २ बार लेते हैं।

ग्रहणी IBS

एक ग्राम माजूफल चूर्ण + सोंठ आधा ग्राम + मोथा आधा ग्राम, को मिला कर लें।

दांत की समस्याएं, मसूड़ों में सूजन, मसूड़ों से खून आना, पायरिया

  1. माजुफल को पानी में उबाल आकर काढ़ा बना लें और इससे कुल्ले करें। अथवा
  2. माजूफल के बहुत बारीक चूर्ण से मसूड़ों की मालिश करें। अथवा
  3. माजूफल + फिटकरी + हल्दी, का बारीक चूर्ण बनाकर दन्त पाउडर की तरह प्रयोग करें।

नकसीर

माजूफल के चूर्ण को सूंघें।

घाव, घाव से खून निकलना

माजूफल चूर्ण का बाहरी रूप से छिडकाव प्रभावित स्थान पर करें।

माजूफल की औषधीय मात्रा

ओक गाल्स को लेने की आंतरिक मात्रा आधा ग्राम से लेकर दो ग्राम तक की है जो की शारीरिक बनावट, रोग, पाचन, वज़न से लेकर बहुत से अन्य कारकों पर निर्भर है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. इसमें टैनिक एसिड और गैलिक एसिड की अच्छी मात्रा है। इसे अधिक मात्रा में लेने से पेट में जलन, उलटी, लीवर को नुकसान हो सकता है।
  2. इसे गर्भावस्था में न लें।
  3. इसे लीवर या किडनी के रोग से ग्रसित होने पर न लें।
  4. इसे लम्बे समय तक या अधिक मात्रा में आंतरिक प्रयोग में न लायें।
  5. यह लोहे के अवशोषण को प्रभावित करता है।
  6. यह वात दोष को बढ़ा सकता है।
  7. यह ग्राही है और शरीर के जल को सुखाता है।
  8. इसके सेवन से कब्ज़ हो सकता है।
  9. इससे होने वाले दोष का निवारण करने के लिए गोंद कतीरा, गोंद बबूल प्रयोग होता है।
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